चमोली: भगवान रुद्रनाथ के कपाट सोमवार को शीतकाल के लिए शाम 7 बजे बंद कर दिए गए. वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ कपाट बंद होने के समय कई श्रद्धालु मौजूद थे. आज भगवान रुद्रनाथ की डोली रात्रि विश्राम के लिए डुमक गांव पहुंचेगी. इसके बाद कुंजो गांव स्थित गणजेश्वर शिव मंदिर में बुधवार को भंडारे का आयोजन किया जाएगा. गुरुवार को भगवान रुद्रनाथ जी की डोली अपने शीतकालीन गद्दी स्थल गोपीनाथ मंदिर पहुंचेगी. इसके बाद छह माह तक शीतकाल के दौरान भगवान रुद्रनाथ की पूजा गोपेश्वर स्थित गोपीनाथ मंदिर में ही सम्पन्न होगी.
रुद्रनाथ के कपाट बंद हुए: भगवान रुद्रनाथ जी के मुख्य पुजारी हरीश भट्ट ने बताया कि सोमवार शाम 7 बजे वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ भगवान रुद्रनाथ के कपाट विधिवत शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए हैं. शीतकाल के दौरान भगवान रुद्रनाथ की पूजा शीतकालीन गद्दी स्थल गोपीनाथ मंदिर में ही की जाएगी.
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चमोली में है रुद्रनाथ मंदिर:रुद्रनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित भगवान शिव का एक मन्दिर है जो कि पंच केदार में से एक है. समुद्रतल से 2290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर भव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है. रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है, जबकि संपूर्ण शरीर की पूजा नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर में की जाती है. रुद्रनाथ मंदिर के सामने से दिखाई देती नंदा देवी और त्रिशूल की हिमाच्छादित चोटियां यहां का आकर्षण बढ़ाती हैं.
रुद्रनाथ का मार्ग अति दुर्गम है ऐसे पहुंचें रुद्रनाथ मंदिर: रुद्रनाथ मंदिर की यात्रा के लिए सबसे पहले गोपेश्वर पहुंचना होता है जो कि चमोली जिले का मुख्यालय है. गोपेश्वर एक आकर्षक हिल स्टेशन है जहां पर ऐतिहासिक गोपीनाथ मंदिर है. इस मंदिर का ऐतिहासिक लौह त्रिशूल भी आकर्षण का केंद्र है. गोपेश्वर पहुंचने वाले यात्री गोपीनाथ मंदिर और लौह त्रिशूल के दर्शन करना नहीं भूलते. गोपेश्वर से करीब पांच किलोमीटर दूर है सगर गांव. वहां 'होटल रुद्रा एंड रेस्टोरेंट' है. वहां रहने खाने पीने और पोर्टर, गाइड और घोड़े की व्यवस्था है. बस द्वारा रुद्रनाथ यात्रा का यही अंतिम पड़ाव है. इसके बाद जिस दुरूह चढ़ाई से यात्रियों और सैलानियों का सामना होता है वो एक अलग ही अनुभव होता है.
रुद्रनाथ यात्रा मार्ग के दृश्य रमणीय हैं सगर गांव के बाद आता है पुंग बुग्याल: सगर गांव से करीब चार किलोमीटर चढ़ाई चढ़ने के बाद पुंग बुग्याल आता है. यह लंबा चौड़ा घास का मैदान है, जिसके ठीक सामने पहाड़ों की ऊंची चोटियों को देखने पर सर पर रखी टोपी गिर जाती है. गर्मियों में अपने पशुओं के साथ आस-पास के गांवों के लोग यहां डेरा डालते हैं, जिन्हें पालसी कहा जाता है. अपनी थकान मिटाने के लिए थोड़ी देर यात्री यहां विश्राम करते हैं. ये पालसी थके हारे यात्रियों को चाय आदि उपलब्ध कराते हैं.
