देहरादून: देश-दुनिया में कोरोना वायरस का कहर काम होने का नाम नहीं ले रहा है. उत्तराखंड में भी कोरोना वायरस मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. ऐसे में कोरोना काल में डॉक्टरों और नर्स की भूमिका बेहद अहम हो गई है.
अस्पतालों में अपनी जान पर खेलकर नर्स और अन्य स्टाफ कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों का इलाज कर रही हैं. आप सभी को पता है कि किसी भी मरीज से सबसे ज्यादा करीब अस्पताल की नर्सेस ही होती हैं, ऐसे में उन्हें सबसे ज्यादा खतरा होता है.
उत्तराखंड में कोरोना की दस्तक ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई बदलाव किए हैं. ये बदलाव टेक्नोलॉजी के साथ-साथ स्वास्थ्यकर्मियों के काम करने के तरीकों में देखने को मिला है. खासतौर पर वो स्वास्थ्यकर्मी जो अपनी पूरी ड्यूटी कोविड पॉजिटिव मरीज के बीच करते हैं. उन कर्मचारियों पर मानसिक दबाव भी साफ दिखाई देता है. उत्तराखंड में कोरोना का इलाज सरकारी अस्पतालों में हो रहा है.
अस्पतालों में स्टाफ नर्सों की कमी. एक तरफ निजी अस्पतालों में मरीजों की संख्या में कमी आने से छोटे स्वास्थ्य संस्थानों में नर्सों की नौकरी खतरे में आ गई है. वहीं, दूसरी तरफ सरकारी संस्थानों में नर्सों पर बेहद ज्यादा दबाव बढ़ गया है. कोरोनेशन अस्पताल में असिस्टेंट नर्सिंग सुपरिटेंडेंट पूनम गौतम बताती हैं कि एक नर्स करीब 32 बेड पर ड्यूटी देती है, जो मानकों से कहीं ज्यादा है. ऐसे में बढ़ते खतरे के बीच काम करना और मुश्किल हो जाएगा.
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आईपीएचएस का मानक
इस समय देश कोरोना संकट से जूझ रहा है. ऐसे में डॉक्टर्स के साथ फ्रंटलाइन वर्कर्स के तौर पर नर्स की भूमिका और बढ़ जाती है. मरीजों की उचित देखभाल के लिए सिर्फ डॉक्टर ही नहीं नर्सों की भी भारी कमी है. आईपीएचएस (इंडियन पब्लिक हेल्थ सर्विस) की तरफ से स्वास्थ्य सेवाओं में चिकित्सकों से लेकर नर्सिंग स्टाफ तक एक मानक तय किए गए हैं. जिसमें अस्पतालों में चिकित्सकों की संख्या और नर्सिंग स्टाफ की जरूरी मौजूदगी को लेकर एक पैरामीटर तय किया गया है.
इन्हीं मांगों के लिहाज से उत्तराखंड में अकेले सरकारी अस्पतालों में ही करीब 5000 नर्सों की जरूरत है. लेकिन, नर्सों की नियुक्ति को लेकर तैयार किए गए ढांचे में 1350 कुल पद ही सृजित किए गए हैं. हैरानी की बात यह है कि इसमें भी मात्र 800 नर्से ही प्रदेश भर में कार्य कर रही हैं. ऐसे में पूरे प्रदेश में करीब 500 पद खाली पड़े हैं. वैसे तय मानकों के अनुसार 5 मरीजों पर एक नर्स का मानक तय है. दून अस्पताल की सिस्टर इंचार्ज माहेश्वरी बताती हैं कि ड्यूटी के दौरान उन पर बेहद ज्यादा दबाव होता है. ऊपर से कौन सा मरीज और तीमारदार पॉजिटिव है और किन-किन बातों का ख्याल रखना है, इसको फॉलो करना भी बड़ी चुनौती साबित होती है.
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प्रदेश में जब से कोरोना की एंट्री हुई है. तब से ही नर्सिंग स्टाफ की जरूरत बढ़ी है. निजी क्षेत्र के अस्पतालों में तो इसका कोई ज्यादा असर नहीं दिखाई दिया है. लेकिन, सरकारी अस्पतालों में कोविड का इलाज होने के चलते नर्सों की मांग बढ़ी है. इसी के चलते देहरादून के दून मेडिकल कॉलेज में फिलहाल 120 नर्सों की नियुक्ति की गई है. मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना ने बताया कि फिलहाल जरूरत के मुताबिक, 120 नर्सों को तैनाती दी गई है. जरूरत पड़ने पर और भी नियुक्ति की जाएगी.