विकासनगर: देशभर में दशहरे के दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ का पुतला दहन की परंपरा है, लेकिन देहरादून के जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र के ग्राम उद्पाल्टा में श्राप से मुक्ति के लिए दो कन्याओं की घास की प्रतिमाओं को बनाकर जल में विसर्जित करने की परंपरा है.
बताया जाता है कि सदियों पहले उद्पाल्टा के गांव में दो परिवारों में दो कन्या रानी व मुन्नी थी, जो गांव के नजदीक कुएं में पानी लेने गई थी. एक दिन एक कन्या का पैर फिसलने से वह कुएं में गिर गई, जिससे उसकी मौत हो गई. इसके लिए परिजनों ने दूसरी कन्या को जिम्मेदार ठहराया था. ग्रामीणों के ताने सुन दूसरी कन्या ने भी उसी कुएं में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी.
कुछ दिनों बाद दोनों कन्याओं का श्राप ग्रामीणों को लगा, तब से श्राप से मुक्ति पाने के लिए उद्पाल्टा व कुरौली गांव के लोग दोनों कन्याओं की घास की प्रतिमा बनाकर जल में विसर्जित करने की परंपरा का निर्वहन करते हैं. यह परंपरा आज तक चली आ रही है. उनकी याद में दशहरे के दिन पाइंता पर्व मनाते हैं, जिसमें दोनों गांव के लोग कियाणी धार पर गागली युद्ध करते हैं. उसके बाद सभी ग्रामीण एक दूसरे को गले लगाकर पंचायती आंगन में सामूहिक लोक नृत्य करते हैं.