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3 लाख लड्डू, 500 करोड़ रुपये की बिक्री, जानें कितना पुराना है तिरुपति में 'लड्डू' बांटने का इतिहास - Trupati Balaji

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : 3 hours ago

Updated : 2 hours ago

History Of Laddu: आंध्र प्रदेश के तिरुपति स्थित भगवान वेंकटेश्वर के पवित्र मंदिर में चढ़ाया जाने वाला 'लड्डू प्रसादम', अपने अनोखे स्वाद के लिए प्रसिद्ध है. टीटीडी हर दिन तिरुमाला में करीब 3 लाख लड्डू तैयार करता है और इन्हें भक्तों के बीच वितरित करता है.

तिरुपति में 'लड्डू' बटने का इतिहास
तिरुपति में 'लड्डू' बटने का इतिहास (ETV Bharat)

नई दिल्ली: आंध्र प्रदेश के तिरुपति स्थित भगवान वेंकटेश्वर के पवित्र मंदिर में चढ़ाया जाने वाला 'लड्डू प्रसादम', अपने अनोखे स्वाद के लिए प्रसिद्ध है. इसे पूरे भारत और विदेशों में भक्तों द्वारा पसंद किया जाता है. ये प्रतिष्ठित लड्डू मंदिर की रसोई में सावधानीपूर्वक तैयार किए जाते हैं, जिसे 'पोटू' के नाम से जाना जाता है.

तिरुपति के लड्डू बनाने की प्रक्रिया को 'दित्तम' कहा जाता है. लड्डू में यूज होने वाली मटेरियल और उनकी मात्रा निर्धारित रहती है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक लड्डू बनाने की रेसिपी को अब तक महज छह बार ही बदला गया है.

2016 की TTD रिपोर्ट के अनुसार, लड्डू में दिव्य सुगंध होती है. शुरुआत में, प्रसादम की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए बेसन और गुड़ की चाशनी से बनी बूंदी का इस्तेमाल होता था. बाद में स्वाद और पोषण को बढ़ाने के लिए इसमें बादाम, काजू और किशमिश मिलाए गए.

'3 लाख लड्डू, 500 करोड़ रुपये की बिक्री'
टीटीडी हर दिन तिरुमाला में करीब 3 लाख लड्डू तैयार करता है और इन्हें भक्तों में बांटता है, जिससे लड्डू की बिक्री से सालाना करीब 500 करोड़ रुपये की कमाई होती है.

लड्डू बांटने का इतिहास
तिरुपति लड्डू बांटने की परंपरा 300 साल से भी ज़्यादा पुरानी है. इसकी शुरुआत 1715 में हुई थी. 2014 में, तिरुपति लड्डू को GI दर्जा मिला, जिससे किसी और को उस नाम से लड्डू बेचने से रोक दिया गया.

क्वालिटी कंट्रोल
एक अत्याधुनिक फूड टेस्टिंग लेबोरेटरी लड्डू के प्रत्येक बैच की क्वालिटी सुनिश्चित करती है, जिसमें काजू, चीनी और इलायची की सटीक मात्रा होनी चाहिए और इसका वजन ठीक 175 ग्राम होना चाहिए.

लड्डू में फैट की मौजूदगी
जुलाई में लोबोरेटरी टेस्टिंग में एआर डेयरी फूड्स द्वारा सप्लाई किए गए घी में फैट की मौजूदगी का पता चला, जिसके कारण टीटीडी ने ठेकेदार को ब्लैक लिस्ट में डाल दिया और इसके बाद इसके ठेका कर्नाटक मिल्क फेडरेशन को सौंप दिया. टीटीडी ब्लैक लिस्ट में डाले गए ठेकेदार से घी के लिए 320 रुपये प्रति किलोग्राम का पेमेंट कर रहा था, लेकिन अब वह कर्नाटक से 475 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से घी खरीद रहा है.

क्या है ताजा विवाद?
गुरुवार को टीडीपी के नेतृत्व वाली आंध्र प्रदेश सरकार ने प्रयोगशाला रिपोर्ट जारी की, जिसमें वाईएसआरसी शासन के दौरान सप्लाई किए गए घी में लार्ड (सूअर की चर्बी), टैलो (गोमांस की चर्बी) और मछली के तेल मौजूदगी की बात सामने आई.

साथ ही लड्डू के स्वाद को लेकर मिली शिकायतों के बाद 23 जुलाई को किए गए विश्लेषण में नारियल, अलसी, रेपसीड और कपास के बीज जैसे वनस्पति सोर्स से प्राप्त वसा भी पाया गया था.

