नैनीताल: उत्तराखंड में लोकायुक्त की नियुक्ति और लोकायुक्त संस्थान को सुचारू किए जाने के मामले पर नैनीताल हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को 3 हफ्ते के भीतर जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं. नैनीताल हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है कि वह एक अतिरिक्त शपथ पत्र दाखिल करे. शपथ पत्र के माध्यम से सरकार यह बताए कि लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए आज तक उन्होंने क्या किया है. शपथ पत्र में संस्थान बनने से 31 मार्च 2023 तक वर्षवार कितना खर्च किया गया, इस पूरे खर्च का विवरण भी पेश करें. वहीं, मामले की अगली सुनवाई की तारीख 8 मई तय की गई है.
लोकायुक्त पर हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति व लोकायुक्त संस्थान को सुचारू रूप से सचालित किए जाने को लेकर हल्द्वानी गौलापार निवासी रवि शंकर जोशी की जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने राज्य सरकार से शपथ पत्र के माध्यम से कोर्ट को यह बताने को कहा है कि लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए अभी तक क्या किया. संस्थान जब से बना है तब से 31 मार्च 2023 तक इसपर कितना खर्च हुआ, इसका वर्षवार विवरण पेश करें. मामले की अगली सुनवाई के लिए 8 मई की तिथि नियत की है.
याचिकाकर्ता ने कहा लोकायुक्त के नाम पर खर्च हो रहे हर साल 3 करोड़: जनहित याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने अभी तक लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की. जबकि संस्थान के नाम पर वार्षिक 2 से 3 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं. जनहित याचिका में कहा गया है कि कर्नाटक में और मध्य प्रदेश में लोकायुक्त द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जा रही है. परंतु उत्तराखंड में तमाम घोटाले हो रहे हैं. हर एक छोटे से छोटा मामला उच्च न्यायालय में लाना पड़ रहा है. प्रदेश की विजिलेंस और एसआईटी जैसी जांच एजेंसियों द्वारा NH-74 मुआवजा घोटाला, समाज कल्याण विभाग में छात्रवृत्ति घोटाला, स्वास्थ्य विभाग के एनएचएम में दवा खरीद घोटाले जैसे अनेकों प्रकरणों को ठंडे बस्ते में डालने का उदाहरण देते राज्य में इसकी स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच कराने हेतु लोकायुक्त की नियुक्ति करने की मांग की गई.
सरकार के अधीन हैं सारी जांच एजेंसियां: जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि वर्तमान में राज्य की सभी जांच एजेंसी सरकार के अधीन हैं, जिसका पूरा नियंत्रण राज्य के राजनैतिक नेतृत्व के हाथों में है. वर्तमान में उत्तराखंड राज्य में कोई भी ऐसी जांच एजेंसी नहीं है "जिसके पास यह अधिकार हो कि वह बिना शासन की पूर्वानुमति के, किसी भी राजपत्रित अधिकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार का मुकदमा पंजिकृत कर सके.
उत्तराखंड को चाहिए लोकायुक्त: उत्तराखंड राज्य की वर्तमान व्यवस्था में राज्य सरकार के प्रभाव और हस्तक्षेप से मुक्त ऐसी कोई भी जांच एजेंसी नहीं है, जो मुख्यमंत्री सहित किसी भी जनप्रतिनिधि या किसी भी लोकसेवक के विरुद्ध स्वतंत्र व निष्पक्ष जांच और कार्रवाई कर सके. स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के नाम पर प्रचारित किया जाने वाला विजिलेंस विभाग भी राज्य पुलिस का ही हिस्सा है, जिसका सम्पूर्ण नियंत्रण पुलिस मुख्यालय, सतर्कता विभाग या मुख्यमंत्री कार्यालय के पास ही रहता है.
सरकारी एजेंसियों से निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं: राज्य सरकार के नियंत्रण वाली इन जांच एजेंसियों में "जांच एजेंसी को किन-किन बिंदुओं पर जांच करनी है, जांच एजेंसी में नियुक्ति व स्थानांतरण सहित सभी प्रशासनिक अधिकार, जांच समिति का बजट, चार्जशीट दाखिल करने की स्वीकृति देना, अभियोग दर्ज करने की स्वीकृति देना, जांच के दौरान जांच की पूरी मॉनिटरिंग, जांच के दौरान जांच अधिकारियों को सभी प्रकार के निर्देश देना, जांच के दौरान जांच की समीक्षा करना आदि पूरा नियंत्रण राजनैतिक नेतृत्व के हाथों में रहता है. कई बार तो जांच के बीच में ही, बिना उचित कारण के पूरी जांच एजेंसी को ही बदल दिया गया है.