रुद्रनाथ जाते समय पहाड़ और बुग्याल मिलते हैं चक्रघनी की चढ़ाई लेती है परीक्षा: आगे की कठिन चढ़ाई में जगह-जगह मिलने वाली चाय की यही चुस्की अमृत का काम करती है. पुंग बुग्याल में कुछ देर आराम करने के बाद कलचात बुग्याल और फिर चक्रघनी की आठ किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई ही असली परीक्षा होती है. चक्रघनी जैसे कि नाम से प्रतीत होता है कि चक्र के सामान गोल.
रुद्रनाथ यात्रा के दौरान अनेक सुंदर दृश्य दिखते हैं इस दुरूह चढ़ाई को चढ़ते-चढ़ते यात्रियों को हिमालय यात्रा का असली अनुभव होता है. और ऊपर चढ़ते हुए मार्ग पर बांज, बुरांश, खर्सू, मोरु, फायनिट और थुनार के दुर्लभ वृक्षों की घनी छाया यात्रियों को राहत देती रहती है. रास्ते में कहीं कहीं पर मिलने वाले मीठे पानी की जलधाराएं यात्रियों के गले को तर करती हैं.
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चक्रघनी से ल्वीटी बुग्याल पहुंचते हैं: इस घुमावदार चढ़ाई के बाद थका-हारा यात्री ल्वीटी बुग्याल पहुंचता है जो समुद्र तल से करीब 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. ल्वीटी बुग्याल से गोपेश्वर और सगर का दृश्य तो देखने लायक है ही, साथ ही रात में दिखाई देती दूर पौड़ी नगर की टिमटिमाती लाइटों का आकर्षण भी कमतर नहीं है. ल्वीटी बुग्याल में सगर और आसपास के गांवों के लोग अपनी भेड़-बकरियों के साथ छह महीने तक डेरा डालते हैं.
यात्रियों को अपने साथ रेनकोट रखना जरूरी है अगर पूरी चढ़ाई एक दिन में चढ़ना कठिन लगे, तो यहां इन पालसियों के साथ एक रात गुजारी जा सकती है. यहां की चट्टानों पर उगी घास और उस पर चरती बकरियों का दृश्य पर्यटकों को अलग ही दुनिया का अहसास कराता है. यहां पर कई दुर्लभ जड़ी-बूटियां भी मिलती हैं.
पनार बुग्याल में ट्री लाइन खत्म होती है पनार बुग्याल में खत्म होती है ट्री लाइन: ल्वीटी बुग्याल के बाद करीब तीन किलोमीटर की चढ़ाई के बाद आता है पनार बुग्याल. दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित पनार रुद्रनाथ यात्रा मार्ग का मध्य द्वार है, जहां से रुद्रनाथ की दूरी करीब ग्यारह किलोमीटर रह जाती है. यह ऐसा स्थान है जहां पर वृक्ष रेखा समाप्त हो जाती है और मखमली घास के मैदान एकाएक सारे दृश्य को परिवर्तित कर देते हैं. अलग-अलग किस्म की घास और फूलों से लकदक घाटियों के नजारे यात्रियों को मोहपाश में बांधते चले जाते हैं. जैसे-जैसे यात्री ऊपर चढ़ता रहता है, प्रकृति का उतना ही खिला रूप उसे देखने को मिलता है.
रुद्रनाथ जाते समय ऊंचे पहाड़ पड़ते हैं इतनी ऊंचाई पर इस सौंदर्य को देखकर हर कोई आश्चर्यचकित रह जाता है. पनार में डुमुक और कठगोट गांव के लोग अपने पशुओं के साथ डेरा डाले रहते हैं. यहां पर ये लोग यात्रियों को चाय आदि उपलब्ध कराते हैं. पनार से हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों का जो रोमांचित करने वाला दृश्य दिखाई देता है वो दूसरी जगह से शायद ही दिखाई दे. नंदादेवी, कामेट, त्रिशूली, नंदाघुंटी आदि शिखरों का यहां बड़ा नजदीकी नजारा होता है.
