रुद्रप्रयागः जिले के रानीगढ़ पट्टी के जसोली गांव में सिद्धपीठ हरियाली देवी की ऐतिहासिक कांठा यात्रा धनतेरस पर्व पर गुरुवार शाम को निकाली जायेगी. इस अवसर पर हरियाली देवी की डोली को फूल-मालाओं से सजाया जायेगा और रजत प्रतिमा के साथ जसोली मंदिर से मां हरियाली देवी के मायके हरियाल पर्वत के लिए यात्रा रवाना होगी. यह यात्रा रात के समय की जाती है, जिसमें देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं.
हर वर्ष धनतेरस पर्व पर सिद्धपीठ मां हरियाली देवी की यात्रा का आगाज होता है. इस बार धनतेरस पर्व बृहस्पतिवार के दिन मनाया जा रहा है. यात्रा को लेकर स्थानीय ग्रामीणों से लेकर प्रवासियों में खासा उत्साह बना हुआ है. हरियाली देवी योगमाया का बाल स्वरूप मानी गई हैं, जो शुद्ध स्वरूप में वैष्णवी तुल्य हैं. यात्रा में जसोली गांव की स्थानीय महिलाओं द्वारा मांगलिक गायनों के साथ हरियाली देवी की डोली को हरियाली पर्वत की ओर विदा किया जाता है.
ढोल नगाड़ों तथा शंख की ध्वनि के साथ हजारों श्रद्धालुओ की मौजूदगी में जसोली गांव से हरियाली देवी की डोली हरियाल पर्वत की ओर रवाना होती है. हरियाल पर्वत मां हरियाली देवी का मूल उत्पत्ति स्थान है, जिसे देवी का मायका माना जाता है.
मूल मायका होने के कारण साल में दीपावली पर्व पर मां हरियाली की डोली को हरियाल पर्वत ले जाने की यह पौराणिक परंपरा है. जिसको हरियाली देवी कांठा यात्रा का स्वरूप दिया गया है. यात्रा के दौरान देवी के धर्म भाई हीत और लाटू के निशान हरियाली देवी डोली की अगुवाई करते हैं. देश की यह एक मात्र ऐतिहासिक देव यात्रा है, जो रात के पहर में की जाती है. इस यात्रा में हजारों श्रद्धालु मां हरियाली की डोली के साथ जसोली गांव से दस किमी पैदल चलकर हरियाली के घने वनों के बीच से होकर अगले दिन सुबह पांच बजे हरियाल पर्वत देवी के मायके मूल मंदिर में पहुंचते हैं. इस स्थान पर देवी के मायके पाबो गांव के लोग डोली का भव्य स्वागत कर देवी को हरियाल पर्वत मंदिर में विराजमान करते हैं.
पर्यावरण प्रेमी देवराघवेन्द्र कहते हैं कि योगमाया का बाल स्वरूप हरियाली देवी हैं और योग माया श्रीकृष्ण की बहन. हर वर्ष धनतेरस पर यह ऐतिहासिक यात्रा निकाली जाती है, जिसमें देश-विदेश से भक्त सात दिन पहले ही तामसी भोजन छोड़कर यात्रा में भाग लेते हैं. उन्होंने कहा कि यह यात्रा खास मानी जाती है.
हरियाली देवी यात्रा के चार पड़ाव