देहरादून: भारत के सबसे प्रतिष्ठित स्कूलों में से एक दून स्कूल में प्रवेश परीक्षा से हिंदी को हटाये जाने और देव भाषा संस्कृत को वैकल्पिक बनाए जाने का देहरादून में विरोध शुरू हो गया है. इसका विरोध कर रही उत्तराखंड नवनिर्माण सेना ने कहा है कि इस संबंध में दून स्कूल संचालन समिति को एक मांगपत्र सौंपकर हिंदी को हटाए जाने का कड़ा विरोध किया गया.
दून स्कूल द्वारा राष्ट्र भाषा हिंदी और देव भाषा संस्कृत को वैकल्पिक बनाने से नाराज उत्तराखंड नवनिर्माण सेना के महासचिव सुशील कुमार का कहना है कि यह राष्ट्र तथा देवभूमि की मूल भावनाओं का अपमान है. उन्होंने कहा कि 3 वर्ष पूर्व दून स्कूल की प्रवेश परीक्षा से राष्ट्रभाषा हिंदी को हटाया गया. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस विद्यालय में देश के बड़े राजनीतिक तथा अन्य क्षेत्रों से जुड़ी हस्तियों के बच्चे शिक्षा ले रहे हैं, उनमें किसी के द्वारा भी इस पर कोई प्रश्नचिन्ह या संवाद स्थापित नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि देवभूमि तथा भारत अपनी संस्कृति परंपराओं तथा इतिहास में कितने ही पौराणिक ग्रंथों को संजोए हुए हैं. ऐसे में देव भाषा संस्कृत भाषा ही नहीं बल्कि भारत की संस्कृति तथा काव्यों की आत्मा है.
ऐसे हालात में आजादी से पूर्व चली आ रही व्यवस्थाओं में विद्यालय पाठ्यक्रम में हिंदी भाषा को वैकल्पिक करने का निर्णय संस्कृति की पहचान और सशक्तिकरण पर कुठाराघात है. सुशील कुमार का यह भी कहना है कि 8 से 9 साल पहले तक हिंदी पाठ्यक्रम में गढ़वाली तथा कुमाऊंनी साहित्य भी पाठ्यक्रम का हिस्सा रहे. ऐसे में उन्हें हटाया जाना स्कूल की देवभूमि के प्रति सोच को दर्शाता है. उन्होंने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि दुनिया के विभिन्न देशों से दून स्कूल में शिक्षक लिए जाते हैं जिनको देवभूमि की संस्कृति तथा परंपराओं की कोई पहचान नहीं है. उन्होंने प्रश्न उठाते हुए कहा कि क्या दून स्कूल प्रशासन को देश में कोई योग व्यक्ति नजर नहीं आता जो साल दर साल स्कूल में हेडमास्टर के पद पर बाहरी देश के व्यक्ति की नियुक्ति की जाती है. दरअसल, देश के प्रतिष्ठित स्कूलों में शुमार दून स्कूल में प्रवेश परीक्षा से हिंदी को हटाए जाने और देव भाषा संस्कृत को वैकल्पिक बनाने को लेकर कई गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े किए गए हैं.