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श्रमिक दिवस: लॉकडाउन से बढ़ी इन मजदूरों की बेबसी, पैसे-पैसे को हुए मोहताज

आज 1 मई को मजदूर दिवस के रुप में जाना जाता है, लेकिन दूसरे राज्यों में जाकर दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों की बेबसी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. लॉकडाउन में ये मजदूर अपने घर से दूर भूखे प्यासे रह रहे हैं साथ ही पैसे-पैसे को मोहताज है.

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दिहाड़ी मजदूर पैसे-पैसे को मोहताज

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Published : May 1, 2020, 6:58 PM IST

नैनीताल: देश की बुनियाद की कल्पना बिना मजदूरों के योगदान की नहीं की जा सकती. देश में विकास पटरी पर तभी तेजी से दौड़ता है, जब मजदूर अपने हाथों से किसी भी निर्माण को स्वरुप देता है. तब जाकर देश की तरक्की का सपना साकार हो पाता है. लेकिन इसके बदले में इन मजदूरों को सबसे बड़ी मुश्किल दो वक्त की रोटी है. आज विश्व मजदर दिवस के मौके पर भी कई मजदूर अपनी बदहाली की आंसू रोने को मजबूर हैं.

दिहाड़ी मजदूर पैसे-पैसे को मोहताज

देश में कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन लागू है. जिसका सबसे ज्यादा असर दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ रहा है. ऐसा ही कुछ बिहार से नैनीताल आए दो मजदूर मजनू और उदय का हाल है. जो लॉकडाउन में अपने परिवार से कोसों दूर यहां फंसे पड़े है. अब इनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

नैनीताल समेत आसपास के क्षेत्रों में मजदूरी करने वाले बिहारी मूल के मजदूर लॉकडाउन की वजह से काफी परेशान हैं. यह मजदूर नैनीताल के पंगुट, मुक्तेश्वर, धानाचुली समेत आसपास के गांवों में फंसे हुए हैं. कई ऐसे भी मजदूर हैं जिनको मात्र एक समय का खाना मिल रहा है. ऐसा ही एक मजदूर है मजनू, जो बिहार के बेतिया जिले का रहने वाले हैं. वह नैनीताल में मजदूरी कर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करता था, लेकिन लॉकडाउन की वजह से आज उसके सामने दो जून की रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

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मजनू ने बताया कि वह हर रोज मजदूरी कर पैसा कमाता था. जिससे उसके परिवार का भरण पोषण होता था, लेकिन लॉकडाउन के बाद से उसका काम पूरी तरह से बंद हो गया है. जिसकी वजह से उसे काफी दिक्कत हो रही है. उसके पास जो पैसा था वह भी अब खत्म हो चुका है. जिससे उनके सामने आने वाले समय में खाना खाने का संकट खड़ा हो गया है.

वहीं इस मामले में नैनीताल एसडीएम विनोद कुमार का कहना है कि इन भूखे मजदूरों व गरीबों के लिए गुरुद्वारा समिति समेत प्रशासन द्वारा नियमित रूप से खाना भिजवाया जा रहा है, ताकि कोई भी व्यक्ति इस दौरान भूखा न रहे.

वही अपने परिवार से दूर रह रहे इन मजदूरों को अपनों से बिछड़ने का भी गम है. अपनों की याद में इन मजदूरों की आंख में आंसू छलक रहे है. मजदूरों का कहना है कि उनके परिवार के लोग भूखे होंगे. क्योंकि जब वह यहां से उनके लिए पैसे भेजते थे, तब जाकर उनका परिवार अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर पाता था. आज उनके पास खुद के खाने के लिए पैसे नहीं है तो वह अपने परिवार की मदद कैसे कर सकेंगे?

आज विश्व मजदूर दिवस है और आज के दिन भी कई मजदूर लॉकडाउन की वजह से फंसे हुए हैं, अपने और अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी नहीं जुटा पा रहे हैं.

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