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दीपावली आते ही मंडराया उल्लू पर खतरा, तंत्र साधना में दी जाती है बलि

दीपावली के समय उल्लू की मांग अधिक बढ़ जाती है. तांत्रिक जादू टोना आदि तंत्र विद्या के लिए आरोह अवरोह का पाठ करते हुए उल्लू की बलि देते हैं. उल्लू की तस्करी को देखते हुए जंगलों में गश्त बढ़ा दी गई है.

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Published : Oct 24, 2019, 9:19 AM IST

Updated : Oct 24, 2019, 12:01 PM IST

उल्लू

रामनगरःअंधविश्वास के चलते एक विलुप्त होती प्रजाति को खतरा बढ़ गया है. यह खतरा तब और अधिक बढ़ जाता है जब दीपावली का त्योहार आता है. हम बात कर रहे है मां लक्ष्मी के वाहन उल्लू की जिसकी जान को इस त्योहार में अधिक खतरा बढ़ जाता है. कहा जाता है कि तांत्रिक दीपावली पर जादू टोना तंत्र-मंत्र और साधना के लिए उल्लू की बलि देकर रिद्धि-सिद्धि प्राप्त करते हैं. वहीं दूसरी ओर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व ने उल्लू की तस्करी करने वालों पर लगाम कसने के लिए जंगल में गश्त बढ़ा दी है.

तस्करों की उल्लू पर नजर.

दीपावली के शुभ मौके पर लोग लक्ष्मी की पूजा करते हैं, परंतु कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अंधविश्वास के चलते मां लक्ष्मी का वाहन कहे जाने वाले उल्लू की जान के पीछे पड़ जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि तांत्रिक जादू टोना तंत्र-मंत्र और साधना विद्या में उल्लू का प्रयोग करते हैं. उल्लू की बलि दिए जाने से तंत्र मंत्र विद्या को अधिक बल मिलता है. इसकी बलि दी जाने से जादू टोना बहुत कारगार सिद्ध होते हैं.

जानकारों की मानें तो दीपावली के समय में उल्लू की मांग अधिक बढ़ जाती है. जिसके चलते लोग उल्लुओं को पकड़ने के लिए जंगलों की ओर रुख करते हैं. बताया जा रहा कि कई प्रदेशों में उल्लू की अधिक मांग होती है. इस अंधविश्वास के चलते दुर्लभ होती प्रजाति पर लोग अत्याचार कर रहे हैं.

उल्लुओं के मारे जाने से ईको सिस्टम पर भी इसका असर पड़ता है. शास्त्रों की नजर से देखें तो उल्लू मां भगवती का वाहन है. उल्लू की आंख में उसकी देह की तीन शक्तियों का वास माना जाता है. उल्लू के मुख्य मंडल, उसके पंजे, पंख, मस्तिष्क, मांस उसकी हड्डियों का तंत्र विद्या में बहुत महत्व माना जाता है जिनका तांत्रिक दुरुपयोग करते हैं. शास्त्रों के जानकारों के अनुसार दीपावली पर मां लक्ष्मी को खुश करके अपने यहां बुलाने के लिए कुछ लोग उल्लू की बलि देते हैं और इस मौके पर लाखों रुपए खर्च करके उल्लू की व्यवस्था करके रखते हैं.

बताया यह भी जाता है कि दीपावली के समय दक्षिण भारत की यह परंपरा है. दक्षिणी भारत में दाक्षडात्य ब्रित और रावण संगीता नामक शास्त्रों में उल्लेख है कि उल्लू की बलि दिए जाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं, लेकिन कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं हैं. उनका मानना है कि मां लक्ष्मी का वाहन कहे जाने वाले उल्लू की जब आप बलि देंगे तो मां लक्ष्मी कैसे प्रसन्न हो सकती हैं. जानकार यह भी बताते हैं कि दीपावली में आज से लेकर अमावस्या तक सभी दिन साधना के दिन कहे जाते हैं.

लोग दिन और रात साधना करते हैं. कुछ लोग अपने कल्याण के लिए इन दिनों सिद्धि करते हैं और कुछ लोग साधना का दुरुपयोग करते हैं. तांत्रिक जादू टोना आदि तंत्र विद्या के लिए आरोह अवरोह का पाठ करते उल्लू की बलि देते हैं. बावजूद इसके जानकारों का कहना है कि लोगों को अपनी वैदिक परंपरा का पालन करते हुए अपना और अपने समाज का कल्याण करना चाहिए. इसके लिए एक निर्बल प्राणी की बलि देना महापाप है और यह आवश्यक नहीं है.

वहीं, दीपावली पर तस्कर उल्लू पकड़ने के लिए जंगल का रुख करते हैं. ऐसे में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व का जंगल उनकी आंखों में खटकने लगता है क्योंकि कॉर्बेट में 600 से अधिक प्रजाति के पक्षी पाए जाते हैं जिसमें से अकेले उल्लू की ही कई प्रजातियां पायी जाती हैं. उल्लू की तस्करी करने वालों के लिए यहां का जंगल बड़ा मुफीद होता है.

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दीपावली के मौके पर उल्लू का शिकार या उसकी तस्करी किसी भी सूरत में रोकने के लिए कॉर्बेट प्रशासन ने कमर कस ली है. कॉर्बेट की एसओजी टीम द्वारा यूपी से लगी दक्षिणी सीमा पर गश्त की जा रही है और चौकसी को और टाइट किया गया है. साथ ही ऐसे लोगों पर भी नजर रखी जा रही है जो उल्लू की तस्करी में शामिल रहते हैं. उनका पूरा डेटा इकट्ठा किया जा रहा है.

आज के डिजिटल युग में उल्लू जैसे पक्षी की बलि देकर अपने कष्टों को दूर करने की सोच रखने वाले यह भूल जाते हैं कि जिसको वह खुश करने का प्रयास कर रहे हैं असल में वह मां भगवती का वाहन है, मां लक्ष्मी कैसे उनसे प्रसन्न हो सकती हैं लेकिन मनुष्य मोह माया उन्नति के चक्कर में पड़ कर सब भूल जाता है. यदि मनुष्य को उन्नति के पथ पर चलना है तो उसे अंधविश्वास का चढ़ा चश्मा उतारना होगा और अच्छे कर्म करने पड़ेंगे.

Last Updated : Oct 24, 2019, 12:01 PM IST

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