उत्तराखंड

uttarakhand

By

Published : Apr 20, 2021, 4:40 PM IST

ETV Bharat / state

21 साल से समाधि स्थल के लिए भटक रहा सपेरा समाज, मिलता है सिर्फ आश्वासन

सपेरा समाज में निधन के बाद व्यक्ति का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है, बल्कि जमीन में समाधि दी जाती है. लेकिन सपेरा समाज की समस्या ये है कि उन्हें समाधि स्थल के लिए सरकार की तरफ से कोई जमीन तक नहीं मिला है. ऐसे में हालात में उन्हें मृतक का श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार करना पड़ रहा है.

Sapera society
सपेरा समाज

देहरादून: राजधानी देहरादून के अलग-अलग हिस्सों में सपेरा समाज से जुड़े लोगों की बस्तियां बसी हुई हैं. लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि आज तक राज्य सरकार ने इन सपेरा बस्ती में समाधि स्थल की व्यवस्था नहीं की हैं. जिसके चलते यह लोग अपने संबंधियों का निधन होने पर उसे विधि-विधान के साथ समाधि नहीं दे पाते हैं.

बता दें कि राजधानी देहरादून के किद्दूवाला स्थित सपेरा बस्ती में सोमवार को दो लोगों का आकस्मिक निधन हो गया, लेकिन समाधि स्थल नहीं होने की वजह से उन्हें मृतकों को समाधि देने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. यही कारण है कि आज सपेरा बस्ती के लोगों ने वन क्षेत्राधिकारी कार्यालय किद्दूवाला का घेराव किया. साथ ही वन क्षेत्राधिकारी को ज्ञापन सौंपा.

पढ़ें-दुर्घटनाग्रस्त ट्रक के अंदर फंस गया था ड्राइवर, SDRF ने बचाई जान

सपेरा बस्ती निवासी विजयनाथ बताते हैं कि सपेरा समाज के लोग सालों से अपने मृत सगे संबंधियों को समाधि देते आए हैं. लेकिन देहरादून में सालों से बसे होने के बावजूद आज तक यहां की सरकार ने उन्हें एक समाधि स्थल मुहैया नहीं करा पाई हैं. ऐसे में जब कभी भी उनकी बस्ती में किसी व्यक्ति की मौत होती है तो हर बार उन्हें भारी विवाद के बीच अपने सगे संबंधियों का अंतिम संस्कार करना पड़ता है.

इस मामले में आम आदमी पार्टी ने सरकार पर निशाना साधा है. आप की प्रवक्ता उमा सिसोदिया ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अभीतक किसी कोई भी सरकार सपेरा बस्ती के लिए एक समाधि स्थल की व्यवस्था नहीं कर पाई है. जो जोकि इन बस्ती वासियों का मानव अधिकार है.

पढ़ें-हल्द्वानी में आग से 5 झोपड़ियां जलकर राख, दो मवेशी झुलसे

वहीं इस बारे में वन क्षेत्राधिकारी किद्दूवाला राकेश नेगी ने कहा कि समाधि स्थल के जमीन मुहैया करना वन विभाग के कार्य क्षेत्र में नहीं है. इसके लिए उन्हें नगर निगम का दरवाजा खटखटाना होगा. तभी उन्हें समाधि स्थल के लिए जमीन मुहैया हो सकेगी.

आखिर में ये ही कहा जा सकता है कि वोट बैंक की राजनीति के लिए तो हर नेता चुनाव के दौरान इन बस्ती वासियों के बीच पहुंचते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होते ही वो इन बस्ती वासियों भूल जाते है. यहीं कारण है कि राज्य गठन के 21 साल बाद भी ये लोग एक समाधि स्थल के लिए इधर-उधर भटक रहे है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details