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होलिका दहन से पूर्व किया गया विधि विधान से पूजन, अच्छाई की जीत का संदेश देती है होली

होली के एक दिन पहले जगह-जगह सजाई गई. होली का लोगों ने पूजा अर्चना की.होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देती है.

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Published : Mar 20, 2019, 10:29 PM IST

विधि विधान से पूजन


हरिद्वार/विकासनगरः होली के एक दिन पहले पछवादून समेत आसपास के क्षेत्रों में जगह-जगह सजाई गई होली का लोगों ने पूजा अर्चना की. मान्यता है कि होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. पंडित सुनील प्रणाली ने बताया कि मान्यता के अनुसार भगवान नारायण के भक्त प्रहलाद के पिता सम्राट हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने के तमाम प्रयत्न किए, जिसके लिए कई षडयंत्र भी उन्होंने रचे, लेकिन भगवान नारायण विष्णु की कृपा से प्रहलाद हर बार बच निकले.

उन्होंने प्रहलाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका की मदद ली. होलिका को वरदान था कि उसे आग जला नहीं सकती. जिस पर होलीका भक्त प्रहलाद के साथ चिता पर बैठ गई, भक्त प्रहलाद नारायण का जप करते हुए बच निकले, लेकिन होलीका जलकर राख हो गई.
भक्त प्रहलाद की नारायण पर अगाध आस्था ने साबित कर दिया कि वह ही सर्वशक्तिमान हैं. सीधे शब्दों में कहें तो होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देती है.

होली की पूर्व संध्या पर होलिका दहन की तैयारियां देखी गईं.

हरिद्वार में भी रंगो के त्यौहार होली की पूर्व संध्या में होलिका दहन की तैयारियां देखी गईं.होलिका दहन के पीछे एक प्राचीन कथा है. निए ईटीवी भारत पर क्या है होलिका दहन के पीछे कि वह प्राचीन कथा जिसके कारण हम हर वर्ष होली से पहले होलिका दहन अनिवार्य रूप से करते है.

होलिका दहन की कथा जुड़ी हुई है असुरों के राजा हिरण्यकश्यप से, हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु से घोर शत्रुता रखता रखता था, हिरण्यकश्यप अहंकार में इतना चूर था कि वह खुद को ही भगवान कहता था और अपने राज्य के सभी लोगों से अपनी पूजा करने को कहता था.
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था पिता की लाश कहने के बावजूद प्रहलाद भगवान विष्णु की भक्ति बंद नहीं की, इस बात से कुपित होकर असुराधिपति हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को मारने की कई कोशिशें की लेकिन भगवान विष्णु के आशीर्वाद के कारण वह उसका बाल भी बांका ना कर सका.

आखिरकार अपने पुत्र प्रहलाद को मारने के लिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका का सहारा लिया जिसको भगवान शंकर से यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में जल नहीं सकती. अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर हिरण्यकश्यप ने पुत्र प्रहलाद को मारने के लिए एक चिता बनवाई जिसमें होली का प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर बैठ गई, भगवान विष्णु की कृपा से होली का चिता में बैठते ही भस्म हो गई बल्कि भक्त प्रहलाद सुरक्षित बच गए.

उसी दिन से होलिका दहन के दिन होली जलाकर होलिका नामक दुर्भावना का अंत और भगवान द्वारा भक्तों की रक्षा का जश्न मनाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो भी माता अपने पुत्र की रक्षा के लिए होलिका दहन की परिक्रमा कर पूजा-अर्चना करती है उसके पुत्र को भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है.

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