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हत्या के आरोप में 12 साल जेल में बिताए, सुप्रीम कोर्ट ने किया बरी - SUPREME COURT

सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में एक आरोपी को बरी कर दिया. हालांकि व्यक्ति ने 12 साल से अधिक समय जेल में बिता दिया.

SUPREME COURT
सुप्रीम कोर्ट (IANS)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 29, 2025, 8:04 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केरल में हत्या के एक मामले में 12 साल से अधिक समय तक जेल में रहने वाले एक व्यक्ति को बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा कि उसका अपराध उचित संदेह से परे साबित नहीं हुआ.

यह फैसला न्यायमूर्ति अभय एस ओका और उज्जल भुईयां की पीठ ने सुनाया. पीठ ने कहा कि उसे दो प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही पर विश्वास करना बहुत मुश्किल लगा. इस मामले में, कुछ महत्वपूर्ण चूक हैं जो विरोधाभास को जन्म देती हैं. महत्वपूर्ण चूक के साथ, अगर हम दोनों गवाहों के आचरण पर विचार करें तो उनका बयान विश्वास पैदा नहीं करता है. पीठ ने कहा कि एक बार जब इन दो गवाहों के साक्ष्य पर विश्वास नहीं किया जाता है तो अपीलकर्ता के खिलाफ एकमात्र शेष साक्ष्य उसके कहने पर चाकू की बरामदगी है.

पीठ ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 27 के तहत की गई वसूली के साक्ष्य मूल्य से संबंधित कानून मनोज कुमार सोनी बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2023) के मामले में इस अदालत द्वारा तय किया गया है.

बता दें कि विनोभाई ने अपील दायर की थी, जिन्होंने मामले में उनकी दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखने वाले केरल हाई कोर्ट के सितंबर 2016 के फैसले को चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता बारह साल से अधिक समय तक कारावास में रहा है.

अपील को स्वीकार करते हुए, पीठ ने कहा, "केरल हाई कोर्ट एर्नाकुलम द्वारा पारित 7 सितंबर 2016 को पारित विवादित निर्णय और अंतिम आदेश और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, इरिंजालकुडा (ट्रायल कोर्ट) की अदालत द्वारा पारित 9 अक्टूबर 2012 को पारित विवादित निर्णय को रद्द और अलग रखा जाता है और अपीलकर्ता को उसके खिलाफ लगाए गए अपराधों से बरी किया जाता है."

पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता को तत्काल रिहा कर दिया जाएगा, जब तक कि उसे किसी अन्य मामले के संबंध में आवश्यक न हो. अभियोजन पक्ष के अनुसार, अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप यह है कि 31 दिसंबर 2010 को लगभग 11:45 बजे उसने रामकृष्णन (मृतक) पर चाकू से वार किया. मृतक को गंभीर चोटें आईं, जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई. अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि विनोभाई और रामकृष्णन के बीच पहले से दुश्मनी थी, जो कथित तौर पर पूर्व के बड़े भाई की हत्या में शामिल था. कोर्ट ने कहा कि गवाहों में से एक ने कहा कि रामकृष्णन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) का समर्थक था जबकि विनोभाई भाजपा कार्यकर्ता था. अपीलकर्ता को हत्या के आरोप में एक ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

ये भी पढ़ें - तीन तलाक मामले में अभी तक जितनी भी FIR दर्ज हुई हैं, उनकी जानकारी दे केंद्र: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केरल में हत्या के एक मामले में 12 साल से अधिक समय तक जेल में रहने वाले एक व्यक्ति को बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा कि उसका अपराध उचित संदेह से परे साबित नहीं हुआ.

यह फैसला न्यायमूर्ति अभय एस ओका और उज्जल भुईयां की पीठ ने सुनाया. पीठ ने कहा कि उसे दो प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही पर विश्वास करना बहुत मुश्किल लगा. इस मामले में, कुछ महत्वपूर्ण चूक हैं जो विरोधाभास को जन्म देती हैं. महत्वपूर्ण चूक के साथ, अगर हम दोनों गवाहों के आचरण पर विचार करें तो उनका बयान विश्वास पैदा नहीं करता है. पीठ ने कहा कि एक बार जब इन दो गवाहों के साक्ष्य पर विश्वास नहीं किया जाता है तो अपीलकर्ता के खिलाफ एकमात्र शेष साक्ष्य उसके कहने पर चाकू की बरामदगी है.

पीठ ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 27 के तहत की गई वसूली के साक्ष्य मूल्य से संबंधित कानून मनोज कुमार सोनी बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2023) के मामले में इस अदालत द्वारा तय किया गया है.

बता दें कि विनोभाई ने अपील दायर की थी, जिन्होंने मामले में उनकी दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखने वाले केरल हाई कोर्ट के सितंबर 2016 के फैसले को चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता बारह साल से अधिक समय तक कारावास में रहा है.

अपील को स्वीकार करते हुए, पीठ ने कहा, "केरल हाई कोर्ट एर्नाकुलम द्वारा पारित 7 सितंबर 2016 को पारित विवादित निर्णय और अंतिम आदेश और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, इरिंजालकुडा (ट्रायल कोर्ट) की अदालत द्वारा पारित 9 अक्टूबर 2012 को पारित विवादित निर्णय को रद्द और अलग रखा जाता है और अपीलकर्ता को उसके खिलाफ लगाए गए अपराधों से बरी किया जाता है."

पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता को तत्काल रिहा कर दिया जाएगा, जब तक कि उसे किसी अन्य मामले के संबंध में आवश्यक न हो. अभियोजन पक्ष के अनुसार, अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप यह है कि 31 दिसंबर 2010 को लगभग 11:45 बजे उसने रामकृष्णन (मृतक) पर चाकू से वार किया. मृतक को गंभीर चोटें आईं, जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई. अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि विनोभाई और रामकृष्णन के बीच पहले से दुश्मनी थी, जो कथित तौर पर पूर्व के बड़े भाई की हत्या में शामिल था. कोर्ट ने कहा कि गवाहों में से एक ने कहा कि रामकृष्णन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) का समर्थक था जबकि विनोभाई भाजपा कार्यकर्ता था. अपीलकर्ता को हत्या के आरोप में एक ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

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