जल्द नेताओं को मिल सकती है जिम्मेदारियां देहरादून:देश के पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद उत्तराखंड राज्य में कैबिनेट विस्तार और दायित्वधारियों की अगली सूची जारी होने की संभावना जताई जा रही है. दरअसल, भाजपा संगठन का राष्ट्रीय नेतृत्व समेत तमाम राज्यों के पदाधिकारी इन पांच राज्यों में चल रहे चुनाव में व्यस्त हैं. लिहाजा इन पांच राज्यों में चुनाव संपन्न होने के बाद उत्तराखंड में कैबिनेट विस्तार और दायित्व बंटवारे की संभावना जताई गई है.
दरअसल, साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही मंत्रिमंडल के तीन पद खाली चल रहे हैं. इसके साथ ही एक मंत्री के निधन के बाद 4 मंत्रिमंडल की सीट खाली हो गई है. देश के पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम और तेलंगाना में चुनाव चल रहे हैं. हालांकि, 30 नवंबर को मतदान की प्रक्रिया संपन्न होने के बाद 3 दिसंबर को मतगणना होगी. ऐसे में संभावना है कि इन राज्यों के नतीजे आने के बाद, धामी मंत्रिमंडल विस्तार और नेताओं को दायित्व दिया जा सकता है.
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दरअसल, संभावना जताई जा रहा ही है कि इन राज्यों में भाजपा के मुताबिक नतीजे सामने आने के बाद उत्तराखंड में मंत्रिमंडल विस्तार और नेताओं को दायित्व मिल सकता है.कैबिनेट विस्तार और दायित्व बंटवारे को लेकर भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. देवेंद्र भसीन ने कहा कि मंत्रिमंडल का विस्तार और दायित्वों का बंटवारा यह मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का विवेक है. ऐसे में जब मुख्यमंत्री चाहेंगे मंत्रिमंडल का विस्तार और दायित्व का बंटवारा कर दिया जाएगा. फिलहाल उम्मीद जताई जा रही है कि पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव के संपन्न होने के बाद मंत्रिमंडल और दायित्वों का बंटवारा हो सकता है.
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लिहाजा, मुख्यमंत्री आलाकमान से बातचीत करने के बाद जो भी निर्णय होगा, वो निर्णय लिया जाएगा. वहीं, इस पूरे मामले पर कांग्रेस की प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने कहा कि भाजपा लंबे समय से इस मामले को लटकाती नजर आ रही है. ऐसे में अब कांग्रेस को लगता है कि भाजपा नेता अब पूरी तरह से मायूस हो चुके हैं. क्योंकि कभी होली के बाद तो कभी दीपावली के बाद मंत्रिमंडल विस्तार और दायित्वों के बंटवारे की बात कही गई थी, लेकिन कुछ कार्यकर्ताओं को दायित्व देकर भाजपा शांत हो गई. साथी कहा कि कांग्रेस चाहती है कि भाजपा दायित्वों का बंटवारा न करें, क्योंकि दायित्वधारियों को करना कुछ नहीं है, बल्कि बस राज्य पर वित्तीय भार बढ़ना है.