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उत्तरकाशी: बुजुर्ग ने इंस्टीट्यूशनल क्वारंटाइन और होम क्वारंटाइन पर दिए तर्क, पहले के समय में हो चुका है इसका प्रयोग - उत्तरकाशी न्यूज

उत्तरकाशी के भंगेली गांव के बुजुर्ग नरेंद्र सिंह राणा ने इंस्टीट्यूशनल क्वारंटाइन और होम क्वारंटाइन पर अपनी बात रखी. उन्होंने बताया कि पहले के समय में ग्रामीण क्षेत्र में जब व्यक्ति को चेचक महामारी होती थी, तो उसे गांव से दूर गुफाओं में रखा जाता था और वहां कोई भी नहीं जाता था.

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बुजुर्ग ने इंस्टिट्यूशनल क्वारीनटाइन और होम क्वारीनटाइन पर दिए तर्क

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Published : Apr 30, 2020, 6:18 PM IST

उत्तरकाशी:विश्व व्यापी कोरोना के संक्रमण के चलते इंस्टीट्यूशनल क्वारंटाइन हो या होम क्वारंटाइन, नई पीढ़ी को एक नई चीज देखने को मिल रही है. मेडिकल साइंस का कहना है, कि कोरोना से बचने का एक मात्र सरल उपाय यही दोनों विधियां हैं. लेकिन जिसे मेडिकल साइंस आज अपना रहा है. इससे पहले पहाड़ी क्षेत्रों में हमारी पुरानी पीढ़ियां इस विधि को इजात कर चुकी हैं और उस दौर की महामारियों के संकट से जूझ चुकी हैं. साथ ही महामारी पर काबू भी पाया है.

उत्तरकाशी के भंगेली गांव के बुजुर्ग नरेंद्र सिंह राणा का कहना है, कि आज से करीब 70 से 80 साल पहले पहाड़ों पर चेचक महामारी फैली हुई थी. इस महामारी से एक बड़ा क्षेत्र प्रभावित था. उस समय न तो मेडिकल साइंस था और न ही पहाड़ों पर डॉक्टर. इस दौरान ग्रामीण चेचक से संक्रमित व्यक्ति को गांव से दूर गुफाओं में रखते थे, जिसे आज की भाषा मे इंस्टीट्यूशनल क्वारंटाइन कहा जाता है. उन्होंने बताया कि इलाज और देखभाल संक्रमित व्यक्ति खुद ही करता था. गांव का कोई भी अन्य व्यक्ति उस स्थान पर नहीं जाता था.

जानिए क्या कहते हैं बुजुर्ग.

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बुजुर्ग नरेंद्र सिंह राणा ने बताया, कि संक्रमित व्यक्तियों को एक निश्चित स्थान पर ही जाने दिया जाता था. जब संक्रमित व्यक्ति एक-दो महीने में स्वस्थ्य होता था तो उसे गांव ला कर कुछ दिनों के लिए गौशाला में होम क्वारंटाइन किया जाता था. जब संक्रमित व्यक्ति पूरी तरह से ठीक हो जाता था, तब ही उसे घर के भीतर आने की इजाजत होती थी. उन्होंने बताया कि उस समय भी ग्रामीण अपने गांव की सीमाओं को सील कर बाहरी व्यक्ति के आने पर पूर्णत: पाबंदी लगाते थे. यह क्रम पहाड़ों पर करीब एक साल तक चला था.

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