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देवस्थानम बोर्ड भंग होने के बाद फिर गठित हुई बदरी-केदार मंदिर समिति - उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 की वोटिंग से पहले धामी से बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति (BKTC) को पुनर्गठित किया. भाजपा नेता अजेंद्र अजय को समिति का अध्यक्ष, किशोर पंवार को उपाध्यक्ष और बीडी सिंह को इसका मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया है. इसके अलावा समिति में 13 सदस्य हैं.

Badri Kedar Temple Committee
हुई बदरी-केदार मंदिर समिति

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Published : Jan 10, 2022, 4:05 PM IST

देहरादून:उत्तराखंड सरकार द्वारा चारधाम देवस्थानम बोर्ड अधिनियम वापस लेने के बाद अब दोबारा से बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (BKTC) को पुनर्गठित किया गया है. इसे आगामी विधानसभा चुनावों से पहले पुरोहित समुदाय को राज्य सरकार के संदेश के रूप में देखा जा रहा है कि वह हिमालयी मंदिरों पर उनके पारंपरिक अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.

इस संबंध में संस्कृति सचिव एचसी सेमवाल (culture secretary HC Semwal) द्वारा जारी एक अधिसूचना में कहा गया है कि, भाजपा नेता अजेंद्र अजय को समिति का अध्यक्ष, किशोर पंवार को उपाध्यक्ष और बीडी सिंह को इसका मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया है. इसके अलावा समिति में 13 सदस्य हैं.

पढ़ें- Year Ender 2021: देवस्थानम बोर्ड, एक मुख्यमंत्री ने पेश किया बिल, तीसरे CM ने लिया वापस

बता दें कि, त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान एक कानून के माध्यम से गठित चारधाम देवस्थानम बोर्ड को धामी सरकार में खत्म कर दिया गया था. अस्तित्व में आने के ठीक दो साल बाद 30 नवंबर को लंबे समय से आंदोलनरत तीर्थ पुरोहितों की मांग को मानते हुए उत्तराखंड सरकार ने विवादास्पद चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को भंग कर दिया था. पुजारियों ने हमेशा देवस्थानम बोर्ड का विरोध किया क्योंकि उन्हें लगा कि यह मंदिरों पर उनके पारंपरिक अधिकारों का उल्लंघन है.

त्रिवेंद्र सरकार में बना था बोर्ड: 2019 में तत्कालीन त्रिवेंद्र रावत के नेतृत्व वाली सरकार ने उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम-2019 के तहत एक देवस्थानम बोर्ड का गठन किया, जिसमें चार धामों के अलावा 51 मंदिरों का प्रबंधन अपने हाथों में ले लिया. त्रिवेंद्र रावत का दावा था कि प्रबंधन सरकार के हाथों में लेने से विकास कार्यों में तेजी आएगी और मंदिर प्रबंधन देश के बड़े मंदिरों की तरह बेहतर होगा. लेकिन स्थानीय तीर्थ पुरोहितों ने देवस्थानम बोर्ड का पहले दिन से विरोध शुरू कर दिया था.

पढ़ें-जानें, क्यों चारधाम देवस्थानम बोर्ड का तीर्थ पुरोहित कर रहे थे विरोध

पहले दिन से हो रहा था विरोध: पुरोहितों का आरोप था कि, सरकार ने बिना स्थानीय तीर्थ पुरोहितों से संवाद के बोर्ड का गठन किया. साथ ही पुरोहितों को हक-हकूक छिनने का डर भी सता रहा था. 10 दिसंबर 2019 को चारधाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम विधानसभा में पारित हुआ. तब त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तर्क दिया कि बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री धाम समेत 51 मंदिर बोर्ड के अधीन आने से यात्री सुविधाओं का नए तरीके से विकास किया जाएगा. इसके लिए तिरुपति बालाजी और वैष्णो देवी मंदिर श्राइन बोर्ड का भी हवाला दिया गया कि जिस प्रकार इन मंदिरों में सरकार विकास कर रही है, वैसे ही उत्तराखंड में 51 मंदिरों में नया इन्फ्रास्ट्रक्चर और विकास का रोडमैप तैयार होगा. लेकिन, तीर्थ-पुरोहित सरकार के इस फैसले के खिलाफ थे. तमाम विरोध के बीच यह बिल विधानसभा में पास हो गया. जनवरी 2020 में इस बिल को राजभवन से मंजूरी मिली और इस तरह ये एक्‍ट तैयार हुआ. इसी एक्ट के तहत 15 जनवरी 2020 को ‘चार धाम देवस्थानम बोर्ड’ बना.

मुख्यमंत्री बदलते ही सुगबुगाहट हुई थी शुरू: त्रिवेंद्र रावत के हटने के बाद तीरथ सिंह रावत ने भी देवस्थानम बोर्ड को लेकर विचार करने की बात की, लेकिन 4 महीने में ही उनकी सरकार चली गई. पुष्कर सिंह धामी के सीएम बनते ही देवस्थानम बोर्ड का मुद्दा गर्माने लगा. चुनावी साल में तीर्थ पुरोहितों का दबाव सरकार को समझ में आने लगा तो सीएम पुष्कर सिंह धामी ने भाजपा के दिग्गज नेता मनोहर कांत ध्यानी के नेतृत्व में हाईपावर कमेटी की रिपोर्ट गठित की.

कमेटी ने 2 माह में ही अपनी रिपोर्ट सौंपी. इसके बाद उच्च स्तरीय कैबिनेट उपसमिति ने रिपोर्ट का अध्ययन किया और रिपोर्ट को आधार बनाकर 30 ​नवंबर को देवस्थानम बोर्ड को भंग करने को लेकर सीएम ने बयान जारी किया. इसके बाद 10 दिसंबर को विधानसभा के शीतकालीन सत्र में देवस्थानम विधेयक को निरस्त कर बोर्ड को भंग कर दिया गया. इस तरह 2019 के शीतकालीन सत्र में बोर्ड का गठन हुआ और 2021 के शीतकालीन सत्र में बोर्ड को भंग कर दिया.

आखिर क्‍यों भंग करना पड़ा बोर्ड? 2022 में उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं. भाजपा सरकार चुनाव के मामले में कोई रिस्‍क नहीं लेना चाहती. इसी लक्ष्‍य को ध्‍यान में रखते हुए बीजेपी हाईकमान ने पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत से इस्‍तीफा लेकर तीरथ रावत को कमान सौंपी. फिर पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड का मुख्‍यमंत्री बनाया था.

बोर्ड बनने के बाद से ही राज्‍य के संत और पुजारी इसका विरोध कर रहे थे. मार्च 2021 में त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाने की एक बड़ी वजह भी देवस्‍थानम बोर्ड ही थी. हालांकि, तब उत्तराखंड सरकार ने यह तर्क दिया इस बोर्ड की मदद से चारधाम करने वाले सैलानियों को बेहतर सुविधाएं दी जाएंगी और पुरोहितों के हक बरकरार रहेंगे इनमें कोई बदलाव नहीं होगा, पर ऐसा हुआ नहीं.

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