पिथौरागढ़: जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले जनजातीय समुदाय के लोग पारंपरिक रूप से जड़ी-बूटियों का कारोबार करते आ रहे हैं. खास तौर पर भोटिया और शौका समुदाय के लोग उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पायी जाने वाली जड़ी-बूटियों और प्राकृतिक उत्पादों की जानकारी रखते हैं. वे इन्हें इकट्ठा करके प्रमुख व्यापार केंद्रों में बेचते हैं. जड़ी-बूटी कारोबार से ही सीमांत के हजारों परिवारों की आजीविका चलती हैं. ये जड़ी-बूटियां कई लाइलाज रोगों के लिए रामबाण साबित होती हैं.
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मेडिकल सुविधाओं के अभाव में यहां रहने वाले लोग इन जड़ी बूटियों का प्रयोग कर अपना इलाज करते हैं. प्रत्येक गांव में स्वास्थ्य उपचार के लिए वैद्य (लामा) होते हैं. जिन्हें पादप प्रजातियों की सटीक जानकारी होती है. वे इनका इस्तेमाल उपचार के लिए करते हैं.
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उत्तराखण्ड में किये गये एक अध्ययन के अनुसार यहां पायी जाने वाली 300 पादप प्रजातियों का उपयोग 114 रोगों के निवारण के लिए किया जाता है. अकेले भोटिया जनजाति के लोग 78 पादप प्रजातियों का पारम्परिक ज्ञान रखते हैं, जो 68 प्रकार के रोगों के निवारण के लिए प्रयोग में लायी जाती हैं. जड़ी-बूटी आधारित स्वास्थ्य प्रणाली भारत के साथ ही कई देशों में प्रचलित हैं. जड़ी बूटियों के महत्व को देखते हुए इसके प्रयोग में बढ़ोत्तरी हुई है.
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उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली जड़ी बूटियां:हिमालयी क्षेत्र में पैदा होने वाली लटजीरा, पतीस, अतीस, बक्राण्डा, गुरबच, सुनकिया, जम्बू, दूमा, परगोनी, कनम, गोबका, छिपा, यालब, बाख, बालछड़, पाती, रुद्रवंती, सिरकुटी, सिलफाड़ा, सालमपंजा गरुड़ पंजा, जड़वार, जटामांसी, सालम मिश्री, कूटकी, कूट, बनककड़ी, भोटिया चाय, सिरजुम, वज्रदन्ती, डोलू, थुनेर, बनपासा, तिमूर, हत्थाजड़ी, वनककड़ी इत्यादि पादप प्रजातियां विभिन्न रोगों के इलाज में अचूक साबित होती हैं. यही वजह है कि इनका दोहन प्रचुर मात्रा में किया जाता है. अत्यधिक दोहन के कारण कई दुर्लभ जड़ी बूटियां विलुप्ति की कगार पर हैं.