देहरादून: पहाड़ों में भूस्खलन के बढ़ते मामले राज्य के लिए बड़ी चिंता का सबब हैं. हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार पूरे प्रदेश में करीब 6300 ऐसे भूस्खलन जोन पाए गए, जो पहाड़ों पर यात्रियों के लिए कभी भी खतरा बन सकते हैं. भू-वैज्ञानिकों की एक दूसरी रिपोर्ट ने कुछ और चौंकाने वाले तथ्य सामने रखे हैं, जो खासतौर पर अलकनंदा घाटी से जुड़े हुए हैं. क्या है यह रिपोर्ट और इसने खासतौर पर रुद्रप्रयाग और चमोली जिले के लिए कैसी चिंताएं खड़ी कर दी हैं, आइये आपको बताते हैं.
सर्वे रिपोर्ट हुई सार्वजनिक: अलकनंदा घाटी से जुड़ी वैज्ञानिकों की एक रिपोर्ट सार्वजनिक (Geologists report on Alaknanda Valley is public) हुई है. इसमें भू वैज्ञानिकों ने भूस्खलन जोन की वजह को लेकर अलकनंदा घाटी क्षेत्र में किए गए सर्वे की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया है. यह रिपोर्ट इसलिए भी चौंकाने वाली है क्योंकि लैंडस्लाइड जोन की संख्या के लिहाज से अलकनंदा घाटी को बेहद संवेदनशील (Alaknanda valley sensitive in terms of landslide zone) माना गया है. रिपोर्ट के अनुसार अलकनंदा घाटी में 500 से ज्यादा भूस्खलन जोन (More than 500 Landslide Zones in Alaknanda Valley) हैं, जो संपर्क मार्गों के लिए बड़ा खतरा हैं.
भूस्खलन को लेकर भू-वैज्ञानिकों ने किये चौंकाने वाला खुलासे अलकनंदा घाटी में 500 से ज्यादा भूस्खलन जोन: केवल अलकनंदा घाटी में ही इतनी बड़ी संख्या में लैंडस्लाइड जोन का मिलना अपने आप में चौंकाने वाला है. रिपोर्ट में माना गया कि 2013 की आपदा के दौरान करीब 440% अधिक बारिश होने से इस क्षेत्र में लैंडस्लाइड जोन विकसित हुए हैं. यही नहीं विभिन्न सड़क मार्गों के बनने से भी भूस्खलन जोन की संख्या बढ़ी है. रिपोर्ट में माना गया कि कुल लैंडस्लाइड जोन की संख्या में से 42% चिन्हित भूस्खलन जो सड़क से 50 मीटर क्षेत्र के बीच बने हैं.
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DMD डायरेक्टर पीयूष रौतेला की टीम ने किया सर्वे: आपदा प्रबंधन विभाग में निदेशक के तौर पर काम कर रहे पीयूष रौतेला (Disaster Management Department Director Piyush Rautela) के नेतृत्व में भू वैज्ञानिकों की टीम ने पाया कि अलकनंदा घाटी के ऊपरी क्षेत्र में कई जगह ऐसी भी थीं जहां कभी भी भूस्खलन जोन नहीं बने थे. लेकिन सड़क निर्माण के बाद इन क्षेत्रों में बार-बार अब भूस्खलन हो रहा है. इतना ही नहीं वैज्ञानिकों ने माना है कि पहाड़ी क्षेत्र में सड़क निर्माण पर्यावरणीय रूप से अध्ययन के बाद ही होना चाहिए. ऐसा नहीं होने पर अलकनंदा घाटी भूस्खलन के लिहाज से और भी ज्यादा संवेदनशील हो सकती है.
चमोली और रुद्रप्रयाग में अलकनंदा वैली ज्यादा खतरनाक: अलकनंदा नदी के ऊपरी क्षेत्रों में करीब 510 लैंडस्लाइड जोन रिकॉर्ड किए गए हैं. इसमें 220 चमोली क्षेत्र में पाए गए हैं. रुद्रप्रयाग जिले में इनकी संख्या 290 है. यह वह क्षेत्र हैं जो चारधाम के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है. यहां पर श्रद्धालुओं और पर्यटकों की बड़ी संख्या गुजरती है. शायद यही कारण है कि ऑल वेदर रोड का एक बड़ा हिस्सा इस क्षेत्र में बनाया जा रहा है. इस क्षेत्र में ऑल वेदर रोड भी भूस्खलन का एक प्रमुख कारण है. जिसके कारण यह मार्ग अक्सर बाधित रहता है. इस अलकनंदा घाटी से केदारनाथ, त्रिजुगीनारायण समेत रुद्रप्रयाग के कई तीर्थ और पर्यटन स्थलों की ओर जाया जाता है. चमोली की बात करें तो इसमें बदरीनाथ से लेकर जोशीमठ, पीपलकोटी और औली जैसे स्थलों के बीच भी कई भूस्खलन जोन हैं.
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अलकनंदा वैली के कई कस्बों को खतरा: बता दें कि गंगा नदी में सबसे ज्यादा पानी अलकनंदा नदी का ही है. केदारनाथ में आई आपदा के बाद सरकार ने इस तरह का एक सर्वे कराने का निर्णय लिया था, जिसकी रिपोर्ट अब सार्वजनिक की गई है. भूवैज्ञानिक मानते हैं कि उत्तराखंड में खासतौर पर गढ़वाल क्षेत्र में ऐसे कई क्षेत्र हैं जो भूस्खलन की जद में हैं. अलकनंदा में तेज ढलान क्षेत्र हैं. जिस तरह के हालात हैं उससे इस अलकनंदा वैली के बीच में आने वाले कई ऐतिहासिक कस्बे खतरे की जद में हैं.
भूवैज्ञानिक एसपी सती को केदारनाथ आपदा जैसा डर: भूवैज्ञानिक एसपी सती (Geologist SP Sati) कहते हैं कि देवप्रयाग शहर भी भूस्खलन के जोन में है. इसके अलावा श्रीनगर से रुद्रप्रयाग के बीच ऐसे कई बड़े भूस्खलन जोन बन गए हैं जो बड़े खतरे को दावत दे रहे हैं. एसपी सती कहते हैं कि ऋषिकेश से नीति और ऋषिकेश से बदरीनाथ के बीच भूस्खलन का एक बड़ा पैच बन चुका है. इतना ही नहीं एसपी सती मंदाकिनी वैली में भी बड़ा खतरा मान रहे हैं. यहां उनका दावा है कि कुल क्षेत्र का 40% क्षेत्र लैंडस्लाइड जोन में आ चुका है. उनका कहना है कि इस स्थिति में प्रदेश के पहाड़ी जिलों के क्षेत्र में केदारनाथ जैसी आपदा को दोहराने की तरफ दिखाई दे रहे हैं.