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विश्व प्रसिद्ध लक्ष्मण झूला पुल हुआ 'कमजोर', जानें 90 सालों का इतिहास - कमजोर हुआ लक्ष्मण झूला पुल

ऋषिकेश में गंगा नदी के ऊपर पर बना लक्ष्मण झूला शुक्रवार से जनता के लिए बंद कर दिया गया है. नदी पर बने इस पुल की खराब हालत को देखते हुए एहतियातन प्रशासन ने इस संबंध में आदेश जारी किए हैं

लक्ष्मण झूला.

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Published : Jul 12, 2019, 8:01 PM IST

Updated : Jul 13, 2019, 11:06 AM IST

ऋषिकेश: आप तीर्थनगरी आएं और लक्ष्मण झूला पुल की सैर न करें ये हो ही नहीं सकता. पूरी दुनिया में अपनी सुंदरता और पौराणिक महत्व के लिए विश्व प्रसिद्ध तीर्थनगरी स्थित लक्ष्मण झूला पुल आज 90 वर्ष का हो गया है. दुनिया भर के पर्यटकों और तीर्थयात्रियों के लिए पुल आकर्षण का केंद्र है.

विश्व प्रसिद्ध लक्ष्मण झूला पुल हुआ 'कमजोर'

लक्ष्मण झूला पुल इनदिनों चर्चाओं में है. वजह है पुल फिलहाल आवाजाही के लिए रोक दिया गया है. दरअसल, पुल को लेकर हाल ही में तकनीकी परीक्षण करवाया गया था, जिसमें कई खामियां सामने आई थीं. इस पुल के कई हिस्से बेहद कमजोर हो चुके हैं. इस रिपोर्ट के बाद शासन ने प्रदेश के सभी पुलों का तकनीकी परीक्षण करवाने का निर्णय लिया है.

पढ़ें:क्ष्मण झूला पुल की रिपोर्ट पर शासन गंभीर, उत्तराखंड के सभी पुलों का होगा सर्वे

क्यों लक्ष्मण झूला पड़ा पुल का नाम?

लक्ष्मण झूला पुल 90 साल पुराना एशिया का सबसे पहला सस्पेंशन ब्रिज है. जोकि ब्रिटिश शासन काल में बनकर तैयार हुआ था. पुरातन कथनानुसार भगवान श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण ने इसी स्थान पर जूट की रस्सियों के सहारे नदी को पार किया था.

पढ़ें:एक ओर झुका ऋषिकेश का ऐतिहासिक लक्ष्मण झूला पुल, आवाजाही को किया गया बंद

पुल के पश्चिमी किनारे पर भगवान लक्ष्मण का मंदिर है दूसरी ओर रघुनाथ मंदिर है. कहा जाता है कि भगवान राम स्वयं इस स्थल पर पधारे थे. पुल को पार कर बाईं ओर से पैदल रास्ता बदरीनाथ व दायीं ओर से रास्ता स्वर्गाश्रम को जाता है. केदारखंड में इस पुल के नीचे इंद्रकुंड का विवरण है, जो अब प्रत्यक्ष नहीं है.

मुख्य बिंदू-

  • 11 अप्रैल 1930 में बने लक्ष्मण झूला पुल को 89 वर्ष पूरे हो गए हैं. 90 वर्ष में प्रवेश हो गया है.
  • इस पुल की नींव अंग्रेजी हुकूमत ने 1927 में रखी थी.
  • 1930 में लोगों की आवाजाही के लिए इस पुल को खोला गया था.
  • लक्ष्मण झूला पुल एक 450 फीट लम्बा झूलता हुआ पुल है. जहां से नदी, मंदिरों और आश्रमों का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है.
  • मूलतः यह जूट का बना एक पुल था जिसे स्वामी विशुदानंद की प्रेरणा से कलकत्ता के सेठ सूरजमल ने 1889 में बनवाया था.
  • इससे पूर्व जूट की रस्सियों का ही पुल था. तब रस्सियों के सहारे इस पुल पर लोगों को छींके में बिठाकर खींचा जाता था.
  • बाद में इस पुल को लोहे के तारों से बनाया गया लेकिन वो पुल भी 1924 की बाढ़ में बह गया.
  • इसके बाद अंग्रेजों ने मजबूत एवं आकर्षक पुल बनाया जो आज भी सभी के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.

दो जिलों को जोड़ता है यह पुल

गंगा नदी के ऊपर बना यह पुल टिहरी जिले में तपोवन गांव को नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित पौड़ी गढ़वाल जिले के जोंक से जोड़ता है. इस पुल पर कई प्रसिद्ध फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है.

Last Updated : Jul 13, 2019, 11:06 AM IST

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