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हारे सिपाहियों पर जीत का दांव लगाती कांग्रेस, सबको साधने की कोशिश कितनी होगी कामयाब? - uttarakhand congress update news

कांग्रेस ने इस बार हारे हुए सिपाहियों पर बाजी लगाई है. पार्टी ने ऐसे लोगों को संगठन में ऊपर रखा है जो पिछले चुनावों में खुद अपनी सीट भी नहीं बचा सके. यही नहीं हरीश रावत के नेतृत्व में पार्टी राज्य स्थापना के बाद अपने सबसे खराब प्रदर्शन के तहत में 11 सीटें ही सिमट गई. हरीश रावत 2 विधानसभाओं से चुनाव लड़ने के बाद भी बुरी तरह से हार गए थे.

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हारे सिपाहियों पर जीत का दांव लगाती कांग्रेस

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Published : Jul 23, 2021, 8:03 PM IST

Updated : Jul 23, 2021, 9:24 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड कांग्रेस ने हारे हुए सिपाहियों के हाथ में एक बार फिर 2022 की जीत की जिम्मेदारी सौंप दी है. कांग्रेस के नये प्रदेश अध्यक्ष बनाये गये गणेश गोदियाल 2017 में धन सिंह रावत से चुनाव हारे. वहीं, खुद 2017 में ही हरीश रावत भी अपनी सीट नहीं बचा सके. इस साल कांग्रेस महज 11 सीटों पर सिमट गई. अब एक बार फिर से ये हारे हुए चेहरे ही कांग्रेस के खेवनहार बनने जा रहे हैं. हालांकि इस बार पार्टी ने सभी गुट और नेताओं को साधने के लिए कुछ नए फार्मूले को अपनाया है.

कांग्रेस हाईकमान ने लंबे विचार के बाद प्रदेश में कांग्रेस संगठन को लेकर कुछ नए फार्मूले के साथ पार्टी नेताओं को जिम्मेदारी सौंप दी है. प्रीतम सिंह को इसमें जहां हल्का किया गया है तो हरीश रावत मजबूत होकर उभरे हैं. साथ ही समीकरण साधने के लिए इस बार चार कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाये गये हैं.

हारे सिपाहियों पर जीत का दांव लगाती कांग्रेस

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कांग्रेस हाईकमान की तरफ से जारी सूची पर गौर करें तो हरीश रावत, गणेश गोदियाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाने में कामयाब रहे. उधर कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर प्रीतम सिंह का दबदबा दिखाई देता है. जबकि चुनाव प्रचार समिति में हरीश रावत मजबूत दिखाई दे रहे हैं. हालांकि, कांग्रेस ने प्रदेश में पहली बार कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर नया फॉर्मूला अपनाया है. कभी कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे हरक सिंह रावत कहते हैं 4 कार्यकारी अध्यक्ष यह साबित करता है कि कांग्रेस में कई गुट सक्रिय हैं. इन्हें मनाने के लिए इतने अध्यक्षों को बनाना पड़ा है.

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कांग्रेस में पार्टी हाईकमान की नई सूची में अधिकतर नेता वह हैं जो 2017 की बाजी हार चुके हैं. प्रीतम सिंह को छोड़ दें तो प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल से लेकर कार्यकारी अध्यक्ष और प्रचार समिति के सदस्यों समेत तमाम लोग 2017 में अपनी विधानसभा सीट भी नहीं जीत पाए. जाहिर है कि कांग्रेस हाईकमान ने इस बार हारे हुए सिपाहियों पर बाजी लगाई है. पार्टी ने ऐसे लोगों को ऊपर रखा है जो खुद अपनी सीट भी नहीं बचा सके. यही नहीं हरीश रावत के नेतृत्व में पार्टी राज्य स्थापना के बाद अपने सबसे खराब प्रदर्शन के तहत में 11 सीटें ही सिमट गई. हरीश रावत 2 विधानसभाओं से चुनाव लड़ने के बाद भी बुरी तरह से हार गए.

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हालांकि इस दौरान पार्टी हाईकमान ने क्षेत्रीय और जातीय समीकरण को भी साधने की कोशिश की है. इसमें नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह और प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल दोनों ही गढ़वाल से ताल्लुक रखते हैं. प्रीतम सिंह जनजाति क्षेत्र से आते हैं तो गणेश गोदियाल गढ़वाल में एक ब्राह्मण चेहरा हैं. कुमाऊं को साधने के लिए चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष के तौर पर हरीश रावत बड़ा चेहरा दिखाई देता है.

कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में अनुसूचित जाति, ठाकुर चेहरा और एक पंजाबी चेहरे को भी जगह दी गई है. यानी कुल मिलाकर ब्राह्मण, ठाकुर अनुसूचित जाति को भी जिम्मेदारी के रूप में प्रतिनिधित्व दिया गया है. इस मामले पर कांग्रेस का अपना ही अलग मत है. कांग्रेस का कहना है चुनाव में जीत हार कई मायने रखती. चुनाव लड़ने वाले कभी जीतते हैं और कभी हारते हैं, ऐसे में भाजपा को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए. भाजपा को कांग्रेस के अंदरूनी मामलों में ताक झांक नहीं करनी चाहिए.

Last Updated : Jul 23, 2021, 9:24 PM IST

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