उत्तरकाशी: 30 मई 1930 का दिन, जिसे आज भी उत्तरकाशी के लोग भूल नहीं पाते हैं. ये वो दिन था जब तिलाड़ी में 20 लोगों की नृशंस हत्या कर दी गई थी. इसके अलावा कई लोग ऐसे थे जो अपनी जान बचाने के लिए यमुना में कूद गये थे. टिहरी राजशाही द्वारा अंजाम दिये गए इस नृशंस हत्याकांड को याद कर आज भी लोग सिहर उठते हैं. यह वह समय था जब टिहरी रियासत ने उत्तरकाशी, टिहरी सहित देहरादून के पछवादून चकराता आदि के इलाकों में वन सम्बन्धी हक हकूकों पर कर लगा दी थी. इसके अलावा राजशाही ने ग्रामीणों से खेतों और जंगलों पर से भी अधिकार छीन लिया था.
टिहरी रियासत ने साल 1929-30 में वनों से राजस्व प्राप्त करने के लिए टिहरी राजशाही के अंतर्गत आने वाले उत्तरकाशी, रवांई परगना, टिहरी, चकराता, जौनसार बावर के ग्रामीणों के खेतों के मुनारों तक सीमांकन कर उनके वन संबंधी हक-हकूकों पर रोक लगा दी थी. साथ ही आग जलाने के प्रयोग में लाई जाने वाली लकड़ी पर भी टिहरी रियासत ने कर लगा दिया था. जिसके बाद ग्रामीणों ने इन पाबंदियों का विरोध शुरू किया. जौनसार-बावर में ग्रामीणों की महापंचायत होने के बाद 30 मई 1930 को यमुना नदी के किनारे तिलाड़ी नामें तोक पर बैठक का आयोजन किया जा रहा था. जिसमें रवांई परगना और उत्तरकाशी के दसगी पट्टी के ग्रामीण शामिल थे. इस बैठक में राजशाही के नियमों के खिलाफ आंदोलन की रणनीति बनाई जा रही थी.
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