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गर्मियों में बढ़ने लगी मिट्टी के बर्तनों की मांग, प्रशासन की बेरुखी व्यापारियों पर पड़ रही भारी

मिट्टी के बने वर्तनों की मांग बढ़ने से व्यवसायियों के चेहरे खिले हुए हैं. तापमान के बढ़ते ही मिट्टी से बने घड़े और सुराही की मांग मार्केट में तेजी से बढ़ गई है. आधुनिक दौर में भी मिट्टी के बने बर्तनों का खास महत्व है.

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Published : Apr 26, 2019, 12:04 PM IST

Updated : Apr 26, 2019, 1:00 PM IST

बर्तनों की खरीददारी करते लोग.

देहरादून: गर्मी बढ़ती ही मिट्टी के बर्तनों की मांग बढ़ गई है. आधुनिक दौर में जहां बाजार में प्लास्टिक के बर्तनों ने जगह ले ली है. वहीं, दूसरी ओर लोगों को पारंपरिक मिट्टी से बने बर्तन भी खूब रास आ रहे हैं. जिसके चलते आजकल लोग इन पारंपरिक मिट्टी के बर्तनों की जमकर खरीददारी कर रहे हैं. मिट्टी के बने बर्तनों को स्वास्थ्य के लिहाज से भी काफी अच्छा माना जाता है. जो लोगों को कई बीमारियों से भी दूर रखते हैं.

गर्मियों में बढ़ने लगी मिट्टी के बर्तनों की मांग

गरीबों का फ्रिज
गौर हो कि मिट्टी के बने बर्तनों की मांग बढ़ने से व्यवसायियों के चेहरे खिले हुए हैं. तापमान बढ़ने के साथ ही देशी फ्रिज यानि मिट्टी से बने घड़े और सुराही की मार्केट में मांग तेजी से बढ़ गई है. आधुनिक दौर में भी इन मिट्टी के बने बर्तनों का खास महत्व है. गरीब तबके के लोगों के लिए ये किसी फ्रिज से कम नहीं है. मटके का पानी जहां एक ओर कई फायदे देता है. वहीं, स्वास्थ्य के लिहाज से भी ये काफी लाभकारी माना जाता है. यही वजह है कि आजकल राजधानी देहरादून में मिट्टी के बने बर्तनों की दुकानों से लोग जमकर खरीददारी कर रहे हैं.

पर्यावरण संरक्षण में अहम
आधुनिक दौर में जहां बाजार में प्लास्टिक के बर्तनों ने जगह ले ली है. जबकि, दूसरी ओर मौसम में गर्मी बढ़ने के साथ ही अतीत से चले आ रहे मिट्टी के बर्तन भी लोगों को खूब पसंद आ रहे है. जहां प्लास्टिक से बना सामान स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं. वहीं, मिट्टी के बने बर्तन स्वास्थ्य और पर्यावरण के हिसाब से काफी फायदेमंद माने जाते है. जिनको उपयोग में लाकर लोग पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा दे सकते हैं.

सोच बदलने की जरूरत
कुछ ग्राहकों का कहना है कि समय आ चुका है कि हमें पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ना होगा. वहीं, प्लास्टिक की जगह प्राकृतिक ढंग से तैयार किए गए मिट्टी और अन्य उत्पादों से बने सामान को रोजमर्रा के काम में उपयोग ने लाने से भी पर्यायवरण में बढ़ रहे दबाव को कम किया जा सकता है. गृहणी साधना मिश्रा का कहना है कि मिट्टी से बने बर्तन न सिर्फ हमें स्वस्थ रखते हैं या पर्यायवरण के लिहाज से भी बेहतर है. बस लोगों को समय के हिसाब से अपनी सोच बदलने की जरूरत है.

एकाएक बढ़ी डिमांड
प्लास्टिक के उत्पादों से बचने के लिए लोग अपने घरों में मिट्टी से बने साज-सज्जा के सामान के अलावा अब खाने- पीने के बर्तनों में खासी रुचि दिखा रहे हैं. देहरादून के ईदगाह स्थित कुम्हारों की मानें तो अब पहले के मुकाबले उनके पास मिट्टी के बर्तनों की डिमांड बढ़ी है. जैसे कुकर, हंडी, तवा, कड़ाही, बोतल, पानी की टंकी जैसे टिकाऊ बर्तन अभी गुजरात के अलावा यूपी के खुर्जा और चंडीगढ़ से आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि मिट्टी से बने बर्तनों में खाना बनाने व पेय पदार्थों के इस्तेमाल के बाद इन्हें नींबू व सिरका से साफ करना ठीक रहता है.

कुम्हारों की परेशानी
पिछले सात पीढ़ियों से मिट्टी बचने का कार्य कर रहे कुम्हार गंगा शरण का कहना है कि घरों में साज सजावट के अलावा खाना बनाना, पानी- पीने के बर्तनों की मांग लोगों में बढ़ रही है. मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने वाले आइटम को लोग ढूंढते हुए उनके पास पहुंच रहे हैं. इतना ही नहीं शादी समारोह तंदूर की भी मांग ज्यादा है. उन्होंने बताया कि आधुनिक दौर में मिट्टी के बर्तनों के प्रति लोगों का रुझान अब धीरे-धीरे बढ़ने लगा है. जो कुम्हारों के अस्तित्व को बचाए रखने में भी सहायक होगा. वहीं, पीढ़ी दर पीढ़ी कुम्हार का काम कर रहे लोगों को सड़क किनारे अपना रोजगार करने में खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जिन्हें जिला प्रशासन द्वारा अतिक्रमण हटाने के नाम पर परेशान किया जाता है. साथ ही कुम्हारों का कहना है कि पुलिस प्रशासन द्वारा उन्हें जगह खाली करने की हिदायत भी दी गई है.

Last Updated : Apr 26, 2019, 1:00 PM IST

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