प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि अदालतें किसी अभियुक्त की जमानत मंजूर करते समय ऐसी शर्तें न लगाएं, जिसके कारण उसकी रिहाई ही न हो सके. यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने बीरू कुमार की जमानत अर्जी में दाखिल संशोधन अर्जी को स्वीकार करते हुए दिया है. कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट देवरिया को जमानत मंजूर होने के बाद भी दो में से एक प्रतिभूति परिवार के सदस्य की होने की शर्त के कारण एक साल से जेल में बंद याची की सामाजिक आर्थिक स्थिति के अनुसार शर्त पर रिहा करने का आदेश दिया है.
कोर्ट ने कहा कि अरविंद सिंह केस में बोझिल शर्त के कारण यदि एक सप्ताह तक अभियुक्त की जमानत पर रिहाई नहीं हो पाती तो ट्रायल कोर्ट व जिला विधिक सेवा प्राधिकरण जमानत आदेश संशोधित कराने की अर्जी दे ताकि अभियुक्त की रिहाई सुनिश्चित हो सके. कोर्ट ने इस फैसले का पालन न करने पर नाराजगी जताते हुए कहा कि इस फैसले का पालन किया जाए. कोर्ट ने याची के परिवार के सदस्य की प्रतिभूति की शर्त वापस ले ली और जिला जज देवरिया से जांच कर ट्रायल कोर्ट व जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को उचित परामर्श देने का आदेश दिया है.
कोर्ट ने याची 18 मई 2023 को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया. याची के परिवार का कोई भी सदस्य उत्तर प्रदेश में नहीं है. पिता विदेश में हैं. वह आने में असमर्थ हैं. इससे प्रतिभूति दाखिल न होने के कारण वह जेल में एक साल से बंद है. कोर्ट ने अरविंद सिंह केस का हवाला दिया और कहा कि ट्रायल कोर्ट व जिला विधिक सेवा प्राधिकरण का दायित्व है कि अभियुक्त एक सप्ताह तक रिहा नहीं होता तो आदेश संशोधित करने की अर्जी दे ताकि रिहाई हो सके.
कोर्ट ने कहा कि सामाजिक-आर्थिक स्थितियों की जांच करनी चाहिए. इसके अलावा अदालतों को ऐसी शर्तें नहीं लगानी चाहिए, जिन्हें बंदी अपनी अभावग्रस्त परिस्थितियों या अभाव की स्थिति के कारण पूरा न कर सके. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि टिप्पणियों को किसी भी न्यायिक अधिकारी के खिलाफ प्रतिकूल रूप से नहीं समझा जाएगा. इस आदेश की एक प्रति सचिव राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को भेजी जाए.