देहरादून: भारतीय कानून के अंतर्गत कई ऐसे अपराध हैं जिनमें सजा का प्रावधान 7 साल से कम है. उनमें किसी भी जांच पड़ताल के पुख्ता सबूत न होने से पहले आरोपी को हिरासत या गिरफ्तार कर जेल भेजने वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट(supreme court) ने एक बार फिर पुलिस और निचली अदालतों को चेताया है.
उत्तराखंड बार काउंसिल सदस्य वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्रशेखर तिवारी के मुताबिक, 7 साल से कम सजा प्रावधान वाले जुर्म धाराओं के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने के मकसद से बार-बार उच्चतम न्यायालय द्वारा निचली अदालतों और पुलिस को गिरफ्तारी और जेल भेजने जैसे संबंध में गाइडलाइन पालन के मामले में चेता चुका है. इसके बावजूद वर्तमान समय तक सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन पुलिस और निचली अदालतों द्वारा सही से नहीं किया जा रहा हैं. ऐसे में न सिर्फ 7 साल से कम सजा वाली IPC, CRPC और एसटी एससी एक्ट जैसे धाराओं का दुरुपयोग कर आरोपित लोगों की व्यक्तिगत छवि धूमिल की जा रही है. साथ ही उनको मानसिक रूप से भी प्रताड़ित होना पड़ रहा है.
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धाराओं का दुरुपयोग रोकने के लिए हुए थे आदेश:अधिवक्ता चंद्रशेखर तिवारी के अनुसार इसका ताजा उदाहरण 5 साल पहले उत्तराखंड के बहुचर्चित 500 करोड़ के छात्रवृत्ति घोटाले का पर्दाफाश करने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट अधिवक्ता सत्येंद्र कुमार(RTI Activist Advocate Satyendra Kumar) के खिलाफ जुड़ा है. साल 2016 में अधिवक्ता सत्येंद्र कुमार के खिलाफ छात्रवृत्ति घोटाले के प्रमुख आरोपी पूर्व समाज कल्याण अधिकारी गंगाधर नौटियाल ने एसटी एक्ट के तहत उत्पीड़न आरोप में मुकदमा दर्ज कराया था.
उसी केस की कानूनी प्रक्रिया के तहत पिछले 5 सालों से अधिवक्ता सत्येंद्र कुमार को एसटी एक्ट का दुरुपयोग करने वाले मामले में छात्रवृत्ति घोटाले के आरोपी गंगाधर नौटियाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा. जिसके हस्तक्षेप के बाद 2 दिन पहले ही देहरादून के ADJ पंचम कोर्ट से आरटीआई एक्टिविस्ट और अधिवक्ता सत्येंद्र कुमार को बिना हिरासत और गिरफ्तारी के ही जमानत दे दी गई.