देहरादून: आधुनिकता के इस दौर में न गांधी के विचार बदले न गांधी जी का चरखा. लेकिन बदले हैं तो सिर्फ विकास के आयाम. प्रदेश में कई ऐसे विकास कार्य हैं जिन्हें अंग्रेजी हुकूमत ने किया था. जो आज भी अतीत की कहानी बयां कर रहे हैं. जिसे देखकर आज भी लोग आश्चर्यचकित रह जाते हैं.
ब्रितानी हुकूमत के दौरान बना ग्लोगी परियोजना. अंग्रेजी हुकूमत में जब कई महानगर विद्युत व्यवस्था से अछूते थे, तब देहरादून और पहाड़ों की रानी मसूरी को रोशन करने के लिए 'ग्लोगी परियोजना' की शुरुआत की गई थी. ये देश की सबसे पुरानी परियोजना है, जिसकी रोशनी से आज भी देहरादून और मसूरी जगमगा रहा है. परियोजना के लिये मसूरी में 1890 के दशक में ही काम शुरू हो गया था. अंग्रेजों ने विद्युत उत्पादन के लिए भारत में सबसे पहले मसूरी को चुना और जिसके इतिहास को ग्लोगी पॉवर हाउस आज भी बयां कर रहा है.
आज भले ही देश गांधी जी की 150वीं जयंती मना रहा हो लेकिन आधुनिक भारत में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां लोग आज भी विद्युत सुविधा से महरूम हैं. वहीं, मसूरी स्थित ग्लोगी पॉवर हाउस ने उस वक्त क्षेत्र के विकास को हवा दी जब देश गुलाम था. जो आज तक पूरे क्षेत्र को रोशन कर रहा है. ब्रिटिश काल में देहरादून और मसूरी को बिजली से रोशन करने के लिए अंग्रेजों ने इस विद्युत गृहों की परिकल्पना की थी. जिसको उस समय अमलीजामा भी पहनाया गया.
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तथ्यों के अनुसार इस जल विद्युत परियोजना पर तकरीबन 7 लाख 50 हजार रुपए तक का खर्चा आया था. सबसे पहले बढे जनरेटर और संयंत्रों को देहरादून नगर से बाया दून घाटी के गढ़ीडाकरा इलाके से एक कच्ची सड़क बनाकर बैलगाड़ियों के जरिए ग्लोगी तक पहुंचाने का निर्णय लिया गया, लेकिन विस्तृत सर्वेक्षण के बाद इसमें अधिक धन और समय की बर्बादी को ध्यान में रखते हुए इसे देहरादून-मसूरी मोटर मार्ग जो कि उस वक्त बैलगाड़ी मार्ग था, उसके जरिए मशीने यहां तक पहुंचाई गई. सन 1900 में पहली दफा देहरादून पहुंची रेल ने इस परियोजना को गति देने में सबसे बड़ी भूमिका अदा की थी.
जिससे कि इंग्लैंड से पानी के जहाजों के जरिए, मुंबई पहुंची भारी मशीनें और टरबाइनों को देहरादून पहुंचाया गया. फिर बैलगाड़ियों तथा श्रमिकों के कंधो पर ग्लोगी जल विद्युत गृह में सैकड़ों फीट नीचे पहाड़ी में योजना स्थल तक पहुंचाई गई. आखिरकार 1907 में क्यारकुली और भट्टा में बने छोटे तालाबों से 16 इंच पाइप लाइनों से पहुंची जलधाराओं ने इंग्लैंड से बनी विशालकाय टर्बाइन मशीनों को चलाना शुरू किया और मसूरी-देहरादून के लोगों के घरों में पहली बार बिजली का बल्ब जला.
9 नवंबर 1912 में ग्लोगी विद्युत गृह ने देश में दूसरा बिजलीघर होने का मुकाम हासिल किया. साल 1920 तक मसूरी के अधिकतर बंगलों- होटलों और स्कूल से लैंप उतार दिए गए थे और उनकी जगह बिजली के चमकीले बल्बों ने ले ली थी. धीरे-धीरे मसूरी के लंढौर और फिर देहरादून का विद्युतीकरण हुआ. मसूरी पालिका पूरे 70 साल ग्लोगी बिजली गृह की स्वामी रही, मसूरी देहरादून नगरों की बिजली की आवर्त आय से कभी मसूरी नगर पालिका उत्तर प्रदेश की सबसे धनी नगर पालिका मानी जाती थी.
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साल 1976 को उत्तर प्रदेश विद्युत परिषद ने बिजली घर सहित पालिका के समस्त विद्युत उपक्रम अधिग्रहित कर लिए थे, पिछले 35 सालों से जल विद्युत गृह ने कई उतार -चढ़ाव देखे. पिछले दशकों में पुराने तकनीशियन कर्मचारी बारी-बारी से सेवानिवृत्त हो गए, जो एक सदी पुराने गलोगी बिजली घर को इंग्लैंड निर्मित टरबाइन और मशीनों को चलाने,खराबी आने पर उनकी मरम्मत का ज्ञान रखते थे. दरअसल बिजली घर में लगे मूल विदेशी मशीनों के पूर्जे पुरानी तकनीकी के है और अब उनका बनना बंद हो गए हैं.
राज्य के गठन के बाद इसका नियंत्रण उत्तराखंड जल विद्युत निगम के हाथों में दिया गया है. वहीं, इस ऐतिहासिक धरोहर को संवारने और नई पीढ़ी को इसकी बारे में बताने की जरुरत है. गलोगी विद्युत गृह को तकनीकी इतिहास में गौरवशाली धरोहर की संज्ञा देते हुए और इसकी महता बनाए रखते हुए वर्तमान में इस पर नवीनीकरण आधुनिकरण व उच्चीकरण के कार्य प्रगति पर है. यह 113 साल पुराना गलोगी बिजली ग्रह भारतीय विद्युत ऊर्जा इतिहास व इस राज्य की गौरवशाली धरोहर है.