देहरादून: राज्यों में निवेश के लिए निवेशक सरकार से ऐसी कई सुविधाओं की अपेक्षा करता है. जिससे वह आसानी से अपने उद्योग को ना केवल स्थापित कर सके बल्कि समयबद्धता के साथ उत्पादन को भी शुरू कर सके. इसी में से एक उस राज्य की विद्युत उपलब्धता भी है. जिसकी बदौलत निवेशक खुद को स्थापित कर पाता है, लेकिन उत्तराखंड में धामी सरकार निवेश के जिस बड़े लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ रही है, उसे विद्युत संकट एक बड़ा झटका दे सकता है. उत्तराखंड को भले ही ऊर्जा प्रदेश कहा जाता हो, लेकिन राज्य स्थापना के बाद से ही देवभूमि में ऊर्जा का संकट बढ़ता चला गया. आज स्थिति ये है कि उत्तराखंड अपनी मांग का 50% बिजली उत्पादन नहीं कर पा रहा है. ऐसे में बड़े निवेश को स्थापित करने की स्थिति में निवेशकों को बिजली की उपलब्धता किस फार्मूले से पूरी करवाई जाएगी यह एक बड़ा सवाल है.
सभी MOU धरातल पर उतरना नामुमकिन:एक तरफ राज्य में ऊर्जा संकट सामान्य उपभोक्ताओं तक 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराने में भी परेशानी पैदा कर रहा है, तो दूसरी तरफ राज्य सरकार करीब ढाई लाख करोड़ के निवेश का लक्ष्य तय करते हुए निवेशकों से एमओयू साइन करवा रही है. हालांकि सभी MOU धरातल पर उतरना नामुमकिन है, लेकिन 25% MOU भी अगर धरातल पर उतरते हैं, तो मैन्युफैक्चरिंग से जुड़े निवेश इंडस्ट्री को बिजली की आपूर्ति करना सरकार के लिए आसान काम नहीं होगा.
बड़ी बात यह है कि सरकार में मौजूद अधिकारी 8 दिसंबर को इन्वेस्टर समिट कार्यक्रम से पहले ही करीब 8000 करोड़ के निवेश को धरातल पर उतरने का दावा कर रहे हैं. यही नहीं 40 से 5 लाख करोड़ तक के निवेश को भी इन्वेस्टर समिट कार्यक्रम से पहले ही धरातल पर उतरने की भी संभावना व्यक्त की गई है. जिसे एक बड़े निवेश के रूप में देखा जा सकता है.
ऊर्जा निगम को करोड़ों का हो रहा नुकसान:उत्तराखंड में फिलहाल खुले बाजार से बिजली खरीद कर आम उपभोक्ताओं तक बिजली पहुंचाई जा रही है. जिसमें करोड़ों रुपए का नुकसान भी ऊर्जा निगम को हो रहा है. दरअसल ऊर्जा निगम आम उपभोक्ता को करीब ₹6 प्रति यूनिट के लिहाज से बिजली उपलब्ध कराता है, जबकि खुले बाजार में विद्युत की शॉर्टेज के लिहाज से बिजली के दाम 12 से 15 और ₹20 प्रति यूनिट भी होते हैं. हालांकि 2.5 लाख करोड़ के निवेश के इस प्रयास में मैन्युफैक्चरिंग के अलावा बाकी इंडस्ट्री भी शामिल हैं, लेकिन इन उद्योगों की बिजली की मांग कॉमन है.