देहरादून: कभी सेवाभाव के रूप में देखा जाने वाला मेडिकल फील्ड अब शुद्ध मुनाफे की व्यापारिक दौड़ में पूरी तरह शामिल हो गया है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण चिकित्सकों का सरकारी सिस्टम से मोहभंग होना है. पैसे कमाने की अंधी दौड़ के बीच बेहतर स्वास्थ्य सुविधा गरीब परिवारों से दूर होती जा रही है. चिकित्सक सरकारी अस्पतालों की जगह निजी संस्थानों की ओर आकर्षित हो रहे हैं. इस दौर में एक चिकित्सक ऐसा भी है जिन्होंने इस परिपाटी के ठीक उलट काम करने का इरादा बनाया हुआ है. तभी तो इस विशेषज्ञ चिकित्सक ने निजी चिकित्सा संस्थान की मोटी तनख्वाह छोड़कर सरकारी सिस्टम में गरीबों और जरूरतमंदों का इलाज करने की ठानी है.
देहरादून के दून मेडिकल कॉलेज में तैनात डॉक्टर अमर उपाध्याय (Doctor amar upadhyay cardiologist doon medical college) भी उन्हीं चिकित्सकों में शामिल हैं, जो आज भी अपने पेशे को सेवाभाव के रूप में मानते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि उत्तराखंड में स्वास्थ्य विभाग केवल एक कार्डियोलॉजिस्ट के भरोसे चल रहा है. चौंकाने वाली बात यह है कि जब सरकारी मेडिकल कॉलेजों में बॉन्ड भरकर कम फीस पर एमबीबीएस करने वाले छात्र भी बॉन्ड तोड़कर सरकारी अस्पतालों में काम नहीं करना चाहते, तब डॉ अमर उपाध्याय ने विशेषज्ञ चिकित्सक होने के बावजूद देहरादून के एक निजी अस्पताल से नौकरी छोड़ कर दून मेडिकल कॉलेज में अपनी सेवाएं देने का मन बनाया.
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मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले डॉक्टर अमर उपाध्याय ने भी सरकारी मेडिकल कॉलेज से ही एमबीबीएस किया. शायद वह जानते हैं कि गरीब और मध्यम परिवार महंगी स्वास्थ्य सुविधाओं के सामने कितना लाचार हो जाता है. यही वजह है कि उन्होंने सरकारी अस्पताल में ज्यादा से ज्यादा मरीजों को अपनी सेवाएं देने का फैसला लिया. डॉ अमर उपाध्याय जानते हैं कि सरकारी सेवा में दिल के मरीजों को स्वास्थ्य सुविधाएं देने वाले प्रशिक्षित कर्मियों की भारी कमी है. लिहाजा वह मेडिकल कॉलेज में न केवल अब तक दिल से जुड़ी बीमारियों के लिए 300 से ज्यादा छात्रों को सामान्य प्रशिक्षित कर रहे हैं, बल्कि दून मेडिकल कॉलेज के कर्मियों को भी वो वर्कशॉप के जरिए अपने प्रयासों से जानकारियां देने की कोशिश करते रहे हैं.
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