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उत्तराखंड पुलिस में तैनाती का झोलझाल, पुलिस एक्ट को दरकिनार कर हो रही मनमानी!

उत्तराखंड पुलिस विभाग में राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते न सिर्फ एसपी रैंक के अधिकारों का हनन कर जनपद की जिम्मेदारी नियमावली के विरुद्ध डीआईजी रैंक को दी जा रही है. बल्कि दूसरी तरफ राज्य में प्रमोशन के उपरांत पॉलिसी मुताबिक अधिकारियों का तबादला न करने का भी घोर उल्लंघन किया जा रहा हैं.

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उत्तराखंड पुलिस तैनाती में बड़ा झोलझाल

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Published : Nov 10, 2021, 10:25 PM IST

Updated : Nov 10, 2021, 10:41 PM IST

देहरादून: बीते कुछ समय से उत्तराखंड पुलिस विभाग में जिला पुलिस प्रभारी की तैनाती को लेकर बड़ा झोलझाल नजर आ रहा है. पुलिस नियमावली के मुताबिक एसपी रैंक के अधिकारी को जिला संभालने की जिम्मेदारी नियमानुसार देने का प्रावधान है. लेकिन विडंबना देखिए कि जनपदों में जहां एसपी रैंक के अधिकारी को नियमावली अनुसार नियुक्त होना चाहिए. वहां डीआईजी रैंक के अधिकारी को तैनात कर पुलिस नियमावली को तार-तार किया जा रहा हैं.

पुलिसिंग संभालने का अनुभव: पुलिस नियमावली के मुताबिक एसपी रैंक के अधिकारी को जिला संभालने की जिम्मेदारी दी जाती है. आईपीएस कैडर का अधिकारी एसपी रैंक में आकर जिले की तैनाती पाकर न सिर्फ जनपद की कानून व्यवस्था सहित तमाम तरह की पुलिसिंग को संभालने का अनुभव लेता है. बल्कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के बाद डीआईजी प्रमोशन होने के उपरांत वह अधिकारी अपने जिला पुलिसिंग नेतृत्व अनुभव को अपने कनिष्ठ अफसरों को सुपरविजन कर उन्हें जिलों की पुलिसिंग अनुभव से बहुत कुछ सिखाता भी है.

उत्तराखंड पुलिस में तैनाती का झोलझाल.

नियम विरुद्ध डीआईजी जनपद का नेतृत्व कर रहा: इतना ही नहीं जनपद में डीआईजी की तैनाती को लेकर सवाल यह भी है कि राज्य के दोनों रेंज में भी नियमानुसार डीआईजी रैंक के अधिकारी तैनात हैं. वहीं, दूसरी तरफ नियम विरुद्ध जिला पुलिस का नेतृत्व डीआईजी रैंक का अधिकारी कर रहा है. जिसके अधीन 6 से 7 जनपद आते हैं. ऐसे में डीआईजी रैंक का अधिकारी जनपद संभाल रहे डीआईजी रैंक के अधिकारी को किसी मामले में कैसे आदेशित कर सकता है?

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परंपरा को तोड़ने के पीछे की वजह: हालांकि, दोनों जगह सीनियरिटी का जरूर फर्क हैं. लेकिन जनपद डीआईजी किसी विवादित निर्देश को रेंज डीआईजी ही कैसे काट सकता है? ऐसे में हरिद्वार और देहरादून जनपद में नियमावली अनुसार एसपी/एसएसपी के बदले डीआईजी की तैनाती गंभीर सवाल उठा रहे हैं. जानकार मानते हैं कि शुरुआत से जनपद को SP/SSP को जिम्मेदारी देने वाली परंपरा का निर्वहन जरूरी है. जब तक उस परंपरा को तोड़ने के पीछे कोई खास हो जाना हो.

