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बदरीनाथ धाम: कपाट बंद होने के बाद भी 6 महीने अपने आप जलती रहती है अखंड ज्योति

पौराणिक कथाओं के अनुसार, बदरीनाथ धाम आदि गुरू शंकराचार्य की कर्मस्थली रही है. मंदिर का बारे में मान्यता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं सदी में मंदिर का निर्माण करवाया था. अलकनंदा नदी के समीप स्थित बदरीनाथ धाम श्रद्धालुओं की न सिर्फ श्रद्धा व आस्था का अटूट केंद्र है.

बदरीनाथ धाम में छह महीने जली रहती है अखंड ज्योति.

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Published : May 10, 2019, 5:26 AM IST

Updated : May 10, 2019, 8:35 AM IST

देहरादून: पुराणों के अनुसार बदरीनाथ धाम को ब्रह्मकपाल तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है. बदरीनाथ धाम में ही भगवान शिव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली थी इसलिए हिन्दू धर्मअनुयायियों के लिए इस जगह का महत्व काफी बढ़ जाता है. जब बदरीनाथ धाम के कपाट खुलते हैं, इस दौरान वहां एक अखंड ज्योति जलती रहती है. मान्यता है कि 6 महीने तक बंद दरवाज़े के अंदर इस दीप को देवता जलाए रखते हैं. वहीं इस दीपक के दर्शन का भी श्रद्धालुओं में काफी बड़ा महत्व है.

नर एवं नारायण की तपोभूमि

पौराणिक कथाओं के अनुसार, बदरीनाथ धाम आदि गुरू शंकराचार्य की कर्मस्थली रही है. मंदिर का बारे में मान्यता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं सदी में मंदिर का निर्माण करवाया था. अलकनंदा नदी के समीप स्थित बदरीनाथ धाम श्रद्धालुओं की न सिर्फ श्रद्धा व आस्था का अटूट केंद्र है. देवभूमि उत्तराखंड में पंच बदरी, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक व धार्मिक दृष्टि से काफी अहम माना जाता है. बदरीनाथ धाम भगवान विष्णु के चतुर्थ अवतार नर एवं नारायण की तपोभूमि है.

मंदिर में जलती है अखंड ज्योति

ये भी मान्यता है कि जो व्यक्ति बदरीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे माता के गर्भ में दोबारा नहीं आना पड़ता, प्राणी जन्म और मृत्यु के चक्र से छूट जाता है. वहीं बदरीनाथ धाम के कपाट छह महीने बंद रहते हैं. कपाट खुलने पर यहां छह माह से जल रही अखंड ज्योति के दर्शन के लिए लोग लालायित रहते हैं. जिसके दर्शन के लिए हर साल भारी संख्‍या में श्रद्धालु धाम पहुंचते हैं, जिसे देखना काफी शुभ माना जाता है. मंदिर के पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते है जिन्हें रावल कहा जाता है. यह जब तक पुजारी रावल के पद पर रहते हैं उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. मान्यता है कि ये जगह भगवान शिव और पार्वती को काफी पसंद थी. जिसके बाद भगवान विष्णु को भी यह जगह अत्यन्त भा गई जिसे उन्होंने भगवान शिव से मांग लिया. जिसके बाद से ही यह जगह विष्णुधाम बन गई.

Last Updated : May 10, 2019, 8:35 AM IST

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