उत्तरकाशी:विश्व व्यापी कोरोना के संक्रमण के चलते इंस्टीट्यूशनल क्वारंटाइन हो या होम क्वारंटाइन, नई पीढ़ी को एक नई चीज देखने को मिल रही है. मेडिकल साइंस का कहना है, कि कोरोना से बचने का एक मात्र सरल उपाय यही दोनों विधियां हैं. लेकिन जिसे मेडिकल साइंस आज अपना रहा है. इससे पहले पहाड़ी क्षेत्रों में हमारी पुरानी पीढ़ियां इस विधि को इजात कर चुकी हैं और उस दौर की महामारियों के संकट से जूझ चुकी हैं. साथ ही महामारी पर काबू भी पाया है.
उत्तरकाशी के भंगेली गांव के बुजुर्ग नरेंद्र सिंह राणा का कहना है, कि आज से करीब 70 से 80 साल पहले पहाड़ों पर चेचक महामारी फैली हुई थी. इस महामारी से एक बड़ा क्षेत्र प्रभावित था. उस समय न तो मेडिकल साइंस था और न ही पहाड़ों पर डॉक्टर. इस दौरान ग्रामीण चेचक से संक्रमित व्यक्ति को गांव से दूर गुफाओं में रखते थे, जिसे आज की भाषा मे इंस्टीट्यूशनल क्वारंटाइन कहा जाता है. उन्होंने बताया कि इलाज और देखभाल संक्रमित व्यक्ति खुद ही करता था. गांव का कोई भी अन्य व्यक्ति उस स्थान पर नहीं जाता था.