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चौपखिया मेले में उमड़ा आस्था का सैलाब, 500 साल पुराना है इतिहास

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Published : Oct 15, 2021, 1:40 PM IST

नेपाल सीमा पर सदियों से मनाया जा रहा चौमू देवता का मेला लोगों की आस्था से जुड़ा हुआ है. मेले के लिए लोग दूर-दूर से खिंचे चले आते हैं. इस मेले को चौपखिया मेले के नाम से भी जाना जाता है. इसका इतिहास 500 साल पुराना है.

Pithoragarh
चौपखिया मेला

पिथौरागढ़: सोरघाटी पिथौरागढ़ के वड्डा क्षेत्र में पिछले 500 सालों से ऐतिहासिक चौमू देवता का मेला आयोजित होता आ रहा है. इस मेले को चौपखिया मेले के नाम से भी जाना जाता है. मेले में शिरकत करने के लिए दूर-दूर से लोग खिंचे चले आते हैं.

नेपाल सीमा पर सदियों से मनाया जा रहा चौमू देवता का मेला आस्था के जुनून को दर्शा रहा है. चौमू देवता को भगवान शिव के 7 रूपों में से एक माना जाता है. मान्यता है कि सीमांत इलाके में लोगों की सुख-समृद्धि के लिए 5 शताब्दी पूर्व चौमू देवता इस इलाके में आये थे. तभी से नवरात्रियों में इस पर्व को मनाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है.

500 साल पुराना मेला

माना जाता है कि चौमू देवता के प्रसन्न होने पर फसल अच्छी होती है और क्षेत्र में किसी प्रकार की आपदा नहीं आती. मुख्य रूप से इस मेले में कृषि यंत्रों की बिक्री की जाती है. इस मौके पर कृषि यंत्रों को खरीदना शुभ माना जाता है.

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इस मेले का खास आकर्षण है चौमू देवता का डोला, जिसे कंधा देने के लिए श्रद्धालुओं में होड़ मची रहती है. मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु पवित्र मन से इस डोले को कंधा देता है, उसकी सारी मनोकामना पूरी होती है. ये पर्व हजारों लोगों को एक सूत्र में बांधने के साथ ही लोगों को उनकी सांस्कृतिक विरासत से भी रूबरू कराता है. इस मेले को देखने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं. तेजी से बदलते इस दौर में जहां लोग अपनी संस्कृति और सभ्यता को भूलते जा रहे हैं, वहीं पर्वतीय अंचलों में लोगों का अपनी संस्कृति के प्रति ये प्रेम एक अनूठा उदाहरण पेश कर रहा है. इस बार कई गांवों से पहुंचे लोगों ने चौमू बाबा के दरबार में शीश नवाया और सुख-समृद्धि की कामना की. इसी के साथ मेला धूमधाम से संपन्न हुआ.

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