नए आईएएस अधिकारी की नियुक्ति
इसके बाद जून में टीडीपी सरकार ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारी जे. श्यामला राव को टीटीडी का नया कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया. उन्होंने गुणवत्ता संबंधी चिंताओं को दूर करने के प्रयासों के तहत, लड्डू के स्वाद और बनावट से संबंधित मुद्दों की जांच के आदेश दिए.

यह भी पढ़ें- क्या है 'बीफ टैलो'? तिरुपति बालाजी में मिलने वालों लड्डुओं में जिसका हो रहा था इस्तेमाल

नई दिल्ली: आंध्र प्रदेश के तिरुपति स्थित भगवान वेंकटेश्वर के पवित्र मंदिर में चढ़ाया जाने वाला 'लड्डू प्रसादम', अपने अनोखे स्वाद के लिए प्रसिद्ध है. इसे पूरे भारत और विदेशों में भक्तों द्वारा पसंद किया जाता है. ये प्रतिष्ठित लड्डू मंदिर की रसोई में सावधानीपूर्वक तैयार किए जाते हैं, जिसे 'पोटू' के नाम से जाना जाता है.

तिरुपति के लड्डू बनाने की प्रक्रिया को 'दित्तम' कहा जाता है. लड्डू में यूज होने वाली मटेरियल और उनकी मात्रा निर्धारित रहती है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक लड्डू बनाने की रेसिपी को अब तक महज छह बार ही बदला गया है.

2016 की TTD रिपोर्ट के अनुसार, लड्डू में दिव्य सुगंध होती है. शुरुआत में, प्रसादम की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए बेसन और गुड़ की चाशनी से बनी बूंदी का इस्तेमाल होता था. बाद में स्वाद और पोषण को बढ़ाने के लिए इसमें बादाम, काजू और किशमिश मिलाए गए.

'3 लाख लड्डू, 500 करोड़ रुपये की बिक्री'
टीटीडी हर दिन तिरुमाला में करीब 3 लाख लड्डू तैयार करता है और इन्हें भक्तों में बांटता है, जिससे लड्डू की बिक्री से सालाना करीब 500 करोड़ रुपये की कमाई होती है.

लड्डू बांटने का इतिहास
तिरुपति लड्डू बांटने की परंपरा 300 साल से भी ज़्यादा पुरानी है. इसकी शुरुआत 1715 में हुई थी. 2014 में, तिरुपति लड्डू को GI दर्जा मिला, जिससे किसी और को उस नाम से लड्डू बेचने से रोक दिया गया.

क्वालिटी कंट्रोल
एक अत्याधुनिक फूड टेस्टिंग लेबोरेटरी लड्डू के प्रत्येक बैच की क्वालिटी सुनिश्चित करती है, जिसमें काजू, चीनी और इलायची की सटीक मात्रा होनी चाहिए और इसका वजन ठीक 175 ग्राम होना चाहिए.

लड्डू में फैट की मौजूदगी
जुलाई में लोबोरेटरी टेस्टिंग में एआर डेयरी फूड्स द्वारा सप्लाई किए गए घी में फैट की मौजूदगी का पता चला, जिसके कारण टीटीडी ने ठेकेदार को ब्लैक लिस्ट में डाल दिया और इसके बाद इसके ठेका कर्नाटक मिल्क फेडरेशन को सौंप दिया. टीटीडी ब्लैक लिस्ट में डाले गए ठेकेदार से घी के लिए 320 रुपये प्रति किलोग्राम का पेमेंट कर रहा था, लेकिन अब वह कर्नाटक से 475 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से घी खरीद रहा है.

क्या है ताजा विवाद?
गुरुवार को टीडीपी के नेतृत्व वाली आंध्र प्रदेश सरकार ने प्रयोगशाला रिपोर्ट जारी की, जिसमें वाईएसआरसी शासन के दौरान सप्लाई किए गए घी में लार्ड (सूअर की चर्बी), टैलो (गोमांस की चर्बी) और मछली के तेल मौजूदगी की बात सामने आई.

साथ ही लड्डू के स्वाद को लेकर मिली शिकायतों के बाद 23 जुलाई को किए गए विश्लेषण में नारियल, अलसी, रेपसीड और कपास के बीज जैसे वनस्पति सोर्स से प्राप्त वसा भी पाया गया था.

नए आईएएस अधिकारी की नियुक्ति
इसके बाद जून में टीडीपी सरकार ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारी जे. श्यामला राव को टीटीडी का नया कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया. उन्होंने गुणवत्ता संबंधी चिंताओं को दूर करने के प्रयासों के तहत, लड्डू के स्वाद और बनावट से संबंधित मुद्दों की जांच के आदेश दिए.

यह भी पढ़ें- क्या है 'बीफ टैलो'? तिरुपति बालाजी में मिलने वालों लड्डुओं में जिसका हो रहा था इस्तेमाल

Last Updated : 2 hours ago
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