रुद्रनाथ यात्रा मार्ग पर पितृ धार है पनार के बाद पित्रधार है खास: पनार के आगे पित्रधार नामक स्थान है. पित्रधार में शिव, पार्वती और नारायण मंदिर हैं. यहां पर यात्री अपने पितरों के नाम के पत्थर रखते हैं. यहां पर वन देवी के मंदिर भी हैं, जहां पर यात्री श्रृंगार सामग्री के रूप में चूड़ी, बिंदी और चुनरी चढ़ाते हैं. रुद्रनाथ की चढ़ाई पित्रधार में खत्म हो जाती है और यहां से हल्की उतराई शुरू हो जाती है. रास्ते में तरह-तरह के फूलों की खुशबू यात्रियों को मदहोश करती रहती हैं. यह भी फूलों की घाटी सा आभास देती हैं.
पितृ धार में पितरों को याद करते हैं पित्रधार से 11 किलोमीटर है रुद्रनाथ मंदिर: पनार से पित्रधार होते हुए करीब ग्यारह किलोमीटर के सफर के बाद पंचकेदारों में चौथे केदार रुद्रनाथ पहुंचते हैं. यहां विशाल प्राकृतिक गुफा में बने मंदिर में शिव की दुर्लभ पाषाण मूर्ति है. यहां शिवजी गर्दन टेढ़ी किए हुए हैं. माना जाता है कि शिवजी की यह दुर्लभ मूर्ति स्वयंभू है. यानी अपने आप प्रकट हुई है. इसकी गहराई का भी पता नहीं है. मंदिर के पास वैतरणी कुंड में शक्ति के रूप में पूजी जाने वाली शेषशायी विष्णु जी की मूर्ति भी है. मंदिर के एक ओर पांच पांडव, कुंती, द्रौपदी के साथ ही छोटे-छोटे मंदिर मौजूद हैं.
रुद्रनाथ के मार्ग में फूल ही फूल हैं पहुंच गए रुद्रनाथ मंदिर: मंदिर में प्रवेश करने से पहले नारद कुंड है, जिसमें यात्री स्नान करके अपनी थकान मिटाते हैं. इसी के बाद मंदिर के दर्शन करने पहुंचते हैं. रुद्रनाथ का समूचा परिवेश इतना अलौकिक है कि यहां के सौंदर्य को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता. शायद ही ऐसी कोई जगह हो जहां हरियाली न हो, फूल न खिले हों.
रास्ते में हिमालयी मोर, मोनाल से लेकर थार, थुनार और मृग जैसे जंगली जानवरों के दर्शन तो होते ही हैं, बिना पूंछ वाले शाकाहारी चूहे भी आपको रास्ते में फुदकते मिल जाएंगे. भोज पत्र के वृक्षों के अलावा ब्रह्मकमल भी यहां की ऊंचाइयों में बहुतायत में मिलते हैं.
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खाने रहने की व्यवस्था खुद करनी पड़ती है: यूं तो मंदिर समिति के पुजारी यात्रियों की हर संभव मदद की कोशिश करते हैं. लेकिन यहां खाने-पीने और रहने की व्यवस्था स्वयं करनी पड़ती है. जैसे कि रात में रुकने के लिए टेंट हो और खाने के लिए डिब्बाबंद भोजन या अन्य चीजें. रुद्रनाथ के कपाट परंपरा के अनुसार खुलते-बंद होते हैं.
शीतकाल में छह माह के लिए रुद्रनाथ की गद्दी गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में लाई जाती है, जहां पर शीतकाल के दौरान रुद्रनाथ की पूजा होती है. आप जिस हद तक प्रकृति की खूबसूरती का अंदाजा लगा सकते हैं, यकीन मानिए यह जगह उससे ज्यादा खूबसूरत है.