नैनीताल:स्टिंग मामले में फंसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की मुश्किलें बढ़ सकती है. इस मामले में सोमवार को नैनीताल में सुनवाई हुई. सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने की छूट दे दी है. कोर्ट ने कहा कि सीबीआई को कार्रवाई से नहीं रोक सकते. हालांकि कोर्ट ने सीबीआई को आदेश दिया है कि चार्जशीट दाखिल करने पहले कोर्ट को सूचित किया जाए.
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कोर्ट की इस छूट के बाद सीबीआई कभी भी हरीश रावत के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर सकती हैं. कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अगर राज्यपाल द्वारा 31 मार्च 2016 को सीबीआई जांच के आदेश गलत होता है तो सीबीआई जांच का कोई औचित्य नहीं होगा. साथ ही कोर्ट ने कहा कि अगर राज्य सरकार ने 15 जून 2016 की कैबिनेट बैठक में जांच सीबीआई से हटाकर एसआईटी सही था, तो भी सीबीआई जांच का कोई औचित्य नहीं होगा. मामले में अब 1 नवम्बर को अगली सुनवाई होगी. साथ ही बता दें कि ये जो फैसला होगा वो कोर्ट के अंतिम निर्णय के अधीन होगा.
हरीश रावत को नैनीताल हाईकोर्ट से लगा झटका इस मामले में हरीश रावत की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और देवी दत्त कामत ने बहस की. वहीं सरकार की ओर से राकेश थपलियाल, सीबीआई की तरफ से संदीप टंडन और महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर मौजूद रहे.
क्या है पूरा मामला ?
- मार्च 2016 में विधानसभा में वित्त विधेयक पर वोटिंग के बाद 9 कांग्रेस विधायकों ने बगावत कर दी थी.
- जिसके बाद एक निजी न्यूज चैनल ने विधायकों की कथित खरीद फरोख्त का स्टिंग जारी किया गया था.
- स्टिंग के आधार पर तत्कालीन राज्यपाल कृष्णकांत पॉल ने केंद्र सरकार को स्टिंग मामले की CBI जांच की संस्तुति कर भेज दी थी.
- केंद्र ने संविधान के अनुच्छेद 356 का उपयोग करते हुए रावत सरकार को बर्खास्त कर दिया था.
- बाद में हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट से हरीश रावत की सरकार बहाल हो गई थी.
- बाद में कैबिनेट बैठक में स्टिंग प्रकरण की जांच सीबीआई से हटाकर एसआईटी से कराने का निर्णय लिया गया था.
- तत्कालीन बागी विधायक और वर्तमान में कैबिनेट मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने कैबिनेट के इस निर्णय को हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी थी.