नैनीताल: राज्य सरकार द्वारा 10 हेक्टेयर से कम वाले जंगलों को जंगल न मानने का मामला एक बार फिर नैनीताल हाईकोर्ट में पहुंच गया है. जंगलों को जंगल न मानने के मामले पर नैनीताल हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश सुधांशु धुलिया और आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने सख्त रुख अपनाया है. इसके साथ ही केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर 3 सप्ताह में अपना जवाब कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं.
बता दें कि देहरादून निवासी रेनू पॉल ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा कि राज्य सरकार 21 नवंबर 2019 उत्तराखंड के वन एवं पर्यावरण अनुभाग ने अधिकार वनों की परिभाषा बदल दी है. सरकार ने अपने इस आदेश में कहीं भी वन्य जीव जंतुओं का उल्लेख नहीं किया है, जिससे वन्य जीव जंतुओं के जीवन पर खतरा उत्पन्न होगा.
सरकार के आदेश को पूर्व में नैनीताल निवासी विनोद कुमार पांडे, अजय रावत ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी हैं. साथ ही राज्य सरकार द्वारा 21 नवंबर 2019 को कार्यालय आदेश जारी कर अवर्गीकृत जंगल को जंगल नहीं मानने का आदेश दिया है. साथ ही 10 हेक्टेयर से कम के जंगलों को जंगल की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है. याचिका में बताया गया है कि सरकार द्वारा उन जंगलों को भी जंगल मानने से इंकार किया गया है, जहां पर 60% से कम पेड़ों की संख्या है और उन स्थानों में स्थानीय पेड़ों की संख्या 75% से कम है.