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वन विभाग और रेलवे की लापरवाही का खामियाजा भुगत रहे हाथी, मौत का आंकड़ा देख चौंक जाएंगे आप - elephant died in railway track

लापरवाही की वजह से आये दिन ट्रेन की चपेट में आ रहे हैं हाथी. वन विभाग से मिले आंकड़े चौकाने वाले.

फाइल फोटो

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Published : Apr 19, 2019, 1:48 PM IST

देहरादून: एशिया का सबसे बड़ा हाथियों का घर कहलाने वाले राजाजी टाइगर रिजर्व पार्क में आये दिन हाथी बेमौत मारे जा रहे हैं. शुक्रवार सुबह भी दो हाथियों की हरिद्वार के सीतापुर में ट्रेन की चपेट में आने से मौत हो गई. ये कोई पहला मामला नहीं है जब हाथी की इस तरह से मौत हुई हो. हाथियों के बेमौत मारे जाने के आंकड़े आपको हैरान कर देंगे. आइए डालते हैं एक नजर आंकड़ों पर-

वन विभाग के मुताबिक 1987 से 2016 तक हाथियों की मौत की संख्या लगभग 181 के पार पहुंच गयी है. इन मौतों के पीछे की सबसे बड़ी वजह रेल ट्रैक ही रही है. हरिद्वार से देहरादून तक चलने वाली सिंगल ट्रेन से कटने की वजह से ही 24 हाथियों से ज्यादा की मौत हो गई है. जबकि सुप्रीम कोर्ट के साफ आदेश हैं कि 50 किलोमीटर के इस हाथी बाहुल्य ट्रैक पर ट्रेन धीमी गति से चलाई जाए. बावजूद इसके रेल प्रशासन द्वारा इसपर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिस वजह से हाथियों की ट्रेन से कटकर होने वाली मौत का सिलसिला बदस्तूर जारी है.

चीला रेंज से लेकर दोलखंडी रेंज और हरिद्वार से लेकर डोइवाला के जंगलों में हाथियों की संख्या काफी ज्यादा है. लेकिन बीते कई सालों में हाथियों की मौत का आंकड़ा अचानक से बढ़ गया है. गजराज को मौत के घाट सिर्फ शिकारी ही नहीं बल्कि लोगों की लापरवाही भी उतार रही है.

राजाजी नेशनल पार्क के निदेशक सनातन सोनकर के मुताबिक इस संबंध में कई बार रेल अधिकारियों को लिखित में जानकारी दी गई है. बैठकों के दौरान निर्देश भी दिये जाते हैं कि ट्रेन की गति कम रखी जाए, लेकिन ऐसा होता नहीं. मामले में कई बार हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट टिप्पणी कर चुके हैं. वन विभाग ने कई बार रेल कर्मियों पर मुकदमा भी किया लेकिन फिर भी हालात जस के तस हैं.

ट्रेन की चपेट में आने से मारे गए हाथी

  • 1992 में एक के बाद एक पांच हाथियों की मौत हुई, जिसमें 3 मादा और एक नर शामिल थे.
  • 1994 में दो हाथी फिर से ट्रेन की चपेट में आकर मारे गए.
  • 1998 में लगभग 6 हाथी मारे गए जिसमें से 3 मादा हाथी प्रेग्नेंट थीं.
  • 2000 और 2001 में करीब 4 हाथियों को ट्रेन ने मौत के घाट उतार दिया.
  • 2002 में 2 और 2003 में लगभग 2 हाथियों ने ट्रेन की चपेट में आकर दम तोड़ा.
  • 2009 में एक और 2017 में एक हाथी ट्रेन से कटा. इसके अलावा आज भी दो हाथी ट्रेन से कट गए.

विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक ट्रेन ही नहीं हाथियों की मौत की एक बड़ी वजह जंगलों से निकलने वाली हाईटेंशन तारें भी हैं. लगभग 11 हाथी अबतक करंट लगने के कारण मारे गए हैं. इसके अलावा शिकारियों की गोली से भी लगभग 7 हाथियों की मौत हुई है. गढ़वाल में 100 से ज्यादा हाथियों की प्राकृतिक मौत हुई है जबकि ट्रेंकुलाइज करने से भी कई हाथी दम तोड़ चुके हैं.

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