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इंजीनियर रशीद की जीत पर उमर अब्दुल्ला बोले, 'जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों को मिलेगी ताकत' - Omar Abdullah on Rashid Victory

Omar Abdullah on Er Rashid: गुरुवार को उमर अब्दुल्ला ने एक प्रमुख ऑनलाइन आउटलेट में प्रकाशित एक लेख साझा किया. इसमें बारामूला लोकसभा सीट पर अब्दुल रशीद शेख की जीत को अलगाववादी विचारधारा और इस्लामवादी आंदोलन के पुनरुत्थान से जोड़ा गया.

Er Rashid (L) and Omar Abdullah
इंजीनियर रशीद (बाएं) और उमर अबदुल्ला (ANI File Photos)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jun 6, 2024, 5:00 PM IST

श्रीनगर: हाल ही में संपन्न संसदीय चुनाव में बारामूला लोकसभा सीट पर जेल में बंद राजनेता शेख रशीद उर्फ इंजीनियर रशीद के हाथों जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को करारी हार का सामना करना पड़ा. रशीद की जीत को क्षेत्र में 'अलगाववाद के पुनरुत्थान' से जोड़ने वाले अपने सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर अब एनसी अध्यक्ष खुद कटघरे में हैं.

उमर, जो रशीद और अलगाववादी से मुख्यधारा के राजनेता और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन के सामने बारामूला सीट पर सबसे आगे थे, रशीद से 2 लाख से अधिक वोटों से हार गए. इसको लेकर गुरुवार को, उमर ने एक प्रमुख आउटलेट में एक राय साझा की, जिसमें दावा किया गया कि रशीद की जीत 'अलगाववादियों को सशक्त बनाएगी और कश्मीर के पराजित इस्लामी आंदोलन को आशा की एक नई भावना देगी'.

उमर ने एक लेख उद्धरण के साथ साझा किया. इसमें लिखा था, 'रशीद की जीत, बिना किसी संदेह के, अलगाववादियों को सशक्त बनाएगी और कश्मीर के पराजित इस्लामी आंदोलन को आशा की नई किरण देगी. अलगाववाद को चुनावी राजनीति में वापस लाने के प्रयासों ने नई दिल्ली को पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के उदय और भाजपा के साथ उसके गठबंधन का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया. हालांकि, इससे हिंसक अलगाववादियों को सशक्त बनाने में मदद मिली, न कि उन्हें मुख्यधारा में लाने में... राजनीति में हेरफेर करने की कोशिश के अप्रत्याशित परिणामों की चेतावनी'.

उमर ने एक अन्य प्रमुख दैनिक में छपे एक अन्य लेख को साझा किया, जिसमें दावा किया गया कि रशीद ने भी 'बहिष्कार वोट को आकर्षित किया, जो पहले घाटी में मतदान केंद्रों से दूर रहते थे. अब उनके लिए वोट को प्रतिरोध के वोट के रूप में देखा जाता है'. लेख में लिखा गया है, ' अबरार (रशीद के बेटे) ने अपने चुनावी भाषणों में सीधे तौर पर इस पर बात की. उन्होंने कहा कि, 'मुझे पता है कि आप बहिष्कार के समर्थक लोग हैं. लेकिन मुझसे वादा करो, इस बार आप मतदान करने के लिए बाहर आएंगे'.

पहले लेख में पीडीपी को बहस में लाने के साथ, पार्टी के युवा नेता वहीद पारा ने उमर की उनके 'प्रतिगामी रुख' के लिए आलोचना की. पारा ने उमर की पोस्ट पर जवाब दिया, 'उमर अब्दुल्ला के प्रतिगामी रुख से बेहद निराश हूं, जो 1987 की विभाजनकारी राजनीति को दोहराता है और लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति को इस्लामी लहर करार देता है. मुस्लिम कॉन्फ्रेंस के साथ उनके परिवार का इतिहास पीडीपी, रशीद और जेईआई को बाहर करने के आह्वान से टकराता है. कश्मीर को राज्य के साथ निरंतर संघर्ष में डाल देगा. रशीद की रिहाई के लिए महबूबा मुफ्ती की अपील के समान एक अधिक विवेकपूर्ण दृष्टिकोण जनादेश को स्वीकार करना होता'.

उमर ने जवाब दिया कि उन्होंने जो लेख साझा किए थे, वे 'मेरे विचार नहीं थे, लेकिन वे एक दृष्टिकोण हैं'. उन्होंने कहा, 'वहीद, मैं आमतौर पर यहां किसी भी तरह की बातचीत में शामिल नहीं होता, लेकिन इस बार मैं एक अपवाद बनाऊंगा. मैंने अपना पूरा अभियान इंजीनियर की रिहाई के बारे में बात करते हुए बिताया और उनके अभियान के विपरीत मैंने 2019 से हिरासत में लिए गए 1000 लोगों की रिहाई के बारे में बात की. मैंने यहां जो लेख डाले हैं, वे मेरे विचार नहीं हैं, लेकिन वे एक दृष्टिकोण हैं. मैं कुछ हिस्सों से सहमत हो सकता हूं, कुछ हिस्सों से असहमत हो सकता हूं लेकिन वे एक राय हैं. जहां तक ​​रशीद की रिहाई का सवाल है, यह अदालतों का मामला है क्योंकि यह ऐसे सभी मामलों में होता है. मैं पहले स्थान पर रशीद की हिरासत से सहमत नहीं था. अब भी इससे सहमत नहीं हूं, लेकिन यह न तो यहां है और न ही वहां है क्योंकि यह सिर्फ एक आदमी के बारे में नहीं बल्कि जेल में बंद 1000 लोगों के बारे में होना चाहिए. इसमें जम्मू-कश्मीर के बाहर के गुमनाम लोग भी शामिल हैं'.

