देहरादून: प्रदेश के दूरस्त इलाकों में मूलभूत सुविधाओं की कमी के कारण सूबे आज पलायन का दंश झेल रहा है. प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में आज कई गांव वीरान हो गए हैं. एक तरफ जहां कई लोग मूलभूत सुविधाओं की तलाश में पहाड़ों से पलायन कर मैदानी इलाकों का रुख कर रहे हैं. वहीं, टिहरी के पंडियार गांव के लोगों का आरोप है कि टिहरी बांध निर्माण के लिए सरकार ने उन्हें नोटिस जारी किया, जबकि उन्होंने इस बात का पुरजोर विरोध भी किया था.
पलायन करने को मजबूर हुए थे ग्रामीण. बता दें कि टिहरी बांध परियोजना के लिए प्राथमिक जांच का काम 1961 में शुरू कर दिया गया था. इसके बाद इसकी रूपरेखा तय करने का कार्य साल 1972 में शुरू हुआ. साथ ही 600 मेगावाट का बिजली संयंत्र लगाया गया, जिसके बाद साल 1978 में बांध निर्माण का कार्य शुरू होने के बाद बांध क्षेत्र में आने वाले 125 गांव के लोगों को मजबूरन अन्य स्थानों पर पलायन करना पड़ा. इस दौरान जनपद टिहरी का पंडियार गांव पहला गांव था, जहां के लोगों को सबसे पहले अपना पैतृक गांव छोड़ मजबूरी में राजधानी या अन्य किसी स्थान पर पलायन करना पड़ा.
ईटीवी भारत की ओर से पलायन के खिलाफ चलाई जा रही खास मुहिम के तहत टीम ने पुरानी टिहरी के पंडियार गांव के मूल निवासियों का दर्द जाना. पंडियार गांव के रहने वाले सकलानी परिवार के सदस्यों ने अपना दर्द बखूबी बयां किया. उन्होंने बताया कि वो आज भी अपने गांव को याद करते हैं तो उनकी आंखें नम हो जाती हैं. उन्हें सबसे ज्यादा अफसोस तो इस बात का होता है कि उनके गांव के टिहरी बांध में समां जाने के बाद आज उनके पास कहने को अपना कोई गांव नहीं है. यही कारण है कि उनकी युवा पीढ़ी आज अपनी संस्कृति और अपनी बोली भाषा को भूलती जा रही है.
ये भी पढ़ें:कारगिल दिवस: शहादत के बाद घर पहुंची थी शहीद गिरीश की आखिरी चिट्ठी
पंडियार गांव को याद करते हुए मौके पर मौजूद कुछ बुजुर्ग महिलाओं ने बताया कि वो किसी भी कीमत पर अपने गांव को छोड़ना नहीं चाहती थीं. जब सरकार से उन्हें गांव खाली करने का नोटिस जारी किया गया तो उन्होंने इस बात का पुरजोर विरोध किया. इस दौरान कई बार उन्हें जेल तक जाना पड़ा, लेकिन सरकार के आगे किसी का जोर नहीं चल सका और गांव टिहरी बांध में हमेशा के लिए समा गया.