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अंधविश्वास के फेर में दीपावली पर दी जाती है उल्लू की बलि, वन विभाग ने जारी किया अलर्ट

दीपावली आते ही हर साल उल्लुओं की जान पर खतरा मंडराने (hunting of owls on Diwali) लगता है. वजह उल्लुओं की बलि से जुड़ा अंधविश्वास है (Sacrifice Owl on Diwali). ऐसे में उल्लुओं का शिकार होने का खतरा बढ़ जाता है. इसी को लेकर वन विभाग ने दीपावली से पहले अलर्ट जारी किया (Forest department alert) और फील्ड कर्मचारियों की छुट्टियां भी कैंसिल कर दी हैं.

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Published : Oct 15, 2022, 12:15 PM IST

हल्द्वानी: दीपावली का पर्व आते ही उल्लुओं की जान पर आफत आ जाती (hunting of owls on Diwali) है. अंधविश्वास के चलते कुछ लोग दीपावली पर तंत्र साधना और सिद्धि पाने के फेर में उल्लुओं की बलि देते (Sacrifice Owl on Diwali) हैं. ऐसे में लुप्तप्राय पक्षी के संरक्षण को लेकर चिंता बढ़ गई है. यही कारण है कि वन विभाग ने अपने सभी कर्मचारियों और अधिकारियों की छुट्टियां कैंसिल कर दी (Forest department alert) हैं और जंगलों में उल्लुओं की हिफाजत के लिए गश्त बढ़ा दी गई है.

तराई पूर्वी वन प्रभाग के प्रभारी अधिकारी संदीप कुमार ने बताया कि दीपावली के मद्देनजर प्रतिबंधित वन्यजीवों की तस्करी की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में विभाग ने सभी वन कर्मियों को निर्देशित किया है कि जंगलों में गश्त बढ़ाकर शिकारियों पर नजर रखी जाए. इसके अलावा सभी फील्ड में काम करने वाले कर्मियों की छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं. विशेष परिस्थितियों में जंगलों में गश्त करने वाले वनकर्मियों को छुट्टी दी जाएगी.
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दक्षिण भारत में उल्लू की बलि प्रथा: दक्षिण भारत में दाक्षडात्य ब्रित और रावण संहिता नामक शास्त्रों में उल्लेख है कि उल्लू की बलि दिए जाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं, लेकिन कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं हैं. उनका मानना है कि मां लक्ष्मी का वाहन कहे जाने वाले उल्लू की जब आप बलि देंगे तो मां लक्ष्मी कैसे प्रसन्न हो सकती हैं? ऐसे में तांत्रिक जादू-टोना आदि तंत्र विद्या के लिए आरोह-अवरोह का पाठ करते उल्लू की बलि देते हैं. जानकारों का कहना है एक निर्बल प्राणी की बलि देना महापाप है और यह आवश्यक नहीं है. इस तरह के बलि देने से महालक्ष्मी प्रसन्न होने के बजाय अभिशाप देती हैं.

संरक्षित प्राणी है उल्लू?:भारतीय वन्य जीव अधिनियम 1972 की अनुसूची-एक के तहत विलुप्तप्राय जीवों की श्रेणी में शामिल उल्लू संरक्षित प्राणी है. इसका शिकार या तस्करी करने पर कम से कम 3 वर्ष या उससे अधिक सजा का प्रावधान है. दुनिया में उल्लू की लगभग 225 प्रजातियां हैं. पूरे उत्तराखंड की बात करें तो यहां उल्लू की 19 प्रजातियां चिह्नित की गई हैं. कार्बेट के आसपास ब्राउन फिश, टाउनी फिश, स्‍पाट बीलाइट ईगल फिश, स्‍काप आउल, ब्राउन हाक, ब्राउन वुड जैसी प्रजातियां पाई जाती हैं.
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दुनियाभर के देशों में उल्‍लू की मान्‍यता: विश्वभर की संस्कृतियों के लोकाचार में उल्लू पक्षी को भले ही अशुभ माना जाता हो, मगर यह संपन्नता प्रतीक भी है. यूनानी मान्यता में इसका संबंध कला और कौशल की देवी एथेना से माना गया है तो जापान में इसे देवताओं के संदेशवाहक के रूप में मान्यता मिली है. भारत में हिंदू मान्यता के अनुसार यह धन की देवी लक्ष्मी का वाहन है. यही मान्यता इसकी दुश्मन बन गई है. दीपावली पर उल्लू की तस्करी बढ़ जाती है. विभिन्न क्षेत्रों में दीपावली की पूर्व संध्या पर उल्लू की बलि देने के मामले सामने आते रहते हैं.

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