पढ़ें: लोकसभा चुनाव: 1984 के बाद पहली बार कांग्रेस ने 12 करोड़ से अधिक वोट हासिल किए

श्रीनगर: हाल ही में संपन्न संसदीय चुनाव में बारामूला लोकसभा सीट पर जेल में बंद राजनेता शेख रशीद उर्फ इंजीनियर रशीद के हाथों जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को करारी हार का सामना करना पड़ा. रशीद की जीत को क्षेत्र में 'अलगाववाद के पुनरुत्थान' से जोड़ने वाले अपने सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर अब एनसी अध्यक्ष खुद कटघरे में हैं.

उमर, जो रशीद और अलगाववादी से मुख्यधारा के राजनेता और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन के सामने बारामूला सीट पर सबसे आगे थे, रशीद से 2 लाख से अधिक वोटों से हार गए. इसको लेकर गुरुवार को, उमर ने एक प्रमुख आउटलेट में एक राय साझा की, जिसमें दावा किया गया कि रशीद की जीत 'अलगाववादियों को सशक्त बनाएगी और कश्मीर के पराजित इस्लामी आंदोलन को आशा की एक नई भावना देगी'.

उमर ने एक लेख उद्धरण के साथ साझा किया. इसमें लिखा था, 'रशीद की जीत, बिना किसी संदेह के, अलगाववादियों को सशक्त बनाएगी और कश्मीर के पराजित इस्लामी आंदोलन को आशा की नई किरण देगी. अलगाववाद को चुनावी राजनीति में वापस लाने के प्रयासों ने नई दिल्ली को पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के उदय और भाजपा के साथ उसके गठबंधन का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया. हालांकि, इससे हिंसक अलगाववादियों को सशक्त बनाने में मदद मिली, न कि उन्हें मुख्यधारा में लाने में... राजनीति में हेरफेर करने की कोशिश के अप्रत्याशित परिणामों की चेतावनी'.

उमर ने एक अन्य प्रमुख दैनिक में छपे एक अन्य लेख को साझा किया, जिसमें दावा किया गया कि रशीद ने भी 'बहिष्कार वोट को आकर्षित किया, जो पहले घाटी में मतदान केंद्रों से दूर रहते थे. अब उनके लिए वोट को प्रतिरोध के वोट के रूप में देखा जाता है'. लेख में लिखा गया है, ' अबरार (रशीद के बेटे) ने अपने चुनावी भाषणों में सीधे तौर पर इस पर बात की. उन्होंने कहा कि, 'मुझे पता है कि आप बहिष्कार के समर्थक लोग हैं. लेकिन मुझसे वादा करो, इस बार आप मतदान करने के लिए बाहर आएंगे'.

पहले लेख में पीडीपी को बहस में लाने के साथ, पार्टी के युवा नेता वहीद पारा ने उमर की उनके 'प्रतिगामी रुख' के लिए आलोचना की. पारा ने उमर की पोस्ट पर जवाब दिया, 'उमर अब्दुल्ला के प्रतिगामी रुख से बेहद निराश हूं, जो 1987 की विभाजनकारी राजनीति को दोहराता है और लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति को इस्लामी लहर करार देता है. मुस्लिम कॉन्फ्रेंस के साथ उनके परिवार का इतिहास पीडीपी, रशीद और जेईआई को बाहर करने के आह्वान से टकराता है. कश्मीर को राज्य के साथ निरंतर संघर्ष में डाल देगा. रशीद की रिहाई के लिए महबूबा मुफ्ती की अपील के समान एक अधिक विवेकपूर्ण दृष्टिकोण जनादेश को स्वीकार करना होता'.

उमर ने जवाब दिया कि उन्होंने जो लेख साझा किए थे, वे 'मेरे विचार नहीं थे, लेकिन वे एक दृष्टिकोण हैं'. उन्होंने कहा, 'वहीद, मैं आमतौर पर यहां किसी भी तरह की बातचीत में शामिल नहीं होता, लेकिन इस बार मैं एक अपवाद बनाऊंगा. मैंने अपना पूरा अभियान इंजीनियर की रिहाई के बारे में बात करते हुए बिताया और उनके अभियान के विपरीत मैंने 2019 से हिरासत में लिए गए 1000 लोगों की रिहाई के बारे में बात की. मैंने यहां जो लेख डाले हैं, वे मेरे विचार नहीं हैं, लेकिन वे एक दृष्टिकोण हैं. मैं कुछ हिस्सों से सहमत हो सकता हूं, कुछ हिस्सों से असहमत हो सकता हूं लेकिन वे एक राय हैं. जहां तक ​​रशीद की रिहाई का सवाल है, यह अदालतों का मामला है क्योंकि यह ऐसे सभी मामलों में होता है. मैं पहले स्थान पर रशीद की हिरासत से सहमत नहीं था. अब भी इससे सहमत नहीं हूं, लेकिन यह न तो यहां है और न ही वहां है क्योंकि यह सिर्फ एक आदमी के बारे में नहीं बल्कि जेल में बंद 1000 लोगों के बारे में होना चाहिए. इसमें जम्मू-कश्मीर के बाहर के गुमनाम लोग भी शामिल हैं'.

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