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उत्तराखंड: बुद्धिजीवियों ने CAA को लेकर राष्ट्रपति को भेजा खुला पत्र - राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR)

प्रदेश के बुद्धिजीवी, शिक्षकों और इतिहासकारों, ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर , राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और नागरिकता संशोधन कानून के संबंध में एक खुला पत्र राष्ट्रपति के नाम भेजा है.

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Published : Feb 26, 2020, 11:53 AM IST

देहरादून: प्रदेश के बुद्धिजीवी, शिक्षकों और इतिहासकारों, ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC), राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) और नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के संबंध में एक खुला पत्र राष्ट्रपति के नाम भेजा है. पत्र में एनआरसी, एनपीआर से संबंधित बिंदुओं का उल्लेख किया गया है.

राष्ट्रपति को सौंपा गया खुला पत्र.

मंगलवार को पूर्व आईएएस एसएस पांगती ने बताया कि देश मे वर्ष 1955 में ही नागरिकता संबंधी एक्ट बन गया था. जो 2003 में संशोधित हुआ. सरकार ने जल्दबाजी में एनआरसी लागू कर दिया. जबकि पहले इस विषय पर सरकार को मंथन करना चाहिए था. वहीं, पूरे देश में किसी भी धर्म ,संगठन से जुड़े लोग, विद्वान, साधारण लोग इस बात से चिंतित और भयभीत हैं कि उनसे संवैधानिक अधिकार छीनने जा रहा है. जबकि संविधान में कहा गया है कि धर्म के आधार पर दो व्यक्तियों में भेदभाव नहीं किया जाएगा. आर्टिकल 14 के तहत समानता का अधिकार छीना जा रहा है. लोगों का कहना है कि अगर वह चुप बैठ जाते हैं तो आने वाले समय में उनसे दूसरे अधिकार भी छीन लिए जाएगे.

राष्ट्रपति के नाम भेजे गए खुले पत्र में उल्लेखित किए गए बिंदु-

  • नागरिकता नियमावली के अनुसार यह स्पष्ट है कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर पहले बनेगा और उसी के आधार पर राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर बनाया जाएगा.
  • संसद द्वारा पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम के कुछ प्रावधान धर्म के आधार पर हैं जो कि संविधान की धारा 14 में प्रदत समानता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं.
  • राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के निर्माण की प्रक्रिया के दौरान किसी भी व्यक्ति की नागरिकता पर कोई भी अधिकारी या कर्मचारी किसी भी अस्पष्ट से आधार पर आपत्ति लगा सकता है.
  • एनपीआर के तहत जब यह काम चलेगा तो लोगों को घंटों लाइन पर लगकर रजिस्ट्रेशन कराना पड़ेगा
  • बता दें कि प्रधानमंत्री ने कहा है कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर और डिटेंशन सेंटर पर कोई चर्चा नहीं हुई है. जबकि, गृहमंत्री ने कई बार संसद में बयान दिया है कि एनआरसी पूरे देश में अवश्य लागू होगा. इस स्थिति में एनपीआर और एनआरसी के प्रक्रियाओं को रद्द किया जाना चाहिए.
  • नागरिकता संशोधन अधिनियम को समुदायों की नागरिकता को बचाने के लिए लाया जा रहा है यह सोच संविधान और जनविरोधी है.
  • यह देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति के लिए घातक है.
  • सनातन के लिए निष्पक्ष कानून बने लेकिन उनके नाम पर धार्मिक भेदभाव करना गलत है.
  • नागरिकता अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत नागरिकता पंजीयन हेतु व्यक्ति को कोई प्रार्थना पत्र देने की आवश्यकता नहीं होती.

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