नई दिल्ली: धूल, धुआं, गैस, धुंध, भाप, कण पदार्थ. हर सांस के साथ हमें इन्हें अपने अंदर ले जाते हैं. खराब हवा हमारे मुंह में धातु जैसा स्वाद छोड़ती है. अगर मुंह इसका इंडिकेटर है, तो कल्पना करें कि शरीर की क्या स्थिति होगी. वहीं, पराली जलाने और त्यौहारों के कारण कई हफ़्तों से ज्यादातर भारतीय शहरों की हवा में प्रदूषण भरा हुआ है. AQI 'गंभीर' स्तर पर पहुंच गया है, खासकर उत्तरी भारत में.
वहीं, देश इस बात पर बहस कर रहा है कि क्या यह प्रतिबंध के बाद भी एक या दो दिन तक आसमान में पटाखे फोड़ने की वजह से हुआ या फिर यह भारत की रोजमर्रा की लाइफस्टाइल है, जो प्रदूषण के मानदंडों का पालन नहीं करती है, जिससे हवा 'सांस लेने लायक' नहीं रह जाती.विशेषज्ञ इस बात पर जोर दे रहे हैं कि मानव शरीर पर प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर उपाय किए जाने की जरूरत है.
वायु प्रदूषण मानव शरीर को कैसे प्रभावित करता है?
वायु प्रदूषण के संपर्क में आने का मुख्य मार्ग श्वसन पथ है. WHO का कहना है कि प्रदूषकों को सांस के जरिए शरीर में प्रवेश करने से सूजन होती है, जिससे मुक्त कणों और एंटीऑक्सीडेंट में असंतुलन पैदा होता है. मुक्त कण अस्थिर अणु होते हैं जो चयापचय जैसी प्राकृतिक प्रक्रियाओं के दौरान उत्पन्न होते हैं और एंटीऑक्सीडेंट भोजन में मौजूद अणु होते हैं, जो इन अस्थिर अणुओं को बेअसर करते हैं और शरीर को होने वाले नुकसान को कम करते हैं.
इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता या शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है. मानव कोशिकाओं में परिवर्तन होते हैं जो फेफड़ों, हृदय और मस्तिष्क के साथ-साथ अन्य अंगों को प्रभावित करते हैं और अंततः बीमारी का कारण बनते हैं. इससे स्किन और आंखों जैसे अन्य अंग भी प्रभावित होते हैं.
WHO वायु प्रदूषण के संपर्क को प्रतिकूल गर्भावस्था परिणामों (यानी कम वजन, गर्भावधि उम्र के लिए छोटा बच्चा), अन्य कैंसर, डायबिटीज, संज्ञानात्मक हानि या मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं और तंत्रिका संबंधी बीमारियों के बढ़ते जोखिम से भी जोड़ता है.
प्रदूषण का शरीर पर दीर्घकालिक और अल्पकालिक दोनों तरह का प्रभाव पड़ता है. वायु प्रदूषण हृदय रोग, घातक बीमारी और अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) जैसी सांस की बीमारियों के जोखिम को बढ़ा सकता है.
एम्स के मेडिसिन विभाग में एडिशनल प्रोफेसर डॉ. नीरज निश्चल कहते हैं, ''इससे पुरानी खांसी और छाती में संक्रमण भी हो सकता है.'' डॉ निश्चल का कहना है कि डायबिटीज और हाइपरटेंशन जैसी को-मोरबिडायटीज वाले लोगों और कैंसर से पीड़ित लोगों में इसके होने की संभावना अधिक होती है. बुजुर्ग और बच्चे भी इससे पीड़ित होते हैं.
क्या रिस्क की कोई सुरक्षित सीमा है?
इसकी कोई 'सुरक्षित सीमा' नहीं है. वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने से स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है, चाहे वह अल्पकालिक हो या दीर्घकालिक. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि कुछ प्रदूषकों के लिए, ऐसी कोई सीमा नहीं है जिसके नीचे प्रतिकूल प्रभाव न हों. बच्चे, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं.
डॉ निश्चल ने कहा कि त्योहारों के एक या दो दिनों को दोष देना इसका जवाब नहीं है. यह एक दिन की बात नहीं है. हमें साल भर अपना व्यवहार बदलना होगा. कानून बनाने से कोई मदद नहीं मिलती. हम सभी हर दिन प्रदूषण में सक्रिय रूप से योगदान दे रहे हैं. प्रदूषण पैदा करने वाले वाहन, निर्माण स्थल, कचरा जलाना और पराली जलाना प्रमुख कारक हैं.
बचने के लिए क्या करें?
डॉ निश्चल के मुताबिक इससे बचने के लिए धूम्रपान छोड़ें, व्यायाम करें, वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से बचें और सुबह और शाम जैसे प्रदूषण के चरम समय पर बाहर जाने से बचें. अगर संभव हो तो घर में खिड़कियां बंद करके बैठें और एयर प्यूरीफायर का उपयोग करें.
अस्थमा और हृदय रोग से पीड़ित लोग मास्क पहनकर बाहर निकलें. जिन्हें हाई ब्लड प्रेशर है उन्हें अपना ब्लड प्रेशर नियंत्रित रखना चाहिए. वायु प्रदूषण से मौसमी फ्लू का खतरा भी बढ़ सकता है, इसलिए फ्लू के टीके लगवाएं. बाहर जाने के बाद अपनी त्वचा और बालों से कणों को साफ करने के लिए नहाएं. इसके अलावा फर्श को बार-बार पोंछना और गीली धूल झाड़ना भी मदद कर सकता है.
डिटॉक्स डाइट
डिटॉक्सीफाइंग डाइट प्रदूषित हवा के हानिकारक प्रभाव से लड़ने में मदद करती है. यह आपके लिए एक स्वस्थ आहार हो सकती जो आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देती है और मुक्त कणों को बेअसर करती है. यह शरीर की रक्षा प्रणाली को मजबूत करती है और चुनौतीपूर्ण वातावरण के कारण होने वाली बीमारियों से लड़ने में मदद करता है.
इसके लिए सुनिश्चित करें कि आपके रोजमर्रा के भोजन में लहसुन, अदरक और हल्दी जैसे मसाले शामिल हों. इसके अलावा हरी पत्तेदार सब्जियां, जामुन, ब्रोकोली, फूलगोभी, चुकंदर, एवोकाडो, चिकन -मछली जैसे लीन प्रोटीन शामिल हों. साथ ही आहार में नींबू और संतरे जैसे खट्टे खाद्य पदार्थ भी शामिल होने चाहिए.
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