जनपद में एसपी अधिकारी को नेतृत्व देने का प्रावधान: उधर पुलिस एवं कानून के जानकार भी मानते हैं कि नियमावली अनुसार जनपद में एसपी रैंक (आईपीएस) के अधिकारी को नेतृत्व देने का प्रावधान हैं, लेकिन जिले में नियम विरुद्ध डीआईजी रैंक के अधिकारी बैठाया जाता तो यह नियमावली का घोर उल्लंघन हैं. वर्तमान में जो परिदृश्य नजर आ रहा है, उसमें मौजूदा सरकार की राजनीतिक फायदा लेने की भी बू आती है.

एसपी अधिकारी की जिला पुलिसिंग खत्म किया जा रहा: जानकारों के अनुसार इस तरह बेतुके परंपरा से एसपी रैंक के अधिकारी की जिला पुलिसिंग को भी खत्म किया जा रहा हैं. ईटीवी भारत से इस विषय पर विशेष बातचीत करते हुए उत्तराखंड पुलिस के पूर्व डीजी एबी लाल ने कहा यथासंभव एक ही रैंक के दो अधिकारियों को ऊपर और नीचे की पोस्टिंग नहीं देनी चाहिए. वर्तमान में जनपद और रेंज में दोनों ही जगह डीआईजी रैंक के अधिकारी हैं, भले ही उनमें वरिष्ठता का आधार बड़ा माना जाता है.

नियमों का उल्लंघन: देहरादून जनपद में कुछ ही समय पहले जो अधिकारी तैनात है. वह प्रमोट होकर डीआईजी बने हैं, लेकिन वर्षों से नियमावली अनुसार जो परंपरा जिला नेतृत्व में एसपी रैंक की पुलिसिंग की बनी है, उसे मनमर्जी से कैसे तोड़ा जा सकता है? क्योंकि जो नियम अनुसार परंपरा है, उसमें कुछ न कुछ जरूर ऐसी अच्छाई होगी, जो आज तक चली आ रही थी. ऐसे में उस नियम को बदलने के पीछे कोई खास और अहम वजह होनी बिल्कुल पारदर्शी रूप होनी चाहिए.

जनपद में फेवरेट डीआईजी को बिठाया जा रहा: अब जनता की नजर में यह सवाल उठ रहा है कि क्या वह जनपद पुलिस के रैंक से ऊपर का विशेष अधिकारी राजनीतिक रूप में किसी का पसंदीदा या खास है. पूर्व डीजी का साफ तौर पर यह भी कहना है कि जनपद में डीआईजी को बिठाना शासन स्तर पर कहीं ना कहीं अपने पसंदीदा आदमी को लेकर इस बात की गंध आने लगती है कि वह उनका फेवरेटिज्म है.

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कानून जानकार की राय: पूर्व पुलिस डीजी एबी लाल के अनुसार जनपद और रेंज में एक ही रैंक के अधिकारी नियुक्त होने से अच्छा तालमेल भी बन सकता है, लेकिन दूसरी तरफ दोनों अधिकारियों का इगो भी आपस में टकरा सकता है, जो जनहित में ठीक नहीं हैं. हालांकि एसपी रैंक के अधिकारी को ओवरटेक कर किन्हीं कारणों से डीआईजी रैंक के अधिकारी को जिला देना कई बार सही भी हो सकता है.

अच्छी पुलिसिंग से आईपीएस होंगे महरूम: हालांकि इस बात पर भी गौर करना आवश्यक है कि जो आईपीएस रैंक का अधिकारी सेवाकाल शुरू करने के बाद अच्छी पुलिसिंग के दम पर एक दिन एसपी रैंक पहुंचता हैं. तब उस पड़ाव में आकर एसपी को सबसे अधिक सीखने का अनुभव जिला पुलिसिंग के तमाम पहलुओं सहित बेहतर कानून व्यवस्था के रूप में मिलता हैं. यही वह समय होता है, जब क्राइम को कैसे कंट्रोल करना, लॉ एंड ऑर्डर सहित वीवीआईपी व्यवस्थाएं को लेकर बहुत कुछ सीखने का मौका मिलता है.

अगर एसपी रैंक में जनपद कि नियम अनुसार कमान ही नहीं मिलेगी तो कुछ समय बाद एसपी रैंक का अफसर समयानुसार उच्च पद पर प्रमोशन में चला जाएगा. ऐसे में फिर वह कैसे बिना अनुभव के नीचे वाले कनिष्ठ अफसरों को एक बेहतर पुलिसिंग के लिए कैसे सुपरविजन कर गाइडेंस दे पाएगा.

