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वन अनुसंधान केंद्र ने संरक्षित कीं 40 से ज्यादा जड़ी-बूटियां, माणा में बनाया हर्बल गार्डन

उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र ने चमोली जिले में 11 हजार फीट की ऊंचाई पर हर्बल गार्डन स्थापित किया है. इसमें 40 से अधिक ऐसी दुर्लभ जड़ी-बूटियों की प्रजातियां संरक्षित की हैं जो उच्च हिमालयी अल्पाइन क्षेत्रों में पाई जाती हैं. इस हर्बल गार्डन की स्थापना चमोली के माणा गांव में की गई है. माणा बदरीनाथ के आगे देश का आखिरी बॉर्डर गांव है.

Uttarakhand Research Centre
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Published : Aug 23, 2021, 5:59 PM IST

हल्द्वानी:उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र अपनी कई उपलब्धियों के लिए पहचान बना चुका है. ऐसे में अनुसंधान केंद्र ने एक बार फिर से जैव विविधता के क्षेत्र में चमोली जिले में 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित भारत के सबसे अधिक ऊंचाई वाले हर्बल गार्डन का रविवार को उद्घाटन किया. माणा, चीन की सीमा से लगे चमोली जिले का अंतिम गांव है और प्रसिद्ध बदरीनाथ मंदिर के निकट है.

मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी ने कहा, 'इस उच्च ऊंचाई वाले हर्बल पार्क का मुख्य उद्देश्य विभिन्न औषधीय और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण अल्पाइन प्रजातियों का संरक्षण करना और उनके प्रसार और आवास पारिस्थितिकी पर शोध करना है.' बता दें, इस गार्डन को उत्तराखंड वन विभाग के अनुसंधान विंग द्वारा माणा वन पंचायत द्वारा दी गई भूमि पर 03 एकड़ क्षेत्र में विकसित किया गया है. केंद्र सरकार की प्रतिपूरक वनरोपण प्रबन्धन निधि तथा योजना प्राधिकरण (CAMPA) योजना के तहत पार्क को तीन साल में विकसित किया गया है.

यह हर्बल पार्क लगभग 40 दुर्लभ प्रजातियों को प्रदर्शित करता है, जो भारतीय हिमालयी क्षेत्र में उच्च ऊंचाई वाले अल्पाइन क्षेत्रों में पाए जाते हैं. इनमें से कई प्रजातियां लुप्तप्राय हैं और आईयूसीएल लाल सूची के साथ-साथ राज्य जैव विविधता बोर्ड द्वारा खतरे में बताई गई हैं. इसमें कई महत्वपूर्ण औषधीय जड़ी-बूटियां भी शामिल हैं.

पार्क को 04 सेक्शन में बांटा गया: पहले खंड में भगवान बदरीनाथ से जुड़ी प्रजातियां शामिल हैं. इनमें बदरी तुलसी, बदरी बेर, बदरी वृक्ष और भोजपत्र का पवित्र वृक्ष शामिल हैं. बदरी तुलसी जिसे वैज्ञानिक रूप से ओरिगनम वल्गारे नाम दिया गया है, इस क्षेत्र में पायी जाती है और भगवान बदरीनाथ को चढ़ाने का महत्वपूर्ण हिस्सा है. विभिन्न शोधों ने इसके कई औषधीय लाभों को स्थापित किया है. बदरी बेर, जिसे वैज्ञानिक रूप से हिप्पोफा सैलिसिफोलिया के रूप में जाना जाता है और स्थानीय रूप से अमेश के रूप में जाना जाता है. यह बहुत ही पोषण युक्त फल है और व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है.

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दूसरा सेक्शन: इस वर्ग में अष्टवर्ग की प्रजातियां शामिल हैं, जो 8 जड़ी-बूटियों का एक समूह है. यह जड़ी बूटियां हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाती हैं, जैसे कि रिद्धि (हैबेनेरिया इंटरमीडिया), वृद्धि (हैबेनेरिया एडगेवर्थी), जीवक (मैलैक्सिस एक्यूमिनाटा), ऋषभक (मलैक्सिस मुस्सिफेरा), काकोली (फ्रिटिलारिया रॉयली), क्षीर काकोली (लिलियम पॉलीफाइलम), मैदा (प्लॉयगोनैटम सिरिफोलियम) और महा मैदा (पॉलीगोनाटम वर्टिसिलैटम) जो च्यवनप्राश के सबसे महत्वपूर्ण तत्व हैं. इनमें से चार जड़ी-बूटियां लिली परिवार की हैं और 4 आर्किड परिवार की हैं. इनमें से काकोली, क्षीर काकोली और ऋषभक बहुत दुर्लभ हो गए हैं, हालांकि अन्य भी बहुत आम नहीं हैं.

तीसरा सेक्शन: यह वर्ग सौसुरिया प्रजाति से युक्त है. इसमें ब्रह्मकमल (सौसुरिया ओबवल्लता) शामिल है, जो उत्तराखंड का राज्य फूल भी होता है. इसके अलावा अन्य तीन सौसुरिया प्रजातियां- फेकमकल (सौसुरिया सिम्पसनियाना), नीलकमल (सौसुरिया ग्रैमिनिफोलिया) और कूट (सौसुरिया कोस्टस) भी यहाँ उगाई गई हैं.

चौथा सेक्शन:इस वर्ग में विविध महत्वपूर्ण अल्पाइन प्रजातियों को शामिल करता है. इनमें अतीश, मीठाविश, वनककड़ी, और कोरू शामिल हैं, जो सभी बहुत महत्वपूर्ण औषधीय जड़ी-बूटियां हैं. इसके अलावा थूनर (टैक्सस वालिचिआना) के पेड़ जिनकी छाल का उपयोग कैंसर रोधी दवाएं बनाने में किया जाता है, तानसेन और मेपल के पेड़ भी यहां उगाए गए हैं.

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