देहरादून: उत्तराखंड का जोशीमठ साल 2023 में काफी सुर्खियों में रहा. सुर्खियों की वजह थी, जोशीमठ नगर के मकानों में पड़ती दरारें. जनवरी महीने से ज्यादा दरारें दिखनी शुरू हुई थी. इन दरारों की वजह से लोगों को शिफ्ट करना पड़ा था तो खतरे के मुहाने पर खड़े होटल और मकानों को भी ध्वस्त किया गया. अब जोशीमठ के चार वार्डों में आई दरारों के बीच मौजूदा हालात क्या हैं? सरकार ने कितना ध्यान दिया और लोग कितने संतुष्ट हैं? इन्हीं सभी पहलुओं को जानने के लिए ईटीवी भारत ने उन तमाम लोगों से बातचीत की, जो सीधे जोशीमठ के मौजूदा हालात को ठीक करने की जिम्मेदारी संभाले हुए हैं.
मकानों में दरारें पड़ने लगी तो लोगों की उड़ी थी नींद:जोशीमठ में दरार साल 2022 में ही नजर आने लगी थी, लेकिन जनवरी 2023 में दरारें एकाएक बढ़ने लगी. तब लोगों को महसूस होने लगा कि कोई बड़ा खतरा मंडरा रहा है. लोग एक-एक पाई जोड़कर बनाए आशियानों को छोड़ने को मजबूर हो गए. जोशीमठ के लोग आंखों में आंसू और सरकारी मदद के लिए गुहार लगाते नजर आए. कड़कड़ाती ठंड में लोग अपने रिश्तेदारों के यहां शरण लेने या फिर खुले आसमान के नीचे सोने के लिए मजबूर हो गए.
इधर, जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति भी लगातार मामले को लेकर धरना प्रदर्शन कर रही थी. ऐसे में जब मामले ने तूल पकड़ा और जोशीमठ में दरार की खबरें सामने आने लगी तो केंद्र एवं राज्य सरकार हरकत में आई. आनन-फानन में जोशीमठ के दरार ग्रस्त इलाकों के लोगों को अस्थायी शेल्टर में शिफ्ट करने का निर्णय लिया गया. इसके साथ ही राहत का सिलसिला भी शुरू हुआ. तमाम वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों से अध्ययन करवाकर कारण एवं ट्रीटमेंट के उपाय खोजे जाने लगे.
तपोवन विष्णुगाड़ हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पर उठाए सवाल:जोशीमठ में दरार और भू धंसाव का मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर हो गया था. इतना ही नहीं जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति और स्थानीय लोगों ने दरार का जिम्मेदार तपोवन विष्णुगाड़ हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को ठहराया. लोगों ने एनटीपीसी के खिलाफ सड़कों पर उतरे और विरोध प्रदर्शन किया. लोगों का मानना था कि इसी प्रोजेक्ट की वजह से ही जोशीमठ के घरों में दरारें आ आ रही हैं, लेकिन बाद में सर्वे के बाद इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई.
इस प्रोजेक्ट पर सवाल इसलिए उठ रहे थे क्योंकि, जोशीमठ के मारवाड़ी और सुनील वार्ड में जमीन से जो पानी फट रहा था, वो मटमैला आ रहा था. साथ ही एकाएक स्रोत फूटा था. ऐसे में लोगों ने अंदेशा जताया कि यह प्रोजेक्ट पहाड़ को खोखला कर रहा है. इसी वजह से पानी के साथ कीचड़ आ रहा है. हालांकि, सर्वे से जुड़े विशेषज्ञों का कहना था कि तपोवन जोशीमठ से करीब 15 किलोमीटर दूर है. ऐसे में इस प्रोजेक्ट का इन घटनाओं से कोई संबंध नहीं है.
ये भी पढ़ेंःजोशीमठ पुनर्निर्माण में आएगी तेजी, केंद्र 3 किस्तों में देगा ₹1079.96 करोड़, जल्द शुरू होगी बसावट
क्या कहते हैं चमोली के डीएम? जोशीमठ के हालात क्या हैं? इसको जानने के लिए चमोली जिलाधिकारी हिमांशु खुराना से बातचीत की गई. डीएम खुराना का कहना है कि पिछले साल जिन मकानों को चयनित किया गया था, उनमें दोबारा से किसी का रहना फिलहाल संभव नहीं है. या यूं कहें कि अब ये मकान किसी भी रूप से दोबारा रहने लायक नहीं हैं. करीब 850 मकानों को अनसेफ घोषित किया गया है, जो किसी तरह से भी सुरक्षित नहीं हैं.
डीएम खुराना ने बताया कि जिला प्रशासन लगातार उन लोगों के संपर्क में हैं, जो अपने मकान को छोड़कर दूसरी जगह रह रहे हैं. अगर मुआवजे की बात करें तो अभी तक करीब 190 परिवारों को 43 करोड़ रुपए की राशि राहत के तौर पर दी जा चुकी है. जो भी पीड़ित हैं, हम उन तक मुआवजा पहुंचा रहे हैं. फिलहाल, पूरे क्षेत्र में सर्वे का काम चल रहा है. सर्वे के बारे में पूछे जाने पर उनका कहना था कि 'यह टेक्निकल प्वाइंट है. ऐसे में इससे संबंधित अधिकारी से बात करनी चाहिए.'
जियो टेक्निकल सर्वे में ये बात आई सामने:पीडब्ल्यूडी के अधिशासी अभियंता राजीव सिंह चौहान का कहना है कि अभी सभी जगह सर्वे चल रहा है. जो सर्वे हुए हैं, उनमें कुछ बातें क्लियर हुई हैं. हालांकि, यह रिपोर्ट लैब में जाने के बाद ही क्लियर हो पाएगी. सुनील और मनोहर बाग वार्ड में सर्वे पहले ही पूरा हो गया था. इसके साथ ही सिंहद्वार वार्ड में भी सर्वे पूरा कर लिया गया है.
राजीव सिंह चौहान ने बताया कि अब तक जो सर्वे में बातें सामने आई हैं, उनके मुताबिक सुनील वार्ड के गहराई में कोई भी चट्टान नहीं मिली है. जबकि मनोहर बाग और सिंह द्वार वार्ड में ड्रिलिंग करने पर चट्टान मिली है. इसी तरह से मारवाड़ी वार्ड के अंदर चल रहे सर्वे में कुछ हद तक पता लगा है कि 48 मीटर के बाद चट्टान मिली है.
इन सभी जगह के सैंपल इकट्ठे किए जा रहे हैं. सर्वे का काम नीदरलैंड की फुग्रो और दिल्ली की खन्ना एसोसिएशन कंपनी कर रही है. सर्वे की रिपोर्ट जैसे ही आएगी, उस रिपोर्ट को सरकार को सौंप दिया जाएगा. उसके बाद सरकार ही यह फैसला करेगी कि आखिरकार आगे करना क्या है?