देहरादून: पिछले साल राज्य सरकार ने नजूल नीति को केंद्र सरकार के अनुमोदन के लिए भेजा था. लेकिन केंद्र सरकार ने इस नीति में कुछ औचित्य सहित अन्य तकनीकी कारणों के चलते वापस भेज दिया था. इस कारण पिछले 5 सालों से नजूल नीति का मामला अटका हुआ है.
नजूल नीति पर अब तक ये रहा पेंच: साल 2009 में तत्कालीन सरकार ने नजूल नीति बनाई थी. ताकि नजूल भूमि पर रह रहे लोगों को मालिकाना हक दिया जा सके. लेकिन कुछ लोग इस नजूल नीति के विरोध में हाईकोर्ट चले गए. जिसके चलते नजूल भूमि पर रह रहे लोगों के मालिकाना हक का सपना अधर में लटक गया. दरअसल साल 2018 में हाईकोर्ट ने नजूल नीति को गलत बताते हुए निरस्त करने का आदेश दिया था. जिसके चलते सरकार ने नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. साथ ही नजूल नीति में संशोधन की प्रक्रिया भी शुरू कर दी.
लाखों लोगों को जमीन पर मालिकाना हक मिलने की उम्मीद बढ़ी: 3 दिसंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी. ऐसे में प्रदेश के रुद्रपुर और हल्द्वानी में नजूल भूमि पर बसे लाखों लोगों को मालिकाना हक मिलने की उम्मीद जागी. साथ ही उत्तराखंड सरकार ने कानूनी उपाय को लेकर नजूल नीति में संशोधन भी किया. जिसके तहत सरकार ने उत्तराखंड नजूल भूमि प्रबंधन, व्यवस्थापन एवं निस्तारण विधेयक, 2021 को साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले सदन में पारित कर दिया. लेकिन नजूल का मामला केंद्र सरकार से जुड़ा होने के चलते विधेयक की अंतिम मंजूरी के लिए राजभवन के माध्यम से केंद्र सरकार को भेज दिया गया.
केंद्र सरकार ने लौटा दिया था प्रस्ताव: कुछ आपत्तियों के चलते केंद्र सरकार ने पिछले साल ही इसे वापस लौटा दिया था. जिसके बाद उन आपत्तियों को ठीक करते हुए सरकार ने एक बार फिर राजभवन के माध्यम से प्रस्ताव राष्ट्रपति भवन को भेज दिया था. ऐसे में यह प्रस्ताव राष्ट्रपति भवन से केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के पास भेज दिया गया है. लिहाजा, केंद्र सरकार की नजूल के संशोधित विधेयक पर अंतिम मुहर लगने के बाद कानूनी के रूप में इसे प्रदेश में लागू किया जा सकेगा. जिससे नजूल भूमि पर बसे लाखों लोगों को मालिकाना हक मिलने की उम्मीद बढ़ गई है.
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उत्तराखंड में करीब 4 लाख हेक्टेयर भूमि नजूल की है: बता दें कि, आवास विभाग के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में करीब 3,92,024 हेक्टेयर नजूल भूमि है. ये नजूल भूमि मुख्य रूप से देहरादून, हरिद्वार और उधमसिंह नगर में मौजूद है. मिली जानकारी के अनुसार, हल्द्वानी शहर का करीब 80 फीसदी हिस्सा नजूल भूमि पर बसा है. जिसके तहत हल्द्वानी से लेकर काठगोदाम तक 39 लाख 66 हजार 125 वर्ग मीटर नजूल भूमि है. इसी तरह रुद्रपुर में करीब 22 हजार परिवार हैं जो नजूल भूमि पर काबिज हैं. पहले रुद्रपुर में नजूल भूमि पर बसे परिवारों की संख्या करीब 14 हजार थीं, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 22 हजार जो गई है.
नजूल भूमि क्या होती है:वह जमीननजूल भूमि कहलाती है, जिस पर किसी का भी मालिकाना अधिकार नहीं होता है. लंबे समय से वह जमीन बिना वारिस के खाली पड़ी रहती है. ऐसी जमीन को सरकार अपने अधिकार में लेती है और अपने जनहित के कार्यों में प्रयोग करती है. राज्य सरकार ऐसी जमीन की मालिक होती है. कई गांवों में यह जमीन यूं ही पड़ी रहती है. उत्तराखंड में ऐसी ही नजूल की जमीनों पर लाखों की संख्या में लोगों ने अपने घर बना दिए हैं. ऐसी ही जमीनों के उपयोग के दृष्टिकोण से सरकार ने इस जमीन से संबंधित नजूल नियम बनाये हैं.