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Holika Dahan: हल्द्वानी में जौ और गन्ने की बिक्री बढ़ी, होलिका में चढ़ाने की है मान्यता

होली के त्योहार से एक दिन पहले होलिका दहन की परंपरा है. वहीं, होलिका की अग्नि में जौ और गन्ना चढ़ाने की मान्यता. इसके अलावा होलिका दहन में काजू-किशमिश और नारियल के गोले की माला चढ़ाने की भी मान्यता है.

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Published : Mar 7, 2023, 1:22 PM IST

Updated : Mar 7, 2023, 2:22 PM IST

हल्द्वानी में जौ और गन्ने की बिक्री बढ़ी

हल्द्वानी:पूरे देश में होली का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. वहीं, होली से एक दिन पहले देर होलिका दहन की परंपरा है. होलिका दहन में कई तरह की अनाज चढ़ाने की भी परंपरा है. हल्द्वानी में भी होलिका दहन के मौके पर बाजारों में जौ और गन्ने की खूब बिक्री हो रही है. होलिका में गाय के गोबर के कंडे की मालाएं चढ़ाने की प्रथा भी है. कहीं पर काजू-बादाम, किशमिश और नारियल के गोले की माला भी चढ़ाई जाती है. वहीं, होलिका दहन में गन्ने के अगले हिस्से में जौ की बालियां लगाकर उन्हें भूना जाता है. जहां इसके पीछे धार्मिक मान्यता है, वहीं, इसका साइंटिफिक रीजन भी है.

होली त्योहार के समय गेहूं, जौ सहित कई नए फसल की पैदावार तैयार होती है, जो खुशहाली का प्रतीक है. ऐसा मानना है कि फाल्गुन मास के बाद ग्रीष्म ऋतु आती है, जिससे कई बीमारियां होने का खतरा रहता है. होलिका में जौ, गेहूं की बालियां, काजू, नारियल सहित अन्य चीजें भूनकर खाने से कई बीमारियां खत्म होती हैं. मान्यता है कि होलिका की आग पवित्र होती है, जिसमें गन्ने को गर्म करके खाने से लोग निरोगी रहते हैं. साथ ही परिवार की सुख-शांति बनी रहती है.

हल्द्वानी में जगह-जगह गन्ने और गेहूं की बालियां बिक रही है. जहां गन्ना 10 से 20 रुपए में मिल रहा है. जौ की 5 से 11 बाली भी 10 से 20 रुपए में बिक रही है. लोग होलिका पूजन के लिए जौ की पांच, सात और ग्यारह बालियां खरीद रहे हैं. लोगों का कहना है कि फसल कटाई शुरू हो गई है. होलिका माता को नए अनाज का भोग लगाया जाता है. वहीं भुने हुए जौ को एक-एक दाना प्रसाद के रूप में घर में सभी को वितरित किया जाता है. बहुत से परिवारों में होलिका अग्नि को शुभ माना जाता है. होलिका की आग और राख को अपने घर ले जाते है. मान्यता है कि होली माता की विभूति को घर में रखना शुभ माना जाता है.
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काशीपुर में आधुनिकता पर आस्था भारी:होली रंगों और आपसी भाईचारे का पर्व होली है, लेकिन इस त्योहार ने बदलते समय के साथ अब आधुनिकता का रूप ले लिया है. खाने पीने की चीजों से लेकर पिचकारी के साथ-साथ होलिका दहन की सामग्री में भी बदलाव देखने को मिल रहा है. लेकिन आधुनिकता की दौड़ में आज भी होली के 10 दिन पहले गोबर के उपले बनाने की प्राचीन परंपरा कायम है. फाल्गुन और होली के गीत गाकर महिलाएं इन्हें बनाती थीं.

होलिका दहन के लिए महिलाएं अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष की दूज यानी कि फुलरिया दूज से गाय के गोबर से उपले बनाने का काम करती थी, जो आज भी बनाए जा रहे हैं. मां बाल सुंदरी देवी मंदिर के मुख्य पुजारी विकास अग्निहोत्री ने कहा हिंदू धर्म में गाय को पूजनीय माना जाता है. होलिका दहन में गोबर के कंडे के इस्तेमाल से कुंडली में अकाल मृत्यु जैसे या कोई भी बीमारी से जुड़े दोष दूर हो जाते हैं.

Last Updated : Mar 7, 2023, 2:22 PM IST

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