विकासनगरःजौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में आज भी सदियों पुरानी पौराणिक परंपरा जिंदा है. यहां पर देश दुनिया की दीपावली से अलग हटकर एक माह बाद दीपावली का पर्व कई दिनों तक बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. यह दीपावली पूरी तरह से ईको फ्रेंडली और परंपरागत ढंग से मनाई जाती है.
जहां देश दुनिया में दीपावली पटाखे के शोर-शराबे में मनाई जाती है तो वहीं जौनसार बावर में ईको फ्रेंडली दीपावली मनाने की परंपरा पौराणिक है. यहां पर दीपावली कई दिनों तक मनाई जाती है. पहले दिन यहां विमल वृक्ष की पतली लकड़ियों की मशालें बनाकर सभी ग्रामीण एकत्रित होकर ढोल- दमाऊ की थाप पर मशालें जलाकर दीपावली का आगाज होता है. वहीं महासू देवता के नाम से दीपावली में बिरुडी पर्व मनाया जाता है.
इसमें पंचायती आंगन में गांव का मुखिया ऊंचे स्थान से अखरोट बिखराकर लोग उसे प्रसाद के रूप में गृहण करते हैं. वहीं कई दिन पहले से गांव के लोग धान को भिगोकर चिवड़ा बनाते हैं. जिसे प्रसाद के रूप में अपने इष्ट देवता को अर्पित कर सभी लोगों को बांटा जाता है.दीपावली का त्योहार जौनसार बावर जनजाति लोगों में बड़े ही धूमधाम से मनाने की पौराणिक परंपरा है. इस दीपावली में गांव के बाजगी समाज के लोग एक महीने पहले जौ और गेहूं की अपने रसोई घर के एक कोने में पवित्र स्थान पर बुवाई करते हैं जिसे हरियाली कहा जाता है.
बिरुड़ी के दिन बाजगी समाज के लोग दीपावली की बधाई में बिरुड़ी की बधाई देते हैं और सबसे पहले अपने इष्ट देव को अर्पित करते हैं. साथ ही ढोल- दमाऊ थाप पर ग्रामीणों का स्वागत करते हैं.हरियाली को सोने की हरियाली भी कहा जाता है, जिसे शुभ माना जाता है. लोग कानों में हरियाली लगाकर पंचायती आंगन में सामूहिक नृत्य करते हैं. दीपावली समापन के दिन किसी गांव में काठ का हाथी नृत्य तो किसी गांव में हिरण नृत्य होता है. हाथी व हिरण पर गांव के मुखिया को बैठाया जाता है.