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150 साल बाद शिकागो में पहाड़ की सावित्री ने बजाया भारत का डंका, उत्तराखंड की ओर खींचा दुनियाभर का ध्यान - uttarakhand

सावित्री ने अमेरिका में दो टूक कहा कि भारत की महिलाओं में स्वास्थ्य जागरूकता की कमी है. यही कारण है कि उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा दम तोड़ देते हैं.

सावित्री ने बजाया भारत का डंका

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Published : Apr 22, 2019, 6:49 PM IST

उत्तरकाशी: उत्तराखंड के छोटे से गांव से निकलकर अमेरिका के शिकागो, बोस्टन, कैलिफोर्नियां और न्यूयार्क में अपने ठेठ पहाड़ी अंदाज में संबोधन देने वाली सावित्री आज सेलिब्रिटी बन चुकी हैं. पहाड़ों में गर्भवती महिलाओं को मिलने स्वास्थ्य सुविधाओं पर जिस तरह सावित्री ने अपने बेबाक विचार रखे, उसे वहां खुब सराहा गया. शिकागो में तो सावित्री विदेशी मीडिया से भी रूबरू हुईं.

नौगांव विकासखंड के छामरोटा गांव की रहने वाली सावित्री ने अमेरिका में दो टूक कहा कि भारत की महिलाओं में स्वास्थ्य जागरूकता की कमी है. यही कारण है कि उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा दम तोड़ देते हैं. इन विषम परिस्थितियों में आशा कार्यकर्ता जच्चा-बच्चा की जीवन रक्षा का काम कर रही हैं और यही उनके जीवन का एकमात्र ध्येय भी है. इस दौरान उत्तराखंड की स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर सावित्री ने मंच पर जो विचार रखे उसने दुनियाभर का ध्यान उत्तराखंड की तरफ खींचा.

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सावित्री जागरूक आशा कार्यकर्ता के रूप में खुब सराही जाती हैं. आशा होने के साथ ही वह इंडो अमेरिकन फांउडेशन से भी जुड़ी हैं, जो पहाड़ों की गर्भवती महिलाओं व बच्चों के स्वास्थ्य पर कार्य करती हैं. प्रसव से पहले स्वास्थ्य की जांच करना, अस्पताल में प्रसव करवाना, नवजात को कुपोषण से बचाना और परिवार नियोजन करवाना उनकी प्राथमिकताओं में शामिल है.

गांव में पढ़ी-लिखी और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने के कारण वर्ष 2007 में सावित्री का चयन आशा कार्यकर्ता में रूप में हुआ. काम के दौरान सावित्री अमेरिकन-इंडियन फाउंडेशन और आंचल चेरिटेबल ट्रस्ट के सहयोग से संचालित मेटरनल एंड न्यू बोर्न सर्वाइवल इनीशिएटिव (मानसी) से हुआ. अमेरिकन-इंडियन फाउंडेशन ने सावित्री के काम को परखने के बाद उन्हें अमेरिका बुलाया गया था. अमेरिका में सावित्री ने 15 मार्च से 30 मार्च के मध्य उत्तराखंड के स्वास्थ्य हालत पर अपना संबोधन दिया था. यह वही मंच था जहां से प्रधानमंत्री मोदी और 150 साल पहले स्वामी विवेकानन्द ने अपनी शिकागो यात्रा के दौरान दुनिया को संबोधित किया था.

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