देहरादून/नैनीताल/बागेश्वरः उत्तराखंड में एक ओर कोरोना के केस तेजी से बढ़ रहे हैं तो दूसरी ओर आग ने तांडव मचाया हुआ है. ऐसे में सरकार के सामने दो-दो बड़ी चुनौतियों से निपटने की समस्या खड़ी है. वनाग्नि की बात करें तो अभी तक सूबे में 2 हजार 777 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हो चुके हैं. लाखों की बहुमूल्य वन संपदा भी इस वनाग्नि की भेंट चढ़ चुकी है. इतना ही नहीं वन विभाग की मानें तो अभी तक जंगल की आग में 8 लोग जान गंवा चुके हैं. वन्यजीव और मवेशियों के आंकड़े तो विभाग के रिकॉर्ड में ही नहीं हैं. अभी भी जंगल धू-धू कर जल रहे हैं. नैनीताल और बेरीनाग के जंगल इन दिनों खूब सुलग रहे हैं, लेकिन सरकार और विभाग इस वनाग्नि को रोकने में फेल साबित हो रहे हैं.
उत्तराखंड में वनाग्नि से 2 हजार 777 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित
बता दें कि उत्तराखंड का लगभग 68 फीसदी भूभाग वन क्षेत्र के अंतर्गत आता है. ऐसे में राज्य की सबसे बड़ी धरोहर जल, जंगल से जुड़ी है. लेकिन दुर्भाग्यवश हर साल हजारों हेक्टेयर वन क्षेत्र आग की भेंट चढ़ते जा रहे हैं. इस वजह से बहुमूल्य वन संपदा नष्ट होने के साथ वन्यजीव भी अपनी जान गंवा रहे हैं. साथ ही उनका निवाला भी छिन रहा है. ऐसे में वन्यजीव आशियाने और भोजन की तलाश में लगातार रिहायशी इलाकों की ओर रुख कर रहे हैं. जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ रहा है.
वहीं, वन विभाग की मानें तो अक्टूबर 2020 से लेकर अभी तक प्रदेश में 2 हजार 777 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र भीषण वनाग्नि से प्रभावित हो चुका है. इतना ही नहीं इस अवधि के दौरान प्रदेश में जंगलों में आग लगने की वजह से 71 लाख 22 हजार से ज्यादा का आर्थिक नुकसान का आकलन लगाया जा चुका है. अक्टूबर 2020 से अभी तक प्रदेशभर में 2 हजार 68 घटनाएं वनों में आग लगने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं. जबकि, अभी फायर सीजन का पीक समय तो बाकी है.
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राज्य के अधिकांश वन क्षेत्र में आग लगने की घटनाओं से नए प्लांटेशन पौधों को भी भारी नुकसान हुआ है. जानकारी के अनुसार राज्यभर में 101 हेक्टेयर से ज्यादा प्लांटेशन वाले क्षेत्र आग की भेंट चढ़ चुके हैं. हालांकि, आग की घटनाओं से सही मायने में नए प्लांटेशन को कितना नुकसान हुआ है, इसका आकलन अभी तक नहीं लग सका है. लेकिन हर साल लाखों की तादाद में अलग-अलग प्रजातियों के नए पौधे वाले प्लांटेशन राज्य के अभी जिला वन क्षेत्र में लगाए जाते हैं. ऐसे में आग लगने की घटनाओं से दशकों की देखरेख से तैयार होने वाले वन को नुकसान होने का सिलसिला जारी है. जो पर्यावरण के लिहाज से अपने आप में बेहद चिंता का विषय है.
वनाग्नि के तहत वन्यजीव और मवेशियों के नुकसान की तो गिनती ही नहीं है. वन विभाग के रिकॉर्ड में अभी तक मात्र 19 मवेशियों की मौत हुई है, लेकिन ये आंकड़ा कहीं ज्यादा हो सकता है. जबकि, प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से गौशाला समेत मवेशियों की जलने की खबरें लगातार सामने आ रही हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में आय का जरिया खेती-बाड़ी और पशुपालन है, लेकिन वनाग्नि से उनका आर्थिकी का जरिया भी छिन रहा है. भले ही ये तस्वीरें सरकार के नुमाइंदों और वन विभाग महकमे तक न पहुंची हों, लेकिन धरातल की हकीकत यही है. आलम तो ये है कि कई जगहों पर वन महकमा अभी भी वनाग्नि को लेकर मॉक ड्रिल कर रहा है.
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खानापूर्ति साबित हुई हेलीकॉप्टरों की तैनाती
सूबे में धधक रहे जंगलों को वन महकमा और सरकार काबू नहीं कर पाई तो केंद्र सरकार की मदद लेनी पड़ी. लेकिन ये भी महज खानापूर्ति ही साबित हुआ है. उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग को बुझाने के लिए केंद्र सरकार ने दो एमआई-17 हेलीकॉप्टर मुहैया कराए. गढ़वाल मंडल में इस हेलीकॉप्टर ने दो दिन तो बड़े जोर-शोर से आग बुझाने का काम किया, लेकिन दो दिन बाद ही ये अभियान ठंडे बस्ते में चला गया. उधर, कुमाऊं में जंगल की आग से फैले धुएं के कारण हेलीकॉप्टर उड़ान ही नहीं भर पाया. गनीमत रही कि कुदरत मेहरबान हो गया और बारिश व बर्फबारी हुई. जिससे कुछ हद तक पहाड़ों में लगी आग बुझ पाई.
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