उत्तराखंड पुलिस नियमावली: वहीं, कानून के जानकार का मानना है कि राज्य गठन के सात साल बाद वर्ष 2007 में पुलिस एक्ट बनाया गया था. हालांकि, 2008 में पुलिस नियमावली बनाई गई. नियमावली में संशोधन 2008 के बाद 2018 और 2020 में भी हुआ. ऐसे में अब आकर उत्तराखंड राज्य का खुद पुलिस नियमावली अस्तित्व में आया है. उत्तराखंड बार काउंसलिंग के सदस्य अधिवक्ता चंद्रशेखर तिवारी के मुताबिक पुलिस नियमावली में यह कहीं नहीं है कि रेंज में डीआईजी की जगह आईजी बैठेगा और जनपद में एसपी की जगह डीआईजी बैठेगा.

राज्य का जिम्मा डीजीपी के हाथ: बता दें कि 2007 पुलिस एक्ट के मुताबिक राज्य को चलाने का जिम्मा एकमात्र डीजीपी का है. जनपद को चलाने की जिम्मेदारी SP/ SSP की है और रेंज को चलाने का दायित्व DIG का नियमानुसार है. अधिवक्ता तिवारी भी इस बात को मानते हैं कि अगर जिले में नियमावली अनुसार एसपी को तैनात कर उसे सीखने का अनुभव ही नहीं दिया जाएगा तो एक अरसे से चली आ रही बेहतर पुलिसिंग जिले की कानून व्यवस्था कैसे आगे बढ़ पाएगी.

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SP रैंक के अधिकारी दरकिनार: अभी तक डीआईजी स्तर के अधिकारी को जिला चलाने का अनुभव पहले से ही है, लेकिन उसके बावजूद SP रैंक के अधिकारी दरकिनार कर फिर से डीआईजी रैंक के अधिकारी को बैठाया जाएगा तो सवाल उठने लाजमी है और यह पुलिस परंपरा के अनुसार आने वाले समय में नकारात्मक परिणाम भी दे सकते हैं.

आईपीएस के 69 पद स्वीकृत: केंद्र द्वारा निर्धारित उत्तराखंड में आईपीएस के 69 पद स्वीकृत है. जिसमें डीजीपी का एक, एडीजी के दो, आईजी के पांच, डीआईजी के नौ, एसपी/एसएसपी के 21 पद शामिल है. मौजूद समय मे 53 IPS उत्तराखंड में इस वक्त सेवाएं दे रहे हैं. हालांकि, कुछ अन्य आईपीएस बाहर यानी केंद्र और विदेश में है. उनकी राज्य सेवाओं में फिलहाल गिनती नहीं होती हैं.

पुलिस विभाग में राजनीतिक हस्तक्षेप: बहरहाल, उत्तराखंड पुलिस विभाग में राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते न सिर्फ एसपी रैंक के अधिकारों का हनन कर जनपद की जिम्मेदारी नियमावली के विरुद्ध डीआईजी रैंक को दी जा रही है. बल्कि दूसरी तरफ राज्य में प्रमोशन के उपरांत पॉलिसी मुताबिक अधिकारियों का तबादला न करने का भी घोर उल्लंघन किया जा रहा हैं.

बीते दिनों देहरादून और हरिद्वार जनपद एसएसपी सहित 5 आईपीएस अधिकारियों की डीपीसी जारी होने के बाद उनको DIG रैंक का प्रमोशन प्राप्त हुआ, लेकिन विडंबना देखिये प्रमोशन पाने वाले दोनों जनपद के प्रभारियों को ट्रांसफर भी नहीं किया गया है. इससे साफ जाहिर होता हैं कि उत्तराखंड शासन में कैसे सरकारी नीति का घोर उल्लंघन होता नजर आ रहा हैं.

Last Updated : Nov 10, 2021, 10:41 PM IST

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