ETV Bharat / bharat

बांग्लादेश में हिंसा के पीछे क्या चीन और पाकिस्तान ? जानिए क्या कहते हैं पूर्व राजदूत - Violence in Bangladesh

यह स्पष्ट नहीं है कि बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री के पीछे कौन है. इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि देश में लोकतंत्र बहाल हो जाएगा. एकमात्र निश्चितता यह है कि हाल के घटनाक्रम का उद्देश्य शेख हसीना की जान बचाना था. जानिए अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत और प्रमुख कूटनीतिक विशेषज्ञ डॉ. टी. पी. श्रीनिवासन बांग्लादेश की स्थिति पर क्या कहते हैं.

Dr. T. P. Srinivasan, former Ambassador of India to the United States
अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत डॉ. टी. पी. श्रीनिवासन (फोटो - ETV Bharat Kerala)
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 10, 2024, 4:45 PM IST

Updated : Aug 10, 2024, 6:24 PM IST

अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत डॉ. टी. पी. श्रीनिवासन (वीडियो - ETV Bharat Kerala)

तिरुवनंतपुरम: पिछले हफ़्ते बांग्लादेश में हुए घटनाक्रम ने कई लोगों को चौंका दिया है. 15 साल तक प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना को अचानक तानाशाह और फासीवादी के तौर पर पेश किया गया और उन्हें निर्वासित कर दिया गया. इन घटनाओं की सटीक परिस्थितियां अभी भी अस्पष्ट हैं.

एक हफ़्ते पहले तक, कोई महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं था. शेख हसीना के प्रशासन को लेकर कुछ विवाद ज़रूर थे, ख़ास तौर पर कड़े क़ानूनों के इस्तेमाल को लेकर. इसके बावजूद, उनके नेतृत्व ने तेज़ी से विकास में योगदान दिया, एक समय तो वे कुछ मामलों में भारत से भी आगे निकल गईं. हालांकि उनका शासन प्रभावी था, लेकिन उन्हें कई तरफ़ से विरोध का सामना करना पड़ा.

हसीना ने अपनी प्रतिद्वंद्वी और पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा ज़िया को सालों तक जेल में रखा था. हाल ही में, बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन से जुड़ी आरक्षण नीतियों को लेकर छात्रों का विरोध प्रदर्शन हुआ. हालांकि, न्यायिक हस्तक्षेप से इस मुद्दे का समाधान हो जाने के बाद, स्थिति तेज़ी से बिगड़ गई. इस अचानक बदलाव के पीछे के कारण अभी भी अनिश्चित हैं.

क्या चीन-पाकिस्तान धुरी भी इसमें शामिल है?

ऐसी अटकलें हैं कि इन घटनाक्रमों में चीन शामिल हो सकता है. शेख हसीना ने इन घटनाओं से कुछ समय पहले ही चीन का दौरा किया था, लेकिन उन्हें जो स्वागत मिला वह असामान्य रूप से ठंडा और असभ्य था. इस अजीब व्यवहार ने चीन की संलिप्तता के संदेह को और बढ़ा दिया है. चीन आमतौर पर दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों पर अपनी नीतियां बनाने से पहले पाकिस्तान से परामर्श करता है, जिससे बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति के बारे में संदेह और बढ़ गया है.

छात्रों का विरोध प्रदर्शन जल्दी ही हिंसक हो गया, जो छात्रों की मौत के बिंदु तक पहुंच गया. ऐसा माना जाता है कि शेख हसीना ने इस्तीफा देकर देश छोड़ दिया, संभवतः बांग्लादेश सेना के कहने पर. वह और उनके सहयोगी कथित तौर पर हेलीकॉप्टर से भारत पहुंचे और अब दिल्ली में हैं. यह स्पष्ट नहीं है कि वे भारत में कब तक रहेंगे. नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार बनाई गई है.

ग्रामीण बैंक के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने के उनके प्रयासों के लिए यूनुस को 2006 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. पिछले मतभेदों के कारण, हसीना ने यूनुस को राजनीतिक मामलों से बाहर रखा था, हालांकि ऐसी भावना थी कि उन्हें राजनीति में प्रवेश करना चाहिए. यूनुस ने अब इस मांग को पूरा करने के लिए एक कैबिनेट का गठन किया है.

हसीना के हालिया चुनाव के न तो स्वतंत्र और न ही निष्पक्ष होने के आरोपों के मद्देनजर, यूनुस का प्राथमिक ध्यान पारदर्शी चुनावी प्रक्रिया सुनिश्चित करने पर होगा. रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका चुनाव परिणामों से नाखुश था. यह बांग्लादेश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है.

1975 में बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन के नेता मुजीबुर रहमान की हत्या की घटना को अब फिर से दोहराया जा रहा है, जिसमें आंदोलनकारियों ने उनकी मूर्तियों और स्मारकों को नुकसान पहुंचाया है, जो संभवतः पाकिस्तान जैसे बाहरी कारकों से प्रभावित है.

बांग्लादेश के लिए आर्थिक निहितार्थ

बांग्लादेश, जो पहले से ही एक गरीब देश है, उसको मौजूदा अस्थिरता के कारण और भी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. बढ़ती हिंसा से पता चलता है कि समस्याएं जल्द ही हल नहीं होंगी. यदि उपचुनाव आसन्न हैं, तो यह स्पष्ट है कि आंदोलनकारी जल्दी चुनाव कराने में रुचि नहीं रखते हैं.

भारत ने शेख हसीना के रूप में एक महत्वपूर्ण सहयोगी खो दिया है, जो बेगम खालिदा जिया के साथ बारी-बारी से सत्ता में रहीं. खालिदा जिया भारत के साथ मजबूत संबंध बनाए रखने की इच्छुक नहीं थीं, जबकि शेख हसीना ने पिछले 15 वर्षों में मजबूत संबंध बनाए रखे, जिसके कारण बांग्लादेश में पर्याप्त भारतीय निवेश हुआ.

मौजूदा अस्थिरता निवेशकों के लिए नुकसानदेह है. अगर नई सरकार निवेश का राष्ट्रीयकरण करने का फैसला करती है, तो बांग्लादेश में निवेश करने वालों के लिए इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं. उम्मीद है कि अंतरिम प्रधानमंत्री के तौर पर यूनुस संयम से काम लेंगे. हालांकि, यूनुस के नेतृत्व के पीछे की ताकतों के स्पष्ट होने तक भारत-बांग्लादेश संबंधों का भविष्य अनिश्चित बना हुआ है.

हालांकि शेख हसीना ने लोकतंत्र बहाल होने पर वापस लौटने की इच्छा जताई है, लेकिन उनकी वापसी या बांग्लादेश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की बहाली के बारे में कोई निश्चितता नहीं है. अभी के लिए, केवल इतना तय है कि शेख हसीना की जान बच गई है. निस्संदेह देश बहुत चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहा है.

अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत डॉ. टी. पी. श्रीनिवासन (वीडियो - ETV Bharat Kerala)

तिरुवनंतपुरम: पिछले हफ़्ते बांग्लादेश में हुए घटनाक्रम ने कई लोगों को चौंका दिया है. 15 साल तक प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना को अचानक तानाशाह और फासीवादी के तौर पर पेश किया गया और उन्हें निर्वासित कर दिया गया. इन घटनाओं की सटीक परिस्थितियां अभी भी अस्पष्ट हैं.

एक हफ़्ते पहले तक, कोई महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं था. शेख हसीना के प्रशासन को लेकर कुछ विवाद ज़रूर थे, ख़ास तौर पर कड़े क़ानूनों के इस्तेमाल को लेकर. इसके बावजूद, उनके नेतृत्व ने तेज़ी से विकास में योगदान दिया, एक समय तो वे कुछ मामलों में भारत से भी आगे निकल गईं. हालांकि उनका शासन प्रभावी था, लेकिन उन्हें कई तरफ़ से विरोध का सामना करना पड़ा.

हसीना ने अपनी प्रतिद्वंद्वी और पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा ज़िया को सालों तक जेल में रखा था. हाल ही में, बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन से जुड़ी आरक्षण नीतियों को लेकर छात्रों का विरोध प्रदर्शन हुआ. हालांकि, न्यायिक हस्तक्षेप से इस मुद्दे का समाधान हो जाने के बाद, स्थिति तेज़ी से बिगड़ गई. इस अचानक बदलाव के पीछे के कारण अभी भी अनिश्चित हैं.

क्या चीन-पाकिस्तान धुरी भी इसमें शामिल है?

ऐसी अटकलें हैं कि इन घटनाक्रमों में चीन शामिल हो सकता है. शेख हसीना ने इन घटनाओं से कुछ समय पहले ही चीन का दौरा किया था, लेकिन उन्हें जो स्वागत मिला वह असामान्य रूप से ठंडा और असभ्य था. इस अजीब व्यवहार ने चीन की संलिप्तता के संदेह को और बढ़ा दिया है. चीन आमतौर पर दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों पर अपनी नीतियां बनाने से पहले पाकिस्तान से परामर्श करता है, जिससे बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति के बारे में संदेह और बढ़ गया है.

छात्रों का विरोध प्रदर्शन जल्दी ही हिंसक हो गया, जो छात्रों की मौत के बिंदु तक पहुंच गया. ऐसा माना जाता है कि शेख हसीना ने इस्तीफा देकर देश छोड़ दिया, संभवतः बांग्लादेश सेना के कहने पर. वह और उनके सहयोगी कथित तौर पर हेलीकॉप्टर से भारत पहुंचे और अब दिल्ली में हैं. यह स्पष्ट नहीं है कि वे भारत में कब तक रहेंगे. नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार बनाई गई है.

ग्रामीण बैंक के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने के उनके प्रयासों के लिए यूनुस को 2006 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. पिछले मतभेदों के कारण, हसीना ने यूनुस को राजनीतिक मामलों से बाहर रखा था, हालांकि ऐसी भावना थी कि उन्हें राजनीति में प्रवेश करना चाहिए. यूनुस ने अब इस मांग को पूरा करने के लिए एक कैबिनेट का गठन किया है.

हसीना के हालिया चुनाव के न तो स्वतंत्र और न ही निष्पक्ष होने के आरोपों के मद्देनजर, यूनुस का प्राथमिक ध्यान पारदर्शी चुनावी प्रक्रिया सुनिश्चित करने पर होगा. रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका चुनाव परिणामों से नाखुश था. यह बांग्लादेश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है.

1975 में बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन के नेता मुजीबुर रहमान की हत्या की घटना को अब फिर से दोहराया जा रहा है, जिसमें आंदोलनकारियों ने उनकी मूर्तियों और स्मारकों को नुकसान पहुंचाया है, जो संभवतः पाकिस्तान जैसे बाहरी कारकों से प्रभावित है.

बांग्लादेश के लिए आर्थिक निहितार्थ

बांग्लादेश, जो पहले से ही एक गरीब देश है, उसको मौजूदा अस्थिरता के कारण और भी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. बढ़ती हिंसा से पता चलता है कि समस्याएं जल्द ही हल नहीं होंगी. यदि उपचुनाव आसन्न हैं, तो यह स्पष्ट है कि आंदोलनकारी जल्दी चुनाव कराने में रुचि नहीं रखते हैं.

भारत ने शेख हसीना के रूप में एक महत्वपूर्ण सहयोगी खो दिया है, जो बेगम खालिदा जिया के साथ बारी-बारी से सत्ता में रहीं. खालिदा जिया भारत के साथ मजबूत संबंध बनाए रखने की इच्छुक नहीं थीं, जबकि शेख हसीना ने पिछले 15 वर्षों में मजबूत संबंध बनाए रखे, जिसके कारण बांग्लादेश में पर्याप्त भारतीय निवेश हुआ.

मौजूदा अस्थिरता निवेशकों के लिए नुकसानदेह है. अगर नई सरकार निवेश का राष्ट्रीयकरण करने का फैसला करती है, तो बांग्लादेश में निवेश करने वालों के लिए इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं. उम्मीद है कि अंतरिम प्रधानमंत्री के तौर पर यूनुस संयम से काम लेंगे. हालांकि, यूनुस के नेतृत्व के पीछे की ताकतों के स्पष्ट होने तक भारत-बांग्लादेश संबंधों का भविष्य अनिश्चित बना हुआ है.

हालांकि शेख हसीना ने लोकतंत्र बहाल होने पर वापस लौटने की इच्छा जताई है, लेकिन उनकी वापसी या बांग्लादेश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की बहाली के बारे में कोई निश्चितता नहीं है. अभी के लिए, केवल इतना तय है कि शेख हसीना की जान बच गई है. निस्संदेह देश बहुत चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहा है.

Last Updated : Aug 10, 2024, 6:24 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.