देहरादूनःउत्तराखंड को अलग राज्य बनाने के लिए न जाने कितने राज्य आंदोलनकारियों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया. आंदोलनकारियों के बलिदान पर जब उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ तो सबको उम्मीद थी कि पहाड़ी इलाकों में भी मूलभूत सुविधाएं होंगी. पहाड़ का जीवन पहाड़ जैसा कठोर नहीं रहेगा. लेकिन यह कौन जानता था कि 22 साल बीत जाने के बाद भी पहाड़ के लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसेंगे.
9 नवंबर 2000 को जन्मा उत्तराखंड आज 22 साल का हो गया है. आज 9 नवंबर को हमारा उत्तराखंड राज्य 23वें साल में प्रवेश कर चुका है. इन 22 सालों में राज्य के विकास के लिए कई उम्मीदें जगीं. विकास की नई राह खुली.
22 सालों की उपलब्धियां
- राज्य में ऑल वेदर रोड का निर्माण.
- ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेलवे लाइन का तेजी से कार्य जारी.
- स्कूलों में एक समान पाठ्यक्रम. NCERT किताबें लागू.
- ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण घोषित.
- राज्य में नगर निगम की संख्या 8 हुई.
- आपदा बचाव राहत के लिए 2014 में विशेषज्ञ बल SDRF का गठन.
- सरकार की ज्यादातर सेवाएं ऑनलाइन की गई.
- एयर कनेक्टिविटी बड़ी, देहरादून से 11 शहरों के लिए सीधी हवाई सेवा
इन 22 सालों में उत्तराखंड ने कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की. वहीं, आज भी ऐसी कई चुनौतियां हैं जो पहाड़ की तरह खड़ी है.
स्वास्थ्य सेवाओं का अभावःस्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रदेश की स्थिति आज भी दयनीय है. पहाड़ों में सरकारी ही नहीं, बल्कि निजी स्वास्थ्य सेवाएं भी नाम के लिए उपलब्ध है. ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों का टोटा है. इसके अलावा पहाड़ी जनपदों में मौजूद सरकारी अस्पतालों में कहीं डॉक्टर, तो कहीं उपकरणों की कमी है. रिमोट एरिया में आधुनिक संसाधनों और मेडिकल उपकरणों की मौजूदगी नहीं है. यही वजह है कि पहाड़ का बड़ा तबका आज भी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मैदानों में मौजूद शहरों के बड़े बड़े अस्पतालों पर निर्भर है. पहाड़ी जनपदों में मौजूद अस्पताल आज केवल रेफरल सेंटर बनकर रह गए हैं.
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पलायन रोकने में नाकामयाब सरकारःये कथन उत्तराखंड में काफी पुराना है कि पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नहीं आती. लेकिन आज भी इस पहेली का कोई कारगर हल नहीं मिला है. पहाड़ से युवाओं का पलायन बदस्तूर जारी है. उत्तराखंड के हालातों को बारीकी से समझा जाए तो राज्य गठन के बाद पलायन बोर्ड गठन के पहले की तुलना में ज्यादा हुआ है.