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अलकनंदा-मंदाकिनी के संगम पर चल रही पांडव लीला, बाणों का कौथिग बना आकर्षण

8 नवंबर से शुरू हुए पांडव नृत्य में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. इस कार्यक्रम का आयोजन अलकनंदा-मंदाकिनी संगम स्थल पर होता है. मान्यता है कि स्वर्ग जाते समय पांडव अलकनंदा व मंदाकिनी नदी किनारे से होकर स्वर्गारोहणी तक गए. इसी कारण उत्तराखंड में पांडव पूजन की विशेष परंपरा है.

पांडव नृत्य में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़.

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Published : Nov 16, 2019, 4:53 PM IST

Updated : Nov 16, 2019, 5:14 PM IST

रुद्रप्रयाग: ग्राम पंचायत दरमोला भरदार में पांडव नृत्य कार्यक्रम में बाणों का कौथिग आकर्षण का केन्द्र बना रहा. इस अवसर पर दूर-दराज क्षेत्रों से आए भक्तों ने भगवान बदरी विशाल और शंकरनाथ देवता के दर्शन किए और उनका आशीर्वाद लिया. 29 नवंबर को प्रसाद वितरण करके पांडव नृत्य का समापन कर दिया जाएगा.

पांडव नृत्य में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़.

बीते 8 नवम्बर (एकादशी पर्व) से शुरू हुए पांडव नृत्य का आयोजन अलकनंदा-मंदाकिनी संगम स्थल पर हुआ था. हर दिन पांडव नृत्य में सुबह के समय पूड़ी प्रसाद और खीर बनाकर भगवान बदरी विशाल के साथ अन्य देवताओं को इसका भोग लगाया जाता है. पुजारी पांडव के अस्त्र-शस्त्रों के साथ देव निशानों की विशेष पूजा-अर्चना कर आरती करते हैं. इसके बाद चारों दिशाओं की पूजा और देवताओं का आह्वान किया जाता है. पांडव नृत्य में बाणों के कौथिग का नृत्य आकर्षण का केन्द्र रहा.

बदरी विशाल को लगाए गए भोग को भक्तों में प्रसाद के रूप में वितरित किया गया. पांडव नृत्य देखने के लिए प्रतिदिन दरमोला, तरवाडी, स्वीली, सेम, डुंग्री, जवाड़ी, मेदनपुर, रौठिया समेत कई दूर-दराज क्षेत्रों से ग्रामीण पहुंच रहे हैं. सैकड़ों भक्त भगवान बदरीनाथ और शंकरनाथ देवता के दर्शन कर रहे हैं.

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पांडव नृत्य समिति दरमोला के अध्यक्ष जसपाल सिंह पंवार ने बताया कि 27 नवंबर को नौगरी का कौथिग, 28 नवंबर को गेंडे का कौथिग और सिरोता एवं 29 नवंबर को नारायण के फल वितरण के साथ पांडव नृत्य का विधिवत समापन किया जाएगा.

क्या है पौराणिक मान्यता?

मान्यता है कि स्वर्ग जाते समय पांडव अलकनंदा व मंदाकिनी नदी किनारे से होकर स्वर्गारोहणी तक गए. इसी कारण उत्तराखंड में पांडव पूजन की विशेष परंपरा है. बताया जाता है कि स्वर्ग जाने से पहले भगवान कृष्ण के आदेश पर पांडव अपने अस्त्र-शस्त्र पहाड़ में छोड़कर मोक्ष के लिए स्वर्ग की ओर चले गए थे. जिन स्थानों पर यह अस्त्र छोड़ गए थे, उन स्थानों पर विशेष तौर से पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है और इन्हीं अस्त्र-शस्त्रों के साथ पांडव नृत्य किये जाते हैं.

केदारघाटी में पांडव नृत्य अधिकांश गांवों में आयोजित किए जाते हैं, लेकिन अलकनंदा व मंदाकनी नदी के किनारे वाले क्षेत्रों में पांडव नृत्य अस्त्र-शस्त्रों के साथ आजोयित होते हैं. वहीं, पौड़ी जिले के कई क्षेत्रों में मंडाण के साथ यह भव्य रूप से आयोजित होता है.

कैसा होता है पांडव नृत्य?

  • नृत्य के दौरान पांडवों के जन्म से लेकर मोक्ष तक का सजीव चित्रण किया जाता है.
  • पांडव नृत्य में पांडव आवेश में परम्परागत वाद्य यंत्रों की थाप और धुनों पर नाचते हैं.
  • युद्ध की पुरानी विधाओं जैसे- चक्रव्यू, कमल व्यू, गरुड़ व्यू, मकर व्यू आदि का भी आयोजन होता है.
  • रात में पांडव लीला के आयोजन में महाभारत की कथाओं का मंचन भी होता है.
  • नृत्य में सबसे आर्कषक होता है चक्रव्यूह नाटक.
  • नाटक में महाभारत की उस कथा का मंचन किया जाता है, जिसमें गुरू द्रोणाचार्य के रचे गये 'चक्रव्यूह' भेदन का प्रकरण है.
  • चक्रव्यूह के सातवें द्वार पर आकर कौरवों ने मिलकर अर्जुन पुत्र अभिमन्यु का वध कर दिया था.
  • चक्रव्यूह के सात द्वार रंग-बिरंगे कपड़ों से बनाए जाते हैं.
  • पांडव नृत्यों का आयोजन 21 से लेकर 45 दिन तक का होता है.
  • पांडवों के अस्त्र-शस्त्रों में बाणों की पूजा की परंपरा मुख्य है.
  • पांडव नृत्य में औसतन 18 प्रकार के तालों पर नृत्‍य होता है.
Last Updated : Nov 16, 2019, 5:14 PM IST

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