देहरादूनः उत्तराखंड राज्य को बने 23 साल पूरे हो गए हैं. राज्य का गठन के बाद से ही उत्तराखंड में कई बड़े बदलाव देखे गए हैं. ऐसे में अब उत्तराखंड राज्य 24 में साल में प्रवेश करने जा रहा है. लिहाजा, अभी भी प्रदेश के लिए तमाम वो बड़ी चुनौतियां बरकरार हैं. जिसकी वजह से प्रदेश अभी भी विकास का पंख नहीं लगा पा रहा है. आखिर वो कौन-कौन सी चुनौतियां हैंं, जो अभी भी प्रदेश की विकास गतिविधियों में बाधा बन रही है? इसकी जानकारी से आपको ईटीवी भारत रूबरू करवाते हैं.
उत्तराखंड राज्य गठन को 23 साल का वक्त पूरा हो गया है. राज्य गठन के शुरुआती दौर में विकास की बड़ी दरकार थी, लेकिन इन 23 सालों में न सिर्फ राज्य की दिशा और दशा बदली. बल्कि, समय के अनुसार तमाम चुनौतियां भी बढ़ती चली गई. पिछले 23 सालों के भीतर राज्य के हर क्षेत्र में तमाम बड़े काम हुए हैं. मुख्य रूप से बात करें तो चाहे वो शिक्षा का क्षेत्र हो या स्वास्थ्य का क्षेत्र हो या फिर ट्रांसपोर्टेशन का क्षेत्र हो. इन सभी क्षेत्रों में बेहतर काम हुआ है, लेकिन अभी भी इन क्षेत्रों में तमाम कम होने बाकी हैं.
हालांकि, हर साल राज्य स्थापना दिवस के मौके पर राजनीतिक पार्टियां, सत्ताधारी पार्टियों पर सवाल उठाती रहती है, लेकिन जिस अवधारणा को लेकर एक अलग पर्वतीय राज्य की मांग की गई थी, वो अवधारणा आज भी पूरी नहीं हो पाई है. जिसमें मुख्य रूप से बात करें तो अभी तक प्रदेश को स्थाई राजधानी नहीं मिल पाई है. जबकि, प्रदेश में दो-दो अस्थाई राजधानी की सौगात मिल चुकी है. यही वजह है कि आंदोलनकारी समय-समय पर राज्य गठन की अवधारणा को लेकर सरकारों के सामने सवाल उठाते रहे हैं कि आखिर कब उत्तराखंड राज्य को अपनी स्थाई राजधानी मिलेगी?
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23 सालों में करीब 20 गुना बढ़ा राज्य का बजटःउत्तराखंड राज्य गठन के बाद पहली अंतरिम सरकार के दौरान तात्कालिक वित्त मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने साल 2001 में राज्य का पहला बजट पेश किया था, उस दौरान सदन में 4,505.75 करोड़ रुपए का बजट पेश किया गया था. जबकि, वर्तमान साल 2023 में वित्तमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए कुल 77407.08 करोड़ रुपए का बजट पेश किया. इसके साथ ही इसी वित्तीय वर्ष में सरकार ने 11321.12 करोड़ रुपए का अनुपूरक बजट भी पेश किया. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि मौजूदा समय में सरकार जितने अमाउंट का अनुपूरक बजट पेश कर रही है, उसका आधा ही शुरुआती सालों में राज्य का पूर्ण बजट होता था. लिहाजा इन 23 सालों में उत्तराखंड ने बड़ी सफलताएं हासिल की है.
राजनीतिक अस्थिरता और केदारनाथ आपदा ने लगाया ब्रेकः उत्तराखंड इन 23 सालों में एक बेहतर राज्य बनकर उभर सकता था, लेकिन प्रदेश की एक राजनीति में राजनीतिक अस्थिरता और साल 2013 में केदार घाटी में आई भीषण आपदा की वजह से वो तरक्की हासिल नहीं कर सकी, जो अभी तक कर सकती थी. क्योंकि, इन 23 साल के युवा राज्य को अभी तक 13 मुख्यमंत्री मिल चुके हैं. जिसके चलते कहीं ना कहीं के विकास पर भी इसका असर पड़ा है. इसके अलावा साल 2013 में आई भीषण आपदा के चलते भी उत्तराखंड राज्य की आर्थिक को बड़ा झटका लगा. क्योंकि, आपदा आने की वजह से प्रदेश में एक बड़ी आर्थिकी का संसाधन पर्यटन व्यवसाय पूरी तरह से ठप हो गया. लिहाजा, जानकार मानते हैं कि अगर राज्य की राजनीति में राजनीतिक अस्थिरता और आपदा न आई होती तो राज्य एक बेहतर मुकाम पर होता.
राज्य गठन के बाद जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय में हुआ बड़ा इजाफाः उत्तराखंड को विशेष श्रेणी का दर्जा, औद्योगिक पैकेज और नए राज्य के प्रति केंद्र सरकारों के सहयोग के चलते ही इन 23 सालों में प्रदेश की जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय में भी काफी वृद्धि हुई है. वर्तमान समय में अनुमानित उत्तराखंड की जीडीपी 3.33 लाख करोड़ और प्रति व्यक्ति आय 2,33,565 तक पहुंच गई है, लेकिन जब राज्य का गठन हुए था, उस दौरान राज्य की प्रति व्यक्ति आय करीब 14 हजार रुपए और जीडीपी करीब 1.60 लाख करोड़ रुपए थी. मुख्य रूप से देहरादून, हरिद्वार और उधमसिंह नगर जिलों की वजह से राज्य की जीडीपी में बड़ा उछाल देखा गया, लेकिन अभी भी प्रदेश के पर्वतीय जिलों की प्रतिव्यक्ति सालाना आय एक लाख के आसपास ही है.
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