नैनीताल: गुरुवार को प्रदेश में बड़ी धूमधाम से हरेला पर्व मनाया गया. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हरेला पर्व के मौके पर मुख्यमंत्री आवास में पौधा लगाया. यह त्योहार संपन्नता, हरियाली, पशुपालन और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है. श्रावण मास में हरेला पूजने के बाद पौधे लगाए जाने की परंपरा रही है. पौराणिक काल देवभूमि में हर तीज त्योहार के नियम बनाए गये हैं. उनमें व्यवहारिकता और विज्ञान का भरपूर उपयोग किया गया है. हरेला इसी को चरितार्थ करता है.
हरेला नई ऋतु के शुरू होने की सूचना देता है. यह त्योहार हिंदी सौर पंचांग की तिथियों के अनुसार मनाए जाता है. हरेला आमतौर पर हर साल में तीन बार मनाया जाता है. पहला शीत ऋतु की शुरुआत अश्विनी मास में जिसमें अश्विनी मास की दशमी को हरेला मनाया जाता है, दूसरा ग्रीष्म ऋतु के शुरुआत चैत्र मास में और चैत्र मास की नवमी को, तीसरा वर्षा ऋतु की शुरुआत श्रावण मास में यानी श्रावण मास की एक गते को हरेला मनाया जाता है.
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उत्तराखंड में देवाधिदेव महादेव शिव की विशेष अनुकंपा है. इस क्षेत्र में उनका वास और ससुराल होने के कारण यहां के लोगों में उनके प्रति विशेष श्रद्धा और आदर का भाव है. इसीलिए श्रावण मास के हरेले का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है. श्रावण मास के हरेले के दिन शिव परिवार की मूर्तियां बनाई जाती हैं. जिन्हें स्थानीय भाषा में डिकारे कहा जाता है, जो शुद्ध मिट्टी की से बनाई जाती हैं. इन आकृति को प्राकृतिक रंगों से शिव परिवार की प्रतिमा का आकार दिया जाता है. आज इन मूर्तियों की पूजा की जाती है.