देहरादून: बीते कुछ समय से उत्तराखंड पुलिस विभाग में जिला पुलिस प्रभारी की तैनाती को लेकर बड़ा झोलझाल नजर आ रहा है. पुलिस नियमावली के मुताबिक एसपी रैंक के अधिकारी को जिला संभालने की जिम्मेदारी नियमानुसार देने का प्रावधान है. लेकिन विडंबना देखिए कि जनपदों में जहां एसपी रैंक के अधिकारी को नियमावली अनुसार नियुक्त होना चाहिए. वहां डीआईजी रैंक के अधिकारी को तैनात कर पुलिस नियमावली को तार-तार किया जा रहा हैं.
पुलिसिंग संभालने का अनुभव: पुलिस नियमावली के मुताबिक एसपी रैंक के अधिकारी को जिला संभालने की जिम्मेदारी दी जाती है. आईपीएस कैडर का अधिकारी एसपी रैंक में आकर जिले की तैनाती पाकर न सिर्फ जनपद की कानून व्यवस्था सहित तमाम तरह की पुलिसिंग को संभालने का अनुभव लेता है. बल्कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के बाद डीआईजी प्रमोशन होने के उपरांत वह अधिकारी अपने जिला पुलिसिंग नेतृत्व अनुभव को अपने कनिष्ठ अफसरों को सुपरविजन कर उन्हें जिलों की पुलिसिंग अनुभव से बहुत कुछ सिखाता भी है.
नियम विरुद्ध डीआईजी जनपद का नेतृत्व कर रहा: इतना ही नहीं जनपद में डीआईजी की तैनाती को लेकर सवाल यह भी है कि राज्य के दोनों रेंज में भी नियमानुसार डीआईजी रैंक के अधिकारी तैनात हैं. वहीं, दूसरी तरफ नियम विरुद्ध जिला पुलिस का नेतृत्व डीआईजी रैंक का अधिकारी कर रहा है. जिसके अधीन 6 से 7 जनपद आते हैं. ऐसे में डीआईजी रैंक का अधिकारी जनपद संभाल रहे डीआईजी रैंक के अधिकारी को किसी मामले में कैसे आदेशित कर सकता है?
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परंपरा को तोड़ने के पीछे की वजह: हालांकि, दोनों जगह सीनियरिटी का जरूर फर्क हैं. लेकिन जनपद डीआईजी किसी विवादित निर्देश को रेंज डीआईजी ही कैसे काट सकता है? ऐसे में हरिद्वार और देहरादून जनपद में नियमावली अनुसार एसपी/एसएसपी के बदले डीआईजी की तैनाती गंभीर सवाल उठा रहे हैं. जानकार मानते हैं कि शुरुआत से जनपद को SP/SSP को जिम्मेदारी देने वाली परंपरा का निर्वहन जरूरी है. जब तक उस परंपरा को तोड़ने के पीछे कोई खास हो जाना हो.
जनपद में एसपी अधिकारी को नेतृत्व देने का प्रावधान: उधर पुलिस एवं कानून के जानकार भी मानते हैं कि नियमावली अनुसार जनपद में एसपी रैंक (आईपीएस) के अधिकारी को नेतृत्व देने का प्रावधान हैं, लेकिन जिले में नियम विरुद्ध डीआईजी रैंक के अधिकारी बैठाया जाता तो यह नियमावली का घोर उल्लंघन हैं. वर्तमान में जो परिदृश्य नजर आ रहा है, उसमें मौजूदा सरकार की राजनीतिक फायदा लेने की भी बू आती है.
एसपी अधिकारी की जिला पुलिसिंग खत्म किया जा रहा: जानकारों के अनुसार इस तरह बेतुके परंपरा से एसपी रैंक के अधिकारी की जिला पुलिसिंग को भी खत्म किया जा रहा हैं. ईटीवी भारत से इस विषय पर विशेष बातचीत करते हुए उत्तराखंड पुलिस के पूर्व डीजी एबी लाल ने कहा यथासंभव एक ही रैंक के दो अधिकारियों को ऊपर और नीचे की पोस्टिंग नहीं देनी चाहिए. वर्तमान में जनपद और रेंज में दोनों ही जगह डीआईजी रैंक के अधिकारी हैं, भले ही उनमें वरिष्ठता का आधार बड़ा माना जाता है.
नियमों का उल्लंघन: देहरादून जनपद में कुछ ही समय पहले जो अधिकारी तैनात है. वह प्रमोट होकर डीआईजी बने हैं, लेकिन वर्षों से नियमावली अनुसार जो परंपरा जिला नेतृत्व में एसपी रैंक की पुलिसिंग की बनी है, उसे मनमर्जी से कैसे तोड़ा जा सकता है? क्योंकि जो नियम अनुसार परंपरा है, उसमें कुछ न कुछ जरूर ऐसी अच्छाई होगी, जो आज तक चली आ रही थी. ऐसे में उस नियम को बदलने के पीछे कोई खास और अहम वजह होनी बिल्कुल पारदर्शी रूप होनी चाहिए.
जनपद में फेवरेट डीआईजी को बिठाया जा रहा: अब जनता की नजर में यह सवाल उठ रहा है कि क्या वह जनपद पुलिस के रैंक से ऊपर का विशेष अधिकारी राजनीतिक रूप में किसी का पसंदीदा या खास है. पूर्व डीजी का साफ तौर पर यह भी कहना है कि जनपद में डीआईजी को बिठाना शासन स्तर पर कहीं ना कहीं अपने पसंदीदा आदमी को लेकर इस बात की गंध आने लगती है कि वह उनका फेवरेटिज्म है.
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