23 साल में राज्य ने हासिल की कई उपलब्धियां मसूरीः9 नवंबर 2000... ये तारीख इतिहास में उत्तराखंड के स्थापना दिवस के तौर पर दर्ज है. पृथक उत्तराखंड की मांग को लेकर कई वर्षों तक चले आंदोलन के बाद आखिरकार 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड को 27वें राज्य के रूप में भारत गणराज्य में शामिल किया गया. उत्तराखंड अलग राज्य की लड़ाई को सबसे ज्यादा बल वर्ष 1994 में मिला. जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (उस दौरान यूपी के मुख्यमंत्री) ने कौशिक समिति का गठन किया. पहाड़ी राज्य बनाने को लेकर एक लंबा संघर्ष चला. कई आंदोलन किए गए. कई मार्च निकाले गए. अलग पहाड़ी प्रदेश के लिए 42 आंदोलनकारियों को शहादत देनी पड़ी. अनगिनत आंदोलनकारी घायल हुए.
पहाड़ी राज्य की मांग को लेकर उस समय इतना जुनून था कि महिलाएं, बुजुर्ग, यहां तक कि स्कूली बच्चों तक ने आंदोलन में भाग लिया. इसके बाद 9 नवंबर 2000 में एक अलग पहाड़ी राज्य बना. 2000 से 2006 तक इसे उत्तरांचल के नाम से पुकारा जाता था. लेकिन जनवरी 2007 में स्थानीय लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए इसका आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया.
उत्तराखंड के खाली होते पहाड़ों के लिए आज भी रिवर्स पलायन के लिए कोई भी योजना कारगर साबित नहीं हो पाई है. पहाड़ खाली, रोजगार पर फेल:उत्तराखंड ने आज 9 नवंबर को अपने स्थापना के 23 साल पूरे कर लिए हैं. राज्य नौ नवंबर को अब अपने 24वें साल में प्रवेश कर गया है. बीते 23 साल में उत्तराखंड ने काफी कुछ उपलब्धियां हासिल की. लेकिन बहुत कुछ ऐसा भी है जो अभी पाना है. राज्य आंदोलनकारियों की मानें तो जिन अपेक्षाओं के साथ उत्तर प्रदेश से अलग कर उत्तराखंड को बनाया गया था, उन अपेक्षाओं के अनुरूप उत्तराखंड नहीं बन पाया. उत्तराखंड ने 23 सालों में काफी कुछ उपलब्धियां हासिल की हैं. परंतु कई क्षेत्रों में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. पहाड़ी प्रदेश होने के कारण पहाड़ का विकास होना था. परंतु आज पहाड़ खाली हो गए हैं. पहाड़ों से पलायन बदस्तूर जारी है. सरकार द्वारा पहाड़ से पलायन रोकने की कोशिश करते हुए कई योजनाएं लागू की गई. परंतु पहाड़ से पलायन नहीं रुक पाया. राज्य आंदोलनकारियों का कहना है कि रोजगार उपलब्ध कराए जाने को लेकर सरकार फेल रही. युवा प्रदेश छोड़कर दूसरे प्रदेश और देश की ओर पलायन कर रहे हैं.
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तिवारी सरकार में आया औद्योगिक विकास: राज्य आंदोलनकारियों का कहना है कि एनडी तिवारी सरकार के दौरान उत्तराखंड में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए सिडकुल की स्थापना की गई. हरिद्वार, देहरादून और यूएसनगर जिले में स्थापित सिडकुल में पांच हजार के करीब बड़े और मध्यम श्रेणी के उद्योग स्थापित हुए. इससे पहले उत्तराखंड में बड़े उद्योगों की संख्या 100 भी नहीं थी. तिवारी सरकार के दौरान राज्यभर में हुए औद्योगिक विकास की वजह से उत्तराखंड देश के औद्योगिक मानचित्र पर स्थापित हो पाया. हालांकि, तिवारी सरकार के बाद औद्योगिक विकास की रफ्तार अपेक्षित रूप से नहीं बढ़ पाई. शिक्षा मामले में उत्तराखंड की तस्वीर हाल में केंद्र सरकार के परफॉर्मेंस इंडेक्स से बाहर हो चुकी है.
उत्तराखंड में हर साल रोजगार के लिए पलायन बढ़ा है. ये काम भी रहे अधूरे: उत्तराखंड शिक्षा के विभिन्न मानकों में महज चार साल में ही 18वें से 34वें स्थान पर पहुंच गया. उधर, स्वास्थ्य सेवाओं में भी सुधार नहीं हुआ है. लोगों को मजबूरी में प्राइवेट अस्पतालों का रुख करना पड़ रहा है. उनका आज भी कहना है कि राज्य गठन के बाद 23 साल में ना तो कभी विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी दूर हुई और ना ही पैरामेडिकल और नर्सिंग के पद पूरी तरह भरे जा सके. हैरानी की बात है कि चार मेडिकल कॉलेज होने के बावजूद अधिकांश स्टाफ और डॉक्टर संविदा पर हैं. राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों में विकास के लिए कृषि और बागवानी को महत्वपूर्ण माना जाता रहा है. खासकर बागवानी को पर्वतीय क्षेत्रों में गेमचेंजर माना जाता है. लेकिन इस सेक्टर के हाल भी संतोषजनक नहीं हैं.
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सांसद ने गिनाईं उपलब्धियां: उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद नरेश बंसल की मानें तो उत्तराखंड बनने के बाद सड़कों के विकास में तेजी आई. केंद्र और राज्य के सहयोग से बनी सड़कों की वजह से यातायात सुगम हुआ. दूरदराज के गांवों तक भी सड़कें पहुंची. केंद्र सरकार के ऑलवेदर रोड प्रोजेक्ट की वजह से चारधाम रूट की सड़कों का कायाकल्प हुआ. इससे चारधाम यात्रा के साथ स्थानीय लोगों का सफर भी आसान हुआ. इसके अलावा दिल्ली से दून के लिए बन एक्सप्रेसवे, भारतमाला और पर्वतमाला परियोजनाओं से सड़क तथा रोपवे संपर्क और बेहतर होने जा रहा है.
शहीद राज्य आंदोलनकारियों के सपनों का उत्तराखंड आज भी नहीं बन पाया है. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा प्रदेश में विकास की गति को तेज किए जाने को लेकर कई महत्वपूर्ण फैसले लिए गए. सड़क, हवाई और रोपवे के माध्यम से कनेक्टिविटी को बेहतर किया जा रहा है. शिक्षा के क्षेत्र में कई बदलाव किए गए हैं जिससे ग्रामीण स्तरों में शिक्षा को बेहतर किया जा सके. स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर की गई हैं. कई डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ की नियुक्ति की गई है. प्रदेश में नकल रोकने के लिए सख्त नकल विरोधी कानून लगाया गया है. धर्मांतरण कानून लाकर धर्म परिवर्तन पर रोक लगाई गई है. उन्होंने बताया कि जल्द प्रदेश में यूनिवर्सल सिविल कोड को लागू किया जाएगा. प्रदेश सरकार इन्वेस्टर्स समिट कराकर प्रदेश में उद्योग स्थापित कर रोजगार के साधन उपलब्ध कराने की कोशिश कर